महाभारतम्-12-शांतिपर्व-048
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कृष्णेन युधिष्ठिरंप्रति परशुरामचरितकथनम्।। 1।।
वासुदेव उवाच। | 12-48-1x |
शृणु कौन्तेय रामस्य प्रभावो यो मया श्रुतः। महर्षीणां कथयतां कारणं तस्य जन्म च।। | 12-48-1a 12-48-1b |
यथा च जामदग्न्येन कोटिशः क्षत्रिया हताः। उद्भूता राजवंशेषु ये भूयो भारते हताः।। | 12-48-2a 12-48-2b |
जह्नोरजस्तु तनयो बलाकाश्चस्तु तत्सुतः। कुशिको नाम धर्मज्ञस्तस्य पुत्रो महीपते।। | 12-48-3a 12-48-3b |
अग्र्यं तपः समातिष्ठत्सहस्राक्षसमो भुवि। पुत्रं लभेयमजितं त्रिलोकेश्वरमित्युत।। | 12-48-4a 12-48-4b |
तमुग्रतपसं दृष्ट्वा सहस्राक्षः पुरंदरः। समर्थं पुत्रजनने स्वयमेवैत्य भारत।। | 12-48-5a 12-48-5b |
पुत्रत्वमगमद्राजंस्तस्य लोकेश्वरेश्वरः। गाधिर्नामाभवत्पुत्रः कौशिकः पाकशासनः।। | 12-48-6a 12-48-6b |
तस्य कन्याऽभवद्राजन्नाम्ना सत्यवती प्रभो। तां गाधिर्भृगुपुत्राय ऋचीकाय ददौ प्रभुः।। | 12-48-7a 12-48-7b |
ततस्तया हि कौन्तेय भार्गवः कुरुनदनः। पुत्रार्थं श्रपयामास चरुं गाधेस्तथैव च।। | 12-48-8a 12-48-8b |
आहूय चाह तां भार्यामृचीको भार्गवस्तदा। उपयोज्यश्चरुरयं त्वया मात्राऽप्ययं तव।। | 12-48-9a 12-48-9b |
तस्या जनिष्यते पुत्रो दीप्तिमान्क्षत्रियर्षभः। अजय्यः क्षत्रियैर्लोके क्षत्रियर्षभसूदनः।। | 12-48-10a 12-48-10b |
तवापि पुत्रं कल्याणि धृतिमन्तं शमात्मकम्। तपोन्वितं द्विजश्रेष्ठं चरुरेष विधास्यति।। | 12-48-11a 12-48-11b |
इत्येवमुक्त्वा तां भार्यां सर्चीको भृगुनन्दनः। तपस्यभिरतः श्रीमाञ्जगामारण्यमेव हि।। | 12-48-12a 12-48-12b |
एतस्मिन्नेव काले तु तीर्थयात्रापरो नृपः। गाधिः सदारः संप्राप्त ऋचीकस्याश्रमं प्रति।। | 12-48-13a 12-48-13b |
चरुद्वयं गृहीत्वा तु राजन्सत्यवती तदा। भर्त्रा दत्तं प्रसन्नेन मात्रे हृष्टा न्यवेदयत्।। | 12-48-14a 12-48-14b |
माता तु तस्याः कौन्तेय दुहित्रे स्वं चरुं ददौ। तस्याश्ररुमथाज्ञातमात्मसंस्थं चकार ह।। | 12-48-15a 12-48-15b |
अथ सत्यवती गर्भं क्षत्रियान्तकरं तदा। धारयामास दीप्तेन वपुषा घोरदर्शनम्।। | 12-48-16a 12-48-16b |
तामृचीकस्तदा दृष्ट्वा ध्यानयोगेन भारत। अब्रवीद्भृगुशार्दूलः स्वां भार्यां देवरूपिणीम्।। | 12-48-17a 12-48-17b |
मात्राऽसि व्यंसिता भद्रे चरुव्यत्यासहेतुना। तस्माज्जनिष्यते पुत्रः क्रूरकर्माऽत्यमर्षणः। `जनयिष्यति माता ते ब्रह्मभूतं तपोधनम्।।' | 12-48-18a 12-48-18b 12-48-18c |
विश्वं हि ब्रह्म सुमहच्चरौ तव समाहितम्। क्षत्रवीर्यं च सकलं तव मात्रे समर्पितम्।। | 12-48-19a 12-48-19b |
विपर्ययेण ते भद्रे नैतदेवं भविष्यति। मातुस्ते ब्राह्मणो भूयात्तव च क्षत्रियः सुतः।। | 12-48-20a 12-48-20b |
सैवमुक्ता महाभागा भर्त्रा सत्यवती तदा। पपात शिरसा तस्मै वेपन्ती चाब्रवीदिदम्।। | 12-48-21a 12-48-21b |
नार्होऽसि भगवन्नद्य वक्तुमेवंविधं वचः। ब्राह्मणापशदं पुत्रं प्राप्स्यसीति हि मां प्रभो।। | 12-48-22a 12-48-22b |
ऋचीक उवाच। | 12-48-23x |
नैष संकल्पितः कामो मया भद्रे तथा त्वयि। उग्रकर्मा भवेत्पुत्रश्चरुव्यत्यासहेतुना।। | 12-48-23a 12-48-23b |
सत्यवत्युवाच। | 12-48-24x |
इच्छँल्लोकानपि मुने सृजेथाः किं पुनः सुतम्। शमात्मकमृजुं पुत्रं दातुमर्हसि मे प्रभो।। | 12-48-24a 12-48-24b |
ऋचीक उवाच। | 12-48-25x |
नोक्तपूर्वं मया भद्रे स्वैरेष्वप्यनृतं वचः। किमुताग्निं समाधाय मन्त्रवच्चरुसाधने।। | 12-48-25a 12-48-25b |
[दृष्टमेतत्पुरा भद्रे ज्ञातं च तपसा मया। ब्रह्मभूतं हि सकलं पितुस्तव कुलं भवेत्।।] | 12-48-26a 12-48-26b |
सत्यवत्युवाच। | 12-48-27x |
काममेवं भवेत्पौत्रो मामैवं तनयः प्रभो। शमात्मकमृजुं पुत्रं लभेयं जपतां वर।। | 12-48-27a 12-48-27b |
ऋचीक उवाच। | 12-48-28x |
पुत्रे नास्ति विशेषो मे पौत्रे च वरवर्णिनि। यथा त्वयोक्तं वचनं तथा भद्रे भविष्यति।। | 12-48-28a 12-48-28b |
वासुदेव उवाच। | 12-48-29x |
ततः सत्यवती पुत्रं जनयामास भार्गवम्। तपस्यभिरतं शान्तं जमदग्निं यतव्रतम्।। | 12-48-29a 12-48-29b |
विश्वामित्रं च दायादं गाधिः कुशिकनन्दनः। प्राप ब्रह्मर्षिसमितं विश्वेन ब्रह्मणा युतम्।। | 12-48-30a 12-48-30b |
ऋचीको जनयामास जमदग्निं तपोनिधिम्। सोऽपि पुत्रं ह्यजनयज्जमदग्निः सुदारुणम्।। | 12-48-31a 12-48-31b |
सर्वविद्यान्तगं श्रेष्ठं धनुर्वेदस्य पारगम्। रामं क्षत्रियहन्तारं प्रदीप्तमिव पावकम्।। | 12-48-32a 12-48-32b |
[तेषयित्वा महादेवं पर्वते गन्धमादने। अस्त्राणि वरयामास परशुं चातितेजसम्।। | 12-48-33a 12-48-33b |
स तेनाकुण्ठधारेण ज्वलितानलवर्चसा। कुठारेणाप्रमेयेण लोकेष्वप्रतिमोऽभवत्।।] | 12-48-34a 12-48-34b |
एतस्मिन्नेव काले तु कृतवीर्यात्मजो बली। अर्जुनो नाम तेजस्वी क्षत्रियो हैहयाधिपः।। | 12-48-35a 12-48-35b |
दत्तात्रेयप्रसादेन राजा बाहुसहस्रवान्। चक्रवर्ती महातेजा विप्राणामाश्वमेधिके।। | 12-48-36a 12-48-36b |
ददौ स पृथिवीं सर्वां सप्तद्वीपां सपर्वताम्। सबाह्वस्त्रबलेनाजौ जित्वा परमधर्मवित्।। | 12-48-37a 12-48-37b |
तृषितेन च कौन्तेय भिक्षितश्चित्रभानुना। सहस्त्रबाहुर्विक्रान्तः प्रादाद्भिक्षामथाग्नये।। | 12-48-38a 12-48-38b |
ग्रामान्पुराणि राष्ट्राणि घोषांश्चैव तु वीर्यवान्। जज्वाल तस्य वाणेद्धचित्रभानुर्दिधक्षया।। | 12-48-39a 12-48-39b |
स तस्य पुरुषेन्द्रस्य प्रभावेण महौजसः। ददाह कार्तवीर्यस्य शैलानपि धरामपि।। | 12-48-40a 12-48-40b |
स शून्यमाश्रमारण्यमापवस्य महात्मनः। ददाह पवनेनेद्धश्चित्रभानुः सहैहयः।। | 12-48-41a 12-48-41b |
आपवस्तं ततो रोषाच्छशापार्जुनमच्युत। दग्धे श्रमे महाबाहो कार्तवीर्येण वीर्यवान्।। | 12-48-42a 12-48-42b |
त्वया न वर्जितं यस्मान्ममेदं हि महद्वनम्। दग्धं तस्माद्रणे रामो बाहूंस्ते च्छेत्स्यतेऽर्जुन।। | 12-48-43a 12-48-43b |
अर्जुनस्तु महातेजा बली नित्यं शमात्मकः। ब्रह्मण्यश्च शरण्यश्च दाता शूरश्च भारत। नाचिन्तयत्तदा शापं तेन दत्तं महात्मना।। | 12-48-44a 12-48-44b 12-48-44c |
तस्य पुत्राः सुबलिनः शापेनासन्पितुर्वधे। निमित्तमवलिप्ता वै नृशंसाश्चैव नित्यदा।। | 12-48-45a 12-48-45b |
जमदग्नेस्तु धेन्वास्ते वत्समानिन्युरच्युत। अज्ञातं कार्तवीर्यस्य हैहयेन्द्रस्य धीमतः।। | 12-48-46a 12-48-46b |
तन्निमित्तमभूद्युद्धं जामदग्नेर्महात्मनः। ततोऽर्जुनस्य बाहून्स चिच्छेद रुषितोऽनघ।। | 12-48-47a 12-48-47b |
तं भ्रमन्तं ततो वत्सं जामदग्न्यः स्वमाश्रमम्। प्रत्यानयत राजेन्द्र तेषामन्तः पुरात्प्रभुः।। | 12-48-48a 12-48-48b |
अर्जुनस्य सुतास्ते तु संभूयाबुद्धयस्तदा। गत्वाऽऽश्रममसंबुद्धा जमदग्नेर्महात्मनः। अपातयन्त भल्लाग्रैः शिरः कायान्नराधिप।। | 12-48-49a 12-48-49b 12-48-49c |
समित्कुशार्थं रामस्य निर्यातस्य यशस्विनः। `प्रत्यक्षं राममातुश्च तथैवाश्रमवासिनाम्।। | 12-48-50a 12-48-50b |
श्रुत्वा रामस्तमर्थं च क्रुद्धः कालानलोपमः। धनुर्वेदेऽद्वितीयो हि दिव्यास्त्रैः समलंकृतः।। | 12-48-51a 12-48-51b |
चन्द्रबिम्बार्धसंकाशं परशुं गृह्य भार्गवः।' ततः पितृवधामर्षाद्रामः परममन्युमान्। निःक्षत्रियां प्रतिश्रुत्य महीं शस्त्रमगृह्णत।। | 12-48-52a 12-48-52b 12-48-52c |
ततः स भृगुशार्दूलः कार्तवीर्यस्य वीर्यवान्। विक्रम्य निजघानाशु पुत्रान्पौत्रांश्च सर्वशः।। | 12-48-53a 12-48-53b |
स हैहयसहस्राणि हत्वा परममन्युमान्। महीं सागरपर्यन्तां चकार रुधिरोक्षिताम्।। | 12-48-54a 12-48-54b |
स तथा सुमहातेजाः कृत्वा निःक्षत्रियां महीम्। कृपया परयाऽऽविष्टो वनमेव जगाम ह।। | 12-48-55a 12-48-55b |
ततो वर्षसहस्रेषु समतीतेषु केषुचित्। कोपं संप्राप्तवांस्तत्र प्रकृत्या कोपनः प्रभुः।। | 12-48-56a 12-48-56b |
विश्वामित्रस्य पौत्रस्तु रैभ्यपुत्रो महातपाः। परावसुर्महाराज क्षिप्त्वाऽऽह जनसंसदि।। | 12-48-57a 12-48-57b |
ये ते ययातिपतने यज्ञे सन्तः समागताः। प्रतर्दनप्रभृतयो राम किं क्षत्रिया न ते।। | 12-48-58a 12-48-58b |
मिथ्याप्रतिज्ञो राम त्वं कत्थसे जनसंसदि। भयात्क्षत्रियवीराणां पर्वतं समुपाश्रितः।। | 12-48-59a 12-48-59b |
सा पुनः क्षत्रियशतैः पृथिवी सर्वतः स्तृता। परावसोर्वचः श्रुत्वा शस्त्रं जग्राह भार्गवः।। | 12-48-60a 12-48-60b |
ततो ये क्षत्रिया राजञ्शतशस्तेन वर्जिताः। ते विवृद्धा महावीर्याः पृथिवीपतयोऽभवन्।। | 12-48-61a 12-48-61b |
स पुनस्ताञ्जघानाशु बालानपि नराधिप। गर्भस्थैस्तु मही व्याप्ता पुनरेवाभवत्तदा।। | 12-48-62a 12-48-62b |
जातंजातं स गर्भं तु पुनरेव जघान ह। अरक्षंश्च सुतान्कांश्चित्तदा क्षत्रिययोषितः।। | 12-48-63a 12-48-63b |
त्रिःसप्तकृत्वः पृथिवीं कृत्वा निःक्षत्रियां प्रभुः। दक्षिणामश्वमेधान्ते कश्यपायाददत्ततः।। | 12-48-64a 12-48-64b |
स क्षत्रियाणां शेषार्थं करेणोद्दिश्य कश्यपः। स्रुक्प्रग्रहवता राजंस्ततो वाक्यमथाब्रवीत्।। | 12-48-65a 12-48-65b |
गच्छ पारं समुद्रस्य दक्षिणस्य महामुने। न ते मद्विषये राम वस्तव्यमिह कर्हिचित्।। | 12-48-66a 12-48-66b |
`पृथिवी दक्षिणा दत्ता वाजिमेधे मम त्वया। पुनरस्याः पृथिव्या हि दत्त्वा दातुमनीश्वरः।।' | 12-48-67a 12-48-67b |
ततः शूर्पाकरं देशं सागरस्तस्य निर्ममे। संत्रासाज्जामदग्न्यस्य सोऽपरान्तमहीतलम्।। | 12-48-68a 12-48-68b |
कश्यपस्तां महाराज प्रतिगृह्य वसुंधराम्। कृत्वा ब्राह्मणसंस्थां वै प्रविष्टः सुमहद्वनम्।। | 12-48-69a 12-48-69b |
ततः शूद्राश्च वैश्याश्च यथा स्वैरप्रचारिणः। अवर्तन्त द्विजाग्र्याणां दारेषु भरतर्षभ।। | 12-48-70a 12-48-70b |
अराजके जीवलोके दुर्बला बलवत्तरैः। वध्यन्ते न हि वित्तेषु प्रभुत्वं कस्यचित्तदा।। | 12-48-71a 12-48-71b |
`ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शृद्राश्चोत्पथगामिनः। परस्परं समाश्रित्य घातयन्त्यपथस्थिताः।। | 12-48-72a 12-48-72b |
स्वधर्मं ब्राह्मणास्त्यक्त्वा पाषण्डत्वं समाश्रिताः। चौरिकानृतमायाश्च सर्वे चैव प्रकुर्वते।। | 12-48-73a 12-48-73b |
स्वधर्मस्थान्द्विजान्हत्वा तथाऽऽश्रमनिवासिनः। वैश्याः सत्पथसंस्थाश्च शूद्रा ये चैव धार्मिकाः।। | 12-48-74a 12-48-74b |
तान्सर्वान्घातयन्ति स्म दुराचाराः सुनिर्भयाः। यज्ञाध्ययनशीलांश्च आश्रमस्थांस्तपस्विनिः।। | 12-48-75a 12-48-75b |
गोबालवृद्धनारीणां नाशं कुर्वन्ति चापरे। आन्वीक्षकी त्रयी वार्ता न च नीतिः प्रवर्तते।। | 12-48-76a 12-48-76b |
व्रात्यतां समनुप्राप्ता बहवो हि द्विजातयः। अधरोत्तरापचारेण म्लेच्छभूताश्च सर्वशः।। ' | 12-48-77a 12-48-77b |
ततः कालेन पृथिवी पीड्यमाना दुरात्मभिः। विपर्ययेण तेनाशु प्रविवेश पसातलम्। अरक्ष्यमाणा विधिवत्क्षत्रियैर्धर्मरक्षिभिः।। | 12-48-78a 12-48-78b 12-48-78c |
तां दृष्ट्वा द्रवतीं तत्र संत्रासात्स महामनाः। ऊरुणा धारयामास कश्यपः पृथिवीं ततः। निमज्जन्तीं ततो राजंस्तेनोर्वीति मही स्मृता।। | 12-48-79a 12-48-79b 12-48-79c |
रक्षणार्थं समुद्दिश्य ययाचे पृथिवी तदा। प्रसाद्य कश्यपं देवी क्षत्रियान्बाहुशालिनः।। | 12-48-80a 12-48-80b |
पृथिव्युवाच। | 12-48-81x |
सन्ति ब्रह्मन्मया गुप्ताः स्त्रीषु क्षत्रियपुङ्गवाः। हैहयानां कुले जातास्ते संरक्षन्तु मां मुने।। | 12-48-81a 12-48-81b |
अस्ति पौरवदायादो विदूरथसुतः प्रभो। ऋक्षैः संवर्धितो विप्र ऋक्षवत्यथ पर्वते।। | 12-48-82a 12-48-82b |
तथाऽनुकम्पमानेन यज्वनाथामितौजसा। पराशरेण दायादः सौदासस्याभिरक्षितः।। | 12-48-83a 12-48-83b |
सर्वकर्माणि कुरुते शूद्रवत्तस्य स द्विजः। सर्वकर्मेत्यभिख्यातः स मां रक्षतु पार्थिवः।। | 12-48-84a 12-48-84b |
शिबिपुत्रो महातेजा गोपतिर्नाम नामतः। वने संवर्धितो गोभिः सोऽभिरक्षतु मां मुने।। | 12-48-85a 12-48-85b |
प्रतर्दनस्य पुत्रस्तु वत्सो नाम महाबलः। वत्सैः संवर्धितो गोष्ठे स मां रक्षतु पार्थिवः।। | 12-48-86a 12-48-86b |
दधिवाहनपुत्रस्तु पौत्रो दिविरथस्य च। अङ्गः स गौतमेनासीद्गङ्गाकूलेऽभिरक्षितः।। | 12-48-87a 12-48-87b |
बृहद्रथो महातेजा भूरिभूतिपरिष्कृतः। गोलाङ्गूलैर्महाभागो गृध्रकूटेऽभिरक्षितः।। | 12-48-88a 12-48-88b |
मरुत्तस्यान्ववाये च रक्षिताः क्षत्रियात्मजाः। मरुत्पतिसमा वीर्ये समुद्रेणाभिरक्षिताः।। | 12-48-89a 12-48-89b |
एते क्षत्रियदायादास्तत्रतत्र परिश्रुताः। व्योकारहेमकारादिजातिं नित्यं समाश्रिताः।। | 12-48-90a 12-48-90b |
यदि मामभिरक्षन्ति ततः स्थास्यामि निश्चला। एतेषां पितरश्चैव तथैव च पितामहाः।। | 12-48-91a 12-48-91b |
मदर्थं निहता युद्धे रामेणाक्लिष्टकर्मणा। तेषामपचितिश्चैव मया कार्या महामुने।। | 12-48-92a 12-48-92b |
न ह्यहं कामये नित्यमतिक्रान्तेन रक्षणम्। वर्तमानेन वर्तेयं तत्क्षिप्रं संविधीयताम्।। | 12-48-93a 12-48-93b |
वासुदेव उवाच। | 12-48-94x |
ततः पृथिव्या निर्दिष्टांस्तान्समानीय कश्यपः। अभ्यषिञ्चन्महीपालान्क्षत्रियान्वीर्यसंमतान्।। | 12-48-94a 12-48-94b |
तेषां पुत्राश्च पौत्राश्च येषां वंशाः प्रतिष्ठिताः। एवमेतत्पुरावृत्तं यन्मां पृच्छसि पाण्डव।। | 12-48-95a 12-48-95b |
वैशंपायन उवाच। | 12-48-96x |
एवं ब्रुवंस्तं च यदुप्रवीरो युधिष्ठिरं धर्मभृतां वरिष्ठम्। रथेन तेनाशु ययौ यथाऽर्को विशन्प्रभाभिर्भगवांस्त्रिलोकीम्।। | 12-48-96a 12-48-96b 12-48-96c 12-48-96d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि अष्टचत्वारिंशोऽध्यायः।। 48।। |
12-48-2 भारते भारतसंग्रामे।। 12-48-5 स्वयमेवान्वपद्यतेति झ. पाठः।। 12-48-8 गाधेः पुत्रार्थं तस्याश्च पुत्रार्थं चरुं चरुद्वयम्।। 12-48-9 उपयोज्यः भोज्यः भोक्तव्यः।। 12-48-18 व्यंसिता वञ्चिता।। 12-48-38 चित्रभानुना अग्निना।। 12-48-41 आपवस्य वसिष्ठस्य।। 12-48-42 श्रमे आश्रमे।। 12-48-45 पितुर्वधे वधनिमित्तमासन्।। 12-48-46 निमित्तादिति पाठे शापादेव हेतोः।। 12-48-60 स्तृता व्याप्ता। शास्त्रं जग्राह तत्कार्यं क्षत्रियाणामन्तं कृतवान्।। 12-48-61 वर्जिताः अहृताः।। 12-48-68 शूर्पारकमिति झ. पाठः।।। 12-48-79 धृता तेनोरुणा येन तेनोर्वीति झ. पाठः।। 12-48-84 द्विजः क्षत्रियोऽपि।। 12-48-92 अपचितिः आनृण्यार्थं पूजा।। 12-48-93 नित्यमतिक्रान्तेन धर्मातिक्रमिणा।।
शांतिपर्व-047 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शांतिपर्व-049 |