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महाभारतम्-12-शांतिपर्व-198

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महाभारतम्/शांतिपर्व
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति जपस्य फलकथनपूर्वकं जापकोपाख्यानसमापनम्।। 1।।

युधिष्ठिर उवाच। 12-198-1x
किमुत्तरं तदा तौ स्म चक्रतुस्तस्य भाषिते।
ब्राह्मणो वाऽथवा राजा तन्मे ब्रूहि पितामह।।
12-198-1a
12-198-1b
अथवा तौ गतौ तत्र यदेतत्कीर्तितं त्वया।
संवादो वा तयोः कोऽभूत्किं वा तौ तत्र चक्रतुः।।
12-198-2a
12-198-2b
भीष्म उवाच। 12-198-3x
तथेत्येवं प्रतिश्रुत्य धर्मं संपूज्य जापकः।
यमं कालं च मृत्युं च स्वर्गं संपूज्य चार्हतः।।
12-198-3a
12-198-3b
पूर्वं ये चापरे तत्र समेता ब्राह्मणर्षभाः।
सर्वान्संपूज्य शिरसा राजानं सोऽब्रवीद्द्विजः।।
12-198-4a
12-198-4b
फलेनानेन संयुक्तो राजर्षे गच्छ मुख्यताम्।
भवता चाभ्यनुज्ञातो जपेयं भूय एव ह।।
12-198-5a
12-198-5b
वरश्च मम पूर्वं हि दत्तो देव्या महाबल।
श्रद्धा ते जपतो नित्यं भवत्विति विशांपते।।
12-198-6a
12-198-6b
राजोवाच। 12-198-7x
यद्येवं सफला सिद्धिः श्रद्धा च जपितुं तव।
गच्छ विप्र मया सार्धं जापकं फलमाप्नुहि।।
12-198-7a
12-198-7b
ब्राह्मण उवाच। 12-198-8x
कृतः प्रयत्नः सुमहान्सर्वेषां सन्निधाविह।
सह तुल्यफलावावां गच्छावो यत्र नौ गतिः।।
12-198-8a
12-198-8b
भीष्म उवाच। 12-198-9x
व्यवसायं तयोस्तत्र विदित्वा त्रिदशेश्वरः।
सह देवैरुपययौ लोकपालैस्तथैव च।।
12-198-9a
12-198-9b
साध्याश्च विश्वे मरुतो वाक्यानि सुमहान्ति च।
नद्यः शैलाः समुद्राश्च तीर्थानि विविधानि च।।
12-198-10a
12-198-10b
तपांसि संयोगविधिर्वेदास्तोभाः सरस्वती।
नारदः पर्वतश्चैव विश्वावसुर्हहाहुहूः।।
12-198-11a
12-198-11b
गन्धर्वश्चित्रसेनश्च परिवारगणैर्युतः।
नागाः सिद्धाश्च मुनयो देवदेवः प्रजापतिः।।
12-198-12a
12-198-12b
`आजगाम च देवेशो ब्रह्मा वेदमयोऽव्ययः।'
विष्णुः सहस्रशीर्षश्च देवोऽचिन्त्यः समागमत्।
अवाद्यन्तान्तरिक्षे च भेर्यस्तूर्याणि वा विभो।।
12-198-13a
12-198-13b
12-198-13c
पुष्पवर्षाणि दिव्यानि तत्र तेषां महात्मनाम्।
ननृतुश्चाप्सरः सङ्घास्तत्रतत्र समन्ततः।।
12-198-14a
12-198-14b
अथ स्वर्गस्तथा रूपी ब्राह्मणं वाक्यमब्रवीत्।
संसिद्धस्त्वं महाभाग त्वं च सिद्धस्तथा नृप।।
12-198-15a
12-198-15b
भीष्म उवाच। 12-198-16x
अथ तौ सहितौ राजन्नन्योन्यस्य विधानतः।
विषयप्रतिसंहारमुभावेव प्रचक्रतुः।।
12-198-16a
12-198-16b
प्राणापानौ तथोदानं समानं व्यानमेव च।
एवं तौ मनसि स्थाप्य दधतुः प्राणयोर्मनः।।
12-198-17a
12-198-17b
उपस्थितकृतौ तौ च नासिकाग्रमधो भ्रुवोः।
भ्रुकुट्याक्ष्णोश्च मनसा शनैर्धारयतस्तदा।।
12-198-18a
12-198-18b
निश्चेष्टाभ्यां शरीराभ्यां स्थिरदृष्टी समाहितौ।
जितासनौ समाधाय र्मूर्धन्यात्मानमेव च।।
12-198-19a
12-198-19b
तालुदेशमथोद्दाल्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
ज्योतिर्ज्वाला सुमहती जगाम त्रिदिवं तदा।।
12-198-20a
12-198-20b
हाहाकारस्तथा दिक्षु सर्वासु सुमहानभूत्।
तज्ज्योतिः स्तूयमानं स्म ब्रह्माणं प्राविशत्तदा।।
12-198-21a
12-198-21b
ततः स्वागतमित्याह तत्तेजः प्रपितामहः।
प्रादेशमात्रं पुरुषं प्रत्युद्गम्य विशांपते।।
12-198-22a
12-198-22b
भूयश्चैवापरं प्राह वचनं मधुरं स्मयन्।
जापकैस्तुल्यफलता योगानां नात्र संशयः।।
12-198-23a
12-198-23b
योगस्य तावदेतेभ्यः प्रत्यक्षं फलदर्शनम्।
जापकानां विशिष्टं तु प्रत्युत्थानं समाहितम्।।
12-198-24a
12-198-24b
उष्यतां मयि चेत्युक्त्वा व्याददे स ततो मुखम्।
अथास्यं प्रविवेशास्य ब्राह्मणो विगतज्वरः।।
12-198-25a
12-198-25b
राजाऽप्येतेन विधिना भगवन्तं पितामहम्।
यथैव द्विजशार्दूलस्तथैव प्राविशत्तदा।।
12-198-26a
12-198-26b
स्वयंभुवमथो देवा अभिवाद्य ततोऽब्रुवन्।। 12-198-27a
जापकार्थमयं यत्नो यदर्थं वयमागताः।
कृतपूजाविमौ तुल्यौ त्वया तुल्यफलान्वितौ।।
12-198-28a
12-198-28b
योगजापकयोस्तुल्यं फलं सुमहदद्य वै।
सर्वांल्लोकानतिक्रम्य गच्छेतां यत्र वाञ्छितम्।।
12-198-29a
12-198-29b
ब्रह्मोवाच। 12-198-30x
महास्मृतिं पठेद्यस्तु तथैवानुस्मृतिं शुभाम्।
तावप्येतेन विधिना गच्छेतां मत्सलोकताम्।।
12-198-30a
12-198-30b
यश्च योगे भवेद्भक्तः सोऽपि नास्त्यत्र संशयः।
विधिनानेन देहान्ते मम लोकानवाप्नुयात्।
साधये गम्यतां चैव यथा स्थानानि सिद्धये।।
12-198-31a
12-198-31b
12-198-31c
भीष्म उवाच। 12-198-32x
इत्युक्त्वा स तदा देवस्तत्रैवान्तरधीयत।
आमन्त्र्य च ततो देवा ययुः स्वंस्वं निवेशनम्।।
12-198-32a
12-198-32b
ते च सर्वे महात्मानो धर्मं सत्कृत्य तत्र वै।
पृष्ठतोऽनुययू राजन्सर्वे सुप्रीतचेतसः।।
12-198-33a
12-198-33b
एतत्फलं जापकानां गतिश्चैषा प्रकीर्तिता।
यथाश्रुतं महाराज किं भूयः श्रोतुमिच्छसि।।
12-198-34a
12-198-34b
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि
मोक्षधर्मपर्वणि अष्टनवत्यधिकशततमोऽध्यायः।। 198।।

12-198-1 तौ इक्ष्वाकुपैप्पलादी। तस्य विरूपस्य भाषिते वचने विषये।। 12-198-3 अर्हतः पूज्यान्।। 12-198-9 व्यवसायं निश्चयम्।। 12-198-11 स्तोभाः सामगीतिपूरणार्थनि अक्षराणि हायि हावु इत्यादीनि।। 12-198-18 नेत्राग्रैश्चैव मनसेति ट. पाठः।। 12-198-20 तालुदेशं ब्रह्मरन्ध्रम्।। 12-198-23 योगानां योगिनाम्।। 12-198-24 एतेभ्य एतेषां सभ्यानाम्। समाहितं विहितम्।। 12-198-30 संहिताध्यायिनां फलमुक्त्वा षडङ्गाध्यायिनां मन्वादिस्मृत्यध्यायिनां च फलमाह महास्मृतिमिति।।

शांतिपर्व-197 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शांतिपर्व-199