महाभारतम्-12-शांतिपर्व-262
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति नारदाकम्पनसंवादानुवादः।। 1।। नारदेनाकम्पनं प्रति स्थाणुप्रजापतिसंवादानुवादारम्भः।। 2।।
युधिष्ठिरं उवाच। | 12-262-1x |
य इमे पृथिवीपालाः शेरते पृथिवीतले। पृतनामध्य एते हि गतसत्त्वा महाबलाः।। | 12-262-1a 12-262-1b |
एकैकशो भीमबला नागायुतबलास्तथा। एते हि निहताः सङ्ख्ये तुल्यतेजीबलैर्नरैः।। | 12-262-2a 12-262-2b |
नैषां पश्यामि हन्तारं प्राणिनां संयुगे पुरा। विक्रमेणोपसंपन्नास्तेजोबलसमन्विताः।। | 12-262-3a 12-262-3b |
अथ चेमे महाप्राज्ञाः शेरते हि गतासवः। मृता इति च शब्दोऽयं वर्तत्येषु गतासुषु।। | 12-262-4a 12-262-4b |
इमे मृता नृपतयः प्रायशो भीमविक्रमाः। तत्र मे संशयो जातः कुतः संज्ञा मृता इति।। | 12-262-5a 12-262-5b |
कस्य मृत्युः कुतो मृत्युः केन मृत्युरिह प्रजाः। हरत्यमरसंकाश तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-262-6a 12-262-6b |
भीष्म उवाच। | 12-262-7x |
पुरा कृतयुगे तात राजा ह्यासीदकम्पनः। स शत्रुवशमापन्नः संग्रामे क्षीणवाहनः।। | 12-262-7a 12-262-7b |
तस्य पुत्रो हरिर्नाम नारायणसमो बले। स शत्रुभिर्हतः सङ्ख्ये सबलः सपदानुगः।। | 12-262-8a 12-262-8b |
स राजा शत्रुवशगः पुत्रशोकसमन्वितः। यदृच्छया शान्तिपरो ददर्श भुवि नारदम्।। | 12-262-9a 12-262-9b |
तस्मै स सर्वमाचष्ट यथावृत्तं जनेश्वरः। शत्रुभिर्ग्रहणं सङ्ख्ये पुत्रस्य मरणं तथा।। | 12-262-10a 12-262-10b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा नारदोऽथ तपोधनः। आख्यानमिदमाचष्ट पुत्रशोकापहं तदा।। | 12-262-11a 12-262-11b |
नारद उवाच। | 12-262-12x |
राजञ्शृणु महाख्यानं ममेदं बहुविस्तरम्। यथावृत्तं श्रुतं चैव मयाऽपि वसुधाधिप।। | 12-262-12a 12-262-12b |
प्रजाः सृष्ट्वा महातेजाः प्रजासर्गे पितामहः। अतीव वृद्धा बहुला नामृष्यत पुनः प्रजाः।। | 12-262-13a 12-262-13b |
न ह्यन्तरमभूत्किंचित्क्वचिज्जन्तुभिरच्युत। निरुच्छ्वासमिवोन्नद्धं त्रैलोक्यमभवन्नृप।। | 12-262-14a 12-262-14b |
तस्य चिन्ता समुत्पन्ना संहारं प्रति भूपते। चिन्तयन्नाध्यगच्छच्च संहारे हेतुकारणम्।। | 12-262-15a 12-262-15b |
तस्य रोपान्महाराज खेभ्योऽग्निरुदतिष्ठत। तेन सर्वा दिशो राजन्ददाह स पितामहः।। | 12-262-16a 12-262-16b |
ततो दिवं भुवं खं च जगच्च सचराचरम्। ददाह पावको राजन्भगवत्कोपसंभवः।। | 12-262-17a 12-262-17b |
तत्रादह्यन्त भूतानि जङ्गमानि ध्रुवाणि च। महता क्रोधवेगेन कुपिते प्रपितामहे।। | 12-262-18a 12-262-18b |
ततो हरो जटी स्थाणुर्देवोऽध्वरपतिः शिवः। जगाम शरणं देवो ब्रह्माणं परमेष्ठिनम्।। | 12-262-19a 12-262-19b |
तस्मिन्नभिगते स्थाणौ प्रजानां हितकाम्यया। अब्रवीद्वरदो देवो ज्वलन्निव तदा शिवम्।। | 12-262-20a 12-262-20b |
करवाण्यद्य कं कामं व्नरार्होऽसि मतो मम। कर्ता ह्यसि प्रियं शंभो तव यद्धृदि वर्तते।। | 12-262-21a 12-262-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि मोक्षधर्मपर्वणि द्विषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 262।। |
12-262-1 गतसंज्ञा महाबला इति थ. पाठः।। 12-262-16 खेभ्य इन्द्रियच्छिद्रेभ्यः।। 12-262-17 खं खस्थं ग्रहनक्षत्रादि।। 12-262-19 स्थाणुः श्मशाननिलयः शिव इति ड. थ. पाठः।।
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