महाभारतम्-12-शांतिपर्व-366
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ब्राह्मणेन धर्मावगतये नागगृहंप्रति गमनम्।। 1।।
ब्राह्मण उवाच। | 12-366-1x |
अतिभारोद्यतस्यैव भारावतरणं महत्। पराश्वासकरं वाक्यमिदं मे भवतः श्रुतम्।। | 12-366-1a 12-366-1b |
अध्यक्लान्तस्य शयनं स्थानक्लान्तस्य चासनम्। तृषितस्येव पानीयं क्षुधार्तस्येव भोजनम्।। | 12-366-2a 12-366-2b |
ईप्सितस्येव संप्राप्तिरर्थस्य समयेऽतिथे। एपितस्यात्मनः काले बृद्धस्यैव सुता यथा।। | 12-366-3a 12-366-3b |
मनसा चिन्तितस्येव प्रीतिस्निग्धस्य दर्शनम्। प्रह्लादयति मां वाक्यं भवता यदुदीरितम्।। | 12-366-4a 12-366-4b |
मनश्चक्षुरिवाकाशे पश्यामि विमृशामि च। प्रज्ञानवचनाद्योयमुपदेशो हि मे कृतः।। | 12-366-5a 12-366-5b |
वाढमेवं करिष्यामि यथा मे भाषते भवान्। इमां हि रजनीं साधो निवसस्व मया सह।। | 12-366-6a 12-366-6b |
प्रभाते यास्यति चवान्पर्याश्वस्तः सुखोपितः। असौ हि भगवान्सूर्यो मन्दरश्मिरवाङ्भुखः।। | 12-366-7a 12-366-7b |
भीष्म उवाच। | 12-366-8x |
ततस्तेन कृतातिथ्यः सोऽनिथिः शत्रुसूदन। उवास किल तां रात्रिं सह तेन द्विजेन वै।। | 12-366-8a 12-366-8b |
तत्वं च धर्मसंयुक्तं तयोः कथयतोस्तदा। व्यतीता सा निशा कृत्स्ना सुखेन दिवसोपमा।। | 12-366-9a 12-366-9b |
ततः प्रभातसमये सोऽतिथिस्तेन पूजितः। ब्राह्मणेन यथाशक्त्या स्वकार्यमभिकाङ्क्षता।। | 12-366-10a 12-366-10b |
ततः स विप्रः कृतकर्मनिश्चयः कृताभ्यनुज्ञः स्वजनेन धर्मकृत्। यथोपदिष्टं भुजगेन्द्रसंश्रयं जगाम काले सुकृतैकनिश्चयः।। | 12-366-11a 12-366-11b 12-366-11c 12-366-11d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि षट्ष्ट्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः।। 366।। |
12-366-9 चतुर्थधर्मसंयुक्तमिति झ. पाठः। तत्र च र्थधर्मो मोक्षधर्मस्तेन संयुक्तामित्यर्थः।। 12-366-11 संश्रयं गृहम्।।
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