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महाभारतम्-12-शांतिपर्व-001

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  360. 360
  361. 361
  362. 362
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  364. 364
  365. 365
  366. 366
  367. 367
  368. 368
  369. 369
  370. 370
  371. 371
  372. 372
  373. 373
  374. 374
  375. 375

गङ्गातीरे बन्धूनां कृतोदकं युधिष्ठिरंप्रति व्यासनारदादिमहर्षीणां समागमनम्।। 1।। युधिष्ठिरेण तत्र नारदंप्रति कर्णवृत्तान्तकथनप्रार्थना।। 2।।

श्रीवेदव्यासाय नमः। 12-1-1x
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।
12-1-1a
12-1-1b
वैशंपायन उवाच। 12-1-1x
कृत्वोदकं ते सुहृदां सर्वेषां पाण्डुनन्दनाः।
विदुरो धृतराष्ट्रश्च सर्वाश्च भरतस्त्रियः।।
12-1-1c
12-1-1d
तत्र ते सुमहात्मानो न्यवसन्कुरुनन्दनाः।
शौचं निर्वर्तयिष्यन्तो मासच्चात्रं बहिः पुरात्।।
12-1-2a
12-1-2b
कृतोदकं तु राजानं धर्मात्मानं युधिष्ठिरम्।
अभिजग्मुर्महात्मानः सिद्धा ब्रह्मर्षिसत्तमाः।।
12-1-3a
12-1-3b
द्वैपायनो नारदश्च देवलश्च महानृषिः।
देवस्थानश्च कण्वश्च तेषां शिष्याश्च सत्तमाः।।
12-1-4a
12-1-4b
अन्ये च वेदविद्वांसः कृतप्रज्ञा द्विजातयः।
गृहस्थाः स्नातकाः सन्तो ददृशुः कुरुसत्तमम्।।
12-1-5a
12-1-5b
तेऽभिगम्य महात्मानं पूजिताश्च यथाविधि।
आसनेषु महार्हेषु विविशुः परमर्षयः।।
12-1-6a
12-1-6b
प्रतिगृह्य ततः पूजां तत्कालसदृशीं तदा।
पर्युपांसन्यथान्यायं परिवार्य युधिष्ठिरम्।।
12-1-7a
12-1-7b
पुण्ये भागीरथीतीरे शोकव्याकुलचेतसम्।
आश्वासयन्तो राजेन्द्रं विप्राः शतसहस्रशः।।
12-1-8a
12-1-8b
नारदस्त्वव्रवीत्काले धर्मपुत्रं युधिष्ठिरम्।
संभाष्य मुनिभिः सार्धं कृष्णद्वैपायनादिभिः।।
12-1-9a
12-1-9b
नारद उवाच। 12-1-10x
पार्थस्य बाहुवीर्येण प्रसादान्माधवस्य च।
जिता सेयं मही कृत्स्ना धर्मेण च युधिष्ठिर।।
12-1-10a
12-1-10b
दिष्ट्या मुक्ताः स्थ संग्रामादस्माल्लोकभयंकरात्।
क्षत्रधर्मरतश्चासि कच्चिन्मोदसि पाण्डव।।
12-1-11a
12-1-11b
कच्चिच्च निहतामित्रः प्रीणासि सुहृदो नृप।
कच्चिच्छ्रियमिमां प्राप्य न त्वां शोकः प्रबाधते।।
12-1-12a
12-1-12b
युधिष्ठिर उवाच। 12-1-13x
विजितेयं मही कृत्स्ना कृष्णबाहुबलाश्रयात्।
ब्राह्मणानां प्रसादेन भीमार्जुनबलेन च।।
12-1-13a
12-1-13b
इदं तु मे महद्दुःखं वर्तते हृदि नित्यदा।
कृत्वा ज्ञातिक्षयमिमं महान्तं घोरदर्शनम्।।
12-1-14a
12-1-14b
सौभद्रं द्रौपदेयांश्च घातयित्वा सुतान्प्रियान्।
जयोऽयमजयाकारो भगवन्प्रतिभाति मे।।
12-1-15a
12-1-15b
किंनु वक्ष्यति वार्ष्णेयी वधूर्मे मधुसूदनम्।
द्वारकावासिनी कृष्णमितः प्रतिगतं हरिम्।।
12-1-16a
12-1-16b
द्रौपदी हतपुत्रेयं कृपणा हतबान्धवा।
अस्मत्प्रियहिते युक्ता भूयः पीडयतीव माम्।।
12-1-17a
12-1-17b
इदमन्यच्च भगवन्यत्त्वां वक्ष्यामि नारद।
मन्त्रसंवरणेनास्मि कुन्त्या दुःखेन योजितः।।
12-1-18a
12-1-18b
यः स नागायुतप्राणो लोकेऽप्रतिरथो रणे।
सिंहविक्रान्तगामी च जितकाशी यतव्रतः।।
12-1-19a
12-1-19b
आश्रयो धार्तराष्ट्राणां मानी तीक्ष्णपराक्रमः।
अमर्षी नित्यसंरम्भी क्षेप्ताऽस्माकं रणेरणे।।
12-1-20a
12-1-20b
शीघ्रास्त्रश्चित्रयोधी च कृती चाद्भुतविक्रमः।
गूढोत्पन्नः सुतः कुन्त्या भ्राताऽस्माकमसौ किल
12-1-21a
12-1-21b
तोयकर्मणि तं कुन्ती कथयामास मे तदा।
पुत्रं सर्वगुणोयेतं कर्णं त्यक्तं जले पुरा।।
12-1-22a
12-1-22b
मञ्जूषायां समाधाय गङ्गास्रोतस्यमज्जयत्।
यं सूतपुत्रं लोकोऽयं राधेयं चाभ्यमन्यत।।
12-1-23a
12-1-23b
स सूर्यपुत्रः कुन्त्या यै भ्राताऽस्माकं च मातृतः।
अजानता मया सड्ख्ये राज्यलुब्धेन घातितः।
तन्मे दहति गात्राणि तूलराशिमिवानलः।।
12-1-24a
12-1-24b
12-1-24c
न हि तं वेद पार्थोऽपि भ्रातरं श्वेतवाहनः।
नाहं न भीमो न यमौ स त्वस्मान्वेद तत्वतः।।
12-1-25a
12-1-25b
गता किल पृथा तस्य सकाशमिति नः श्चुतम्।
अस्माकं शमकामा वै त्वं च पुत्रो ममेत्यथ।।
12-1-26a
12-1-26b
पृथाया न कृतः कामस्तेन चापि महात्मना।
अतीवानुचितं मातरवोच इति सोऽब्रवीत्।।
12-1-27a
12-1-27b
न हि शक्ष्यामि संत्यक्तुमहं दुर्योधनं रणे।
अनार्यत्वं नृशंसत्वं कृतघ्नत्वं च मे भवेत्।।
12-1-28a
12-1-28b
युधिष्ठिरेण सन्धिं हि यदि कुर्यां मते तव।
भीतो रणे श्वेतवाहादिति मां मंस्यते जनः।।
12-1-29a
12-1-29b
सोऽहं निर्जित्य समरे विजयं सहकेशवम्।
संधास्ये धर्मपुत्रेण पश्चादिति च सोऽब्रवीत्।।
12-1-30a
12-1-30b
तमवोचत्किल पृथा पुनः पृथुलवक्षसम्।
चतुर्णामभयं देहि कामं युध्यस्व फल्गुनम्।।
12-1-31a
12-1-31b
सोऽब्रवीन्मातरं धीमान्वेपमानां कृताञ्जलिः।
प्राप्तान्विषह्यांश्चतुरो न हनिष्यामि ते सुतान्।।
12-1-32a
12-1-32b
पञ्चैव हि सुता देवि भविष्यन्ति तव ध्रुवाः।
सार्जुना वा हते कर्णे सकर्णा वा हतेऽर्जुने।।
12-1-33a
12-1-33b
तं पुत्रगृद्धिनी भूयो माता पुत्रमथाब्रवीत्।
भ्रातॄणां स्वस्ति कुर्वीथा येषां स्वस्ति चिकीर्षसि।।
12-1-34a
12-1-34b
एवमुक्त्वा किल पृथा विसृज्योपययौ गृहान्।
सोऽर्जुनेन हतो वीरो भ्रात्रा भ्राता सहोदरः।।
12-1-35a
12-1-35b
न चैव निःसृतो मन्त्रः पृथायास्तस्य वा मुने।
अथ शूरो महेष्वासः पार्थेनाजौ निपातितः।।
12-1-36a
12-1-36b
अहं त्वज्ञासिषं पश्चात्स्वसोदर्यं द्विजोत्तम।
पूर्वजं भ्रातरं कर्णं पृथाया वचनात्प्रभो।।
12-1-37a
12-1-37b
तेन मे दूयते तीव्रं हृदयं भ्रातृघातिनः।
कर्णार्जुनसहायोऽहं जयेयमपि वासवम्।।
12-1-38a
12-1-38b
सभायां क्लिश्यमानस्य धार्तराष्ट्रैर्दुरात्मभिः।
सहसोत्पतितः क्रोधः कर्णं दृष्ट्वा प्रशाम्यति।।
12-1-39a
12-1-39b
यदा ह्यस्य गिरो रूक्षाः श्रृणोमि कटुकोदयाः।
सभायां गदतो द्यूते दुर्योधनहितैषिणः।।
12-1-40a
12-1-40b
तदा नश्यति मे रोषः पादौ तस्य निरीक्ष्य ह।
कुन्त्या हि सदृशौ पादौ कर्णस्येति मतिर्मम।।
12-1-41a
12-1-41b
सादृश्यहेतुमन्विच्छन्पृथायास्तस्य चैव ह।
कारणं नाधिगच्छामि कथंचिदपि चिन्तयन्।।
12-1-42a
12-1-42b
कथं नु तस्य संग्रामे पृथिवी चक्रमग्रसत्।
कथं नु शप्तो भ्राता मे तत्त्वं वक्तुमिहार्हसि।।
12-1-43a
12-1-43b
श्रोतुमिच्छामि भगवंस्त्वत्तः सर्वं यथातथम्।
भवान्हि सर्वविद्विद्वाँल्लोके वेद कृताकृतम्।।
12-1-44a
12-1-44b
।। इति श्रीमन्महाभारते शान्तिपर्वणि
राजधर्मपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1।।

12-1-1 कृतोदकास्ते इति झ. पाठः।। 12-1-2 तत्र गङ्गातीरे।। 12-1-8 आश्वासयन्तः हेतौ शतृप्रत्ययः। आश्वासनार्थं पर्युपासन्नित्यर्थः।। 12-1-16 वधूः कनिष्ठभ्रातृभार्यात्वात्स्नुषाभूता। वार्ष्णेयी सुभद्रा।। 12-1-18 मन्त्रसंवरणेन गूढोत्पन्नस्यास्मद्भातुः कर्णस्याप्रकाशेन।। 12-1-20 अमर्षी परोत्कर्षासहिष्णुः। नित्यसंरम्भी सदा क्रोधवान्।। 12-1-24 मातृतः मातृसंबन्धेन।। 12-1-26 पाण्डववत् त्वं च पुत्रो मभेत्यव्रवीदिति शेषः।। 12-1-27 कामोऽभिलषितम्।। 12-1-32 वध्यान्विषबह्यानिति थ. पाठःo। विषह्यान्वशगान्।। 12-1-35 विसृज्य कर्णमिति शेषः।। 12-1-43 चक्रं रथचक्रम्।। 12-1-44 कृतं कार्यम्। अकृतं कारणम्।।

शांतिपर्व पुटाग्रे अल्लिखितम्। शांतिपर्व-002