महाभारतम्-12-शांतिपर्व-002
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ब्रह्मास्त्रलाभाय द्रोणमुपगतेन कर्णेन तेन त्रैवर्णिकान्यत्वकथनेन प्रत्याख्याने परशुराममेत्य स्वस्य ब्राह्मण्यकथनपूर्वकमस्त्रार्थं तदन्तेवासित्वपरिग्रहः।। 1।। तत्र प्रमादेन विप्रगोवत्सघातिनः कर्णस्य विप्राच्छापप्राप्तिः।। 2।।
वैशंपायन उवाच। | 12-2-1x |
स एवमुक्तस्तु तदा नारदो वदतांवरः। कथयामास तत्सर्वं यथा शप्तः स सूतजः।। | 12-2-1a 12-2-1b |
नारद उवाच। | 12-2-2x |
एवमेतन्महाबाहो यथा वदसि भारत। न कर्णार्जुनयोः किंचिदविषह्यं भवेद्रणे।। | 12-2-2a 12-2-2b |
गुह्यमेतत्तु देवानां कथयिष्यामि ते नृप। तन्निबोध महाबाहो यथावृत्तमिदं पुरा।। | 12-2-3a 12-2-3b |
क्षत्रं स्वर्गं कथं गच्छेच्छस्त्रपूतमिति प्रभो। संघर्षजननस्तस्मात्कन्यागर्भो विसर्जितः।। | 12-2-4a 12-2-4b |
स बालस्तेजसा युक्तः सूतपुत्रत्वमागतः। चकाराङ्गिरसां श्रेष्ठे धनुर्वेदं गुरौ तव।। | 12-2-5a 12-2-5b |
स बलं भीमसेनस्य फल्गुनस्यास्त्रलाघवम्। बुद्धिं च तव राजेन्द्र यमयोर्विनयं तथा।। | 12-2-6a 12-2-6b |
सख्यं च वासुदेवेन बाल्ये गाण्डीवधन्वनः। राजानामनुरागं च चिन्तयानो व्यदह्यत।। | 12-2-7a 12-2-7b |
स सख्यमगमद्बाल्ये राज्ञा दुर्योधनेन च। युष्माभिर्नित्यसंघृष्टो दैवाच्चापि स्वभावतः।। | 12-2-8a 12-2-8b |
विद्याधिकमथालक्ष्य धनुर्वेदे धनञ्जयम्। द्रोणं रहस्युपागम्य कर्णो वचनमब्रवीत्।। | 12-2-9a 12-2-9b |
ब्रह्मास्त्रं वेत्तुमिच्छामि सरहस्यनिवर्तनम्। अर्जुनेन समो युद्धे भवेयमिति मे मतिः।। | 12-2-10a 12-2-10b |
समः पुत्रेषु च स्नेहः शिष्येषु च तव ध्रुवम्। त्वत्प्रसादान्न मा ब्रूयुरकृतास्त्रं विचक्षणाः।। | 12-2-11a 12-2-11b |
द्रोणस्तथोक्तः कर्णेन सापेक्षः फल्गुनं प्रति। दौरात्म्यं चैव कर्णस्य विदित्वा तमुवाच ह।। | 12-2-12a 12-2-12b |
ब्रह्मास्त्रं ब्राह्मणो विद्याद्यथावच्चरितव्रतः। क्षत्रियो वा तपस्वी यो नान्यो विद्यात्कथंचन।। | 12-2-13a 12-2-13b |
इत्युक्तोऽङ्गिरसां श्रेष्ठमामन्त्र्य प्रतिपूज्य च। जगाम सहसा राजन्महेन्द्रं पर्वतं प्रति।। | 12-2-14a 12-2-14b |
स तु राममुपागम्य शिरसाऽभिप्रणम्य च। ब्राह्मणो भार्गवोऽस्मीति गौरवेणाभ्यवन्दत।। | 12-2-15a 12-2-15b |
रामस्तं प्रतिजग्राह पृष्ट्वा गोत्रादि सर्वशः। उष्यतां स्वागतं चेति प्रीतिमांश्चाभवद्भृशम्।। | 12-2-16a 12-2-16b |
तत्र कर्णस्य वसतो महेन्द्रे स्वर्गसंमिते। गन्धर्वै राक्षसैर्यक्षैर्देवैश्चासीत्समागमः।। | 12-2-17a 12-2-17b |
स तत्रेष्वस्त्रमकरोद्भृगुश्रेष्ठाद्यथाविधि। प्रियश्चाभवदत्यर्थं देवदानवरक्षसाम्।। | 12-2-18a 12-2-18b |
स कदाचित्समुद्रान्ते विचरन्नाश्रमान्तिके। एकः खङ्गधनुष्पाणिः परिचक्राम सूतजः।। | 12-2-19a 12-2-19b |
सोऽग्निहोत्रप्रसक्तस्य कस्यचिद्ब्रह्मवादिनः। जघानाज्ञानतः पार्थ होमधेनुं यदृच्छया।। | 12-2-20a 12-2-20b |
तदज्ञानकृतं मत्वा ब्राह्मणाय न्यवेदयत्। कर्णः प्रसादयंश्चैनमिदमित्यब्रवीद्वचः।। | 12-2-21a 12-2-21b |
अबुद्धिपूर्वं भगवन्धेनुरेषा हता तव। मया तत्र प्रसादं मे कुरुष्वेति पुनः पुनः।। | 12-2-22a 12-2-22b |
तं स विप्रोऽब्रवीत्क्रुद्धो वाचा निर्भर्त्सयन्निव। दुराचार वधार्हस्त्वं फलं प्राप्स्यसि दुर्मते।। | 12-2-23a 12-2-23b |
येन विस्पर्धसे नित्यं यदर्थं घटसेऽनिशम्। युध्यतस्तेन ते पाप भूमिश्चक्रं ग्रसिष्यति।। | 12-2-24a 12-2-24b |
ततश्चक्रे महीग्रस्ते मूर्धानं ते विचेष्टतः। पातयिष्यति विक्रम्य शत्रुर्गच्छ नराधम।। | 12-2-25a 12-2-25b |
यथेयं गौर्हता मूढ प्रमत्तस्य त्वया मम। प्रमत्तस्यैव मे वाचा शिरस्ते पातयिष्यति।। | 12-2-26a 12-2-26b |
शप्तः प्रसादयामास कर्णस्तं द्विजसत्तमम्। गोभिर्धनैश्च रत्नैश्च स चैनं पुनरब्रवीत्।। | 12-2-27a 12-2-27b |
नेदमव्याहृतं कुर्याद्ब्रह्मलोकेऽपि केवलम्। गच्छ वा तिष्ठ वा यद्वा कार्यं यत्तत्समाचर।। | 12-2-28a 12-2-28b |
इत्युक्तो ब्राह्मणेनाथ कर्णो दैन्यादधोमुखः। राममभ्यागमद्भीतस्तदेव मनसा स्मरन्।। | 12-2-29a 12-2-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि राजधर्मपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2।। |
12-2-4 संघर्षजननो वैराग्न्युद्दीपकः। संचिन्त्य जनितस्तस्मादिति ट.ड. पाठः। कन्यागर्भो विनिर्मित इति झ. पाठः। तत्र कन्यागर्भो देवैः क्षत्रस्य स्वर्गमनाय निर्मित इत्यर्थः।। 12-2-5 चकाराऽधीतवान्। अङ्गिरसां श्रेष्ठे द्रोणे।। 12-2-8 दैवाद्देवानां संकल्पात्।। 12-2-10 रहस्यं तत्प्रसादनविधिर्निवर्तनमुपसंहारस्ताभ्यां सहितं सरहस्यनिवर्तनम्।। 12-2-15 गुरुरेव पितेत्यभिसंधिः 12-2-19 समुद्रान्ते दक्षिणसमुद्रसमीपे।। 12-2-20 होमधेनुं कर्णपर्वोक्तदिशा वत्सवध एवात्र धेनुवधो ज्ञेयः।। 12-2-26 प्रमत्तेन त्वया मम। प्रमत्तस्य तथाऽरातिरिति झ. पाठ।। 12-2-28 नेदं मद्वचनं कुर्याद्ब्रह्मलोकेऽपि चान्यथा इति ट. पाठः।।
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