महाभारतम्-12-शांतिपर्व-110
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भीष्मेण युधिष्ठिरंप्रति दुर्गातितरणोपायकथनम्।। 1।।
युधिष्ठिर उवाच। | 12-110-1x |
क्लिश्यमानेषु भूतेषु तैस्तैर्भावैः पृथक्पृथक्। दुर्गाण्यतितरेद्येन तन्मे ब्रूहि पितामह।। | 12-110-1a 12-110-1b |
भीष्म उवाच। | 12-110-2x |
आश्रमेषु यथोक्तेषु यथोक्तं ये द्विजातयः। वर्तन्ते संयतात्मानो दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-2a 12-110-2b |
ये दम्भान्नाचरन्ति स्म येषां वृत्तिश्च संयता। विषयांश्च निगृह्णन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-3a 12-110-3b |
प्रत्याहुर्नोच्यमाना ये न हिंसन्ति च हिंसिताः। प्रयच्छन्ति न याचन्ते दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-4a 12-110-4b |
वासयन्त्यतिथीन्नित्यं नित्यं ये चानसूयकाः। नित्यं स्वाध्यायशीलाश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-5a 12-110-5b |
मातापित्रोश्च ये वृत्तिं वर्तन्ते धर्मकोविदाः। वर्जयन्ति दिवास्वप्नं दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-6a 12-110-6b |
ये वा पापं न कुर्वन्ति कर्मणा मनसा गिरा। निक्षिप्तदण्डा भूतेषु दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-7a 12-110-7b |
ये न लोभान्नयन्त्यर्थान्राजानो रजसाऽन्विताः। विषयान्परिरक्षन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-8a 12-110-8b |
स्वेषु दारेषु वर्तन्ते न्यायलब्धेष्वृतावृतौ। अग्निहोत्रपराः सन्तो दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-9a 12-110-9b |
आहवेषु च ये शूरास्त्यक्त्वा मृत्युकृतं भयम्। धर्मेण जयमिच्छन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-10a 12-110-10b |
ये वदन्तीह सत्यानि प्राणत्यागेऽप्युपस्थिते। प्रमाणभूता भूतानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-11a 12-110-11b |
कर्माण्यकुत्सनार्थानि येषां वाचश्च सूनृताः। येषामर्थाश्च साध्वर्था दुर्गाण्यतितरन्ति ते। | 12-110-12a 12-110-12b |
अनध्यायेषु ये विप्राः स्वाध्यायं नैव कुर्वते। तपोनिष्ठाः सुतपसो दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-13a 12-110-13b |
ये तपश्च तपस्यन्ति कौमारब्रह्मचारिणः। विद्या वेदव्रतस्नाता दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-14a 12-110-14b |
ये च संशान्तरजसः संशान्ततमसश्च ये। सत्वे स्थिता महाभागा दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-15a 12-110-15b |
येषां न कश्चित्रसति न त्रसन्ति हि कस्यचित्। येषामात्मसमो लोको दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-16a 12-110-16b |
परश्रिया न तप्यन्ति ये सन्तः पुरुषर्षभाः। ग्राम्यादन्नान्निवृत्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-17a 12-110-17b |
सर्वान्देवान्नमस्यन्ति सर्वधर्मांश्च शृण्वते। ये श्रद्दधानाः शान्ताश्च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-18a 12-110-18b |
ये न मानित्वमिच्छन्ति मानयन्ति च ये परान्। मान्यमानान्नमस्यन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-19a 12-110-19b |
ये च श्राद्धानि कुर्वन्ति तिथ्यांतिथ्यां प्रजार्थिनः। सुविशुद्धेन मनसा दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-20a 12-110-20b |
ये क्रोधं संनियच्छन्ति क्रुद्धान्संशमयन्ति च। न च रुष्यन्ति भृत्यानां दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-21a 12-110-21b |
मधु मांसं स्त्रियो नित्यं वर्जयन्तीह मानवाः। जन्मप्रभृति मद्यं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-22a 12-110-22b |
यात्रार्थं भोजनं येषां संतानार्थं च मैथुनम्। वाक् सत्यवचनार्थं च दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-23a 12-110-23b |
ईश्वरं सर्वभूतानां जगतः प्रभवाप्ययम्। भक्ता नारायणं देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-24a 12-110-24b |
य एष पझरक्ताक्षः पीतवासा महाभुजः। सुहृद्धाता च मित्रं च संबन्धी च तवाच्युत।। | 12-110-25a 12-110-25b |
य इमान्सकलाँल्लोकांश्चर्मवत्परिवेष्टयेत्। इच्छन्प्रभुरचिन्त्यात्मा गोविन्दः पुरुषोत्तमः।। | 12-110-26a 12-110-26b |
स्थितः प्रियहिते नित्यं स एष पुरुषोत्तमः। राजंस्तव यदुश्रेष्ठो वैकुण्ठः पुरुषर्षभः।। | 12-110-27a 12-110-27b |
य एनं संश्रयन्तीह भक्त्या नारायणं हरिम्। ते तरन्तीह दुर्गाणि न चात्रास्ति विचारणा।। | 12-110-28a 12-110-28b |
` अस्मिन्नर्पितकर्माणः सर्वभावेन भारत। कृष्णे कमलपत्राक्षे दुर्गाण्यतितरन्ति ते। | 12-110-29a 12-110-29b |
लोकरक्षार्थमुत्पन्नमदित्यां कश्यपात्मजम्। देवमिन्द्रं नमस्यन्ति दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-30a 12-110-30b |
ब्रह्माणं लोककर्तारं ये नमस्यन्ति सत्पतिम्। यष्टव्यं क्रतुभिर्देवं दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-31a 12-110-31b |
यं विष्णुरिन्द्रः शंभुश्च ब्रह्मा लोकपितामहः। स्तुवन्ति विविधैः स्तोत्रैर्देवदेवं महेश्वरम्। समर्चयन्ति ये शश्वद्दुर्गाण्यतितरन्ति ते।।' | 12-110-32a 12-110-32b 12-110-32c |
दुर्गातितरणं ये च पठन्ति श्रावयन्ति च। कथयन्ति च विप्रेभ्यो दुर्गाण्यतितरन्ति ते।। | 12-110-33a 12-110-33b |
इति कृत्यसमुद्देशः कीर्तितस्ते मयाऽनघ। तरते येन दुर्गाणि परत्रेह च मानवः।। | 12-110-34a 12-110-34b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि दशाधिकशततमोऽध्यायः।। 110।। |
12-110-1 भूतेषु ---। दुर्गाणि दुस्तराणि।। 12-110-3 विषयान्विषयार्थानि --।। 12-110-4 उच्यमानाः निन्द्यमानाः।। 12-110-8 रजसान्विताः सन्तोऽर्थान्न नयन्ति न हरस्ति।। 12-110-23 यात्रार्थ जीवनार्थम्।। 12-110-34 कृत्यसमुद्देशः कर्तव्यलेशः।।
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