महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-239
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कर्णशकुन्यादिभिर्द्वैतवनगमने घोषयात्राया उपायत्वनिर्धारणम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-239-1x |
कर्णस्य वचनं श्रुत्वा राजा दुर्योधनस्ततः। हृष्टो भूत्वापुनर्दीनो राधेयमिदमब्रवीत् ।। | 3-239-1a 3-239-1b |
ब्रवीषि यदिदं कर्ण सर्वं मनसि मे स्थितम्। न त्वभ्यनुज्ञां लप्स्यामि गमने यत्रपाण्डवाः ।। | 3-239-2a 3-239-2b |
परिदेवति तान्वीरान्धृतराष्ट्रो महीपतिः। मन्यतेऽभ्यधिकांश्चापि तपोयोगेन पाण्डवान् ।। | 3-239-3a 3-239-3b |
अथवाऽप्यनुबुध्येत नृपोऽस्माकं चिकीर्षितम्। एतामप्यायतिं रक्षन्नाभ्यनुज्ञातुमर्हति ।। | 3-239-4a 3-239-4b |
न हि द्वैतवने किंचिद्विद्यतेऽन्यत्प्रयोजनम्। उन्माथनमृते तेषां वनस्थानामपि द्विषाम् ।। | 3-239-5a 3-239-5b |
जानासिहि यथा क्षत्ता द्यूतकाल उपस्थिते। अब्रवीद्यच्च मां त्वां च सौबलं वचनं तदा ।। | 3-239-6a 3-239-6b |
तानिसर्वाणि वाक्यानि यच्चान्यत्परिदेवितम्। विचिन्त्य निश्चय गच्छे गमनायेतराय वा ।। | 3-239-7a 3-239-7b |
ममापि हिमहान्हर्षो यदहं भीमफल्गुनौ। क्लिष्टावरण्ये पश्येयं कृष्णया सहिताविति ।। | 3-239-8a 3-239-8b |
न तथा ह्याप्नुयां प्रीतिमवाप्य वसुधामिमाम्। दृष्ट्वा यथा पाण्डुसुतान्वल्कलाजिनवाससः ।। | 3-239-9a 3-239-9b |
किंनु स्यादधिकं तस्माद्यदहं द्रुपदात्मजाम्। द्रौपदीं कर्ण पश्येयं काषायवसनां वने ।। | 3-239-10a 3-239-10b |
यदि मां दर्मराजश्च भीमसेनश्च पाण्डवः। युक्तं रपरमया लक्ष्म्या पश्येतां जीवितं भवेत् ।। | 3-239-11a 3-239-11b |
उपायं न तु पश्यामि येन गच्छेम तद्वनम्। यथाचाभ्यनुजानीयाद्गच्छन्तं मां महीपतिः ।। | 3-239-12a 3-239-12b |
स सौबलेन सहितस्तथा दुःशासनेन च। उपायं पश्य रनिपुणं येन गच्छेम तद्वनम् ।। | 3-239-13a 3-239-13b |
अहमप्यनुगच्छामि गमनायेतराय च। कल्यमेव गमिष्यामि समीपं पार्थिवस्य ह ।। | 3-239-14a 3-239-14b |
मयि तत्रोपविष्टे तु भीष्मे च कुरुसत्तमे। उपायो यो भवेद्दृष्टस्तं ब्रूयाः सहसौबलः ।। | 3-239-15a 3-239-15b |
ततो भीष्मस्य राज्ञश्च निशम्य रगमनं प्रति। व्यवसायं करिष्येऽहमनुनीय पितामहम् ।। | 3-239-16a 3-239-16b |
तथेत्युक्त्वा तु ते सर्वेग्मुरावसथान्प्रति। व्युषितायां रजन्यां तु कर्णो राजानमभ्ययात् ।। | 3-239-17a 3-239-17b |
ततो दुर्योधनं कर्णः प्रहसन्निदमब्रवीत्। उपायः परिदृष्टोऽयं तं निबोधजनेश्वर ।। | 3-239-18a 3-239-18b |
घोषा द्वैतवने सर्वेत्वत्प्रतीक्षा नराधिप। घोषयात्रापदेशेन गमिष्यामो न संशयः ।। | 3-239-19a 3-239-19b |
उचितं हि सदा गन्तुं घोषयात्रां विशांपते। एवं चेत्त्वां पिता राजन्समनुज्ञातुमर्हति ।। | 3-239-20a 3-239-20b |
तथा कथयमानौ तु घोषयात्राविनिश्चयम्। गान्धारराजः शकुनिरित्युवाच हसन्निव ।। | 3-239-21a 3-239-21b |
उपायोऽयंमया दृष्टो गमनाय निरामयः। अनुज्ञास्यतिनो राजा चोदयिष्यति चाप्युत ।। | 3-239-22a 3-239-22b |
घोषा द्वैतव्रने सर्वेत्वत्प्रतीक्षा नराधिप। घोषयात्रापदेशेन गमिष्यामः सरः प्रति ।। | 3-239-23a 3-239-23b |
ततः प्रहसिताः सर्वे तेऽन्योन्यस्य तलान्ददुः। तदेव च विनिश्चेत्य ददृशुः कुरुसत्तमम् ।। | 3-239-24a 3-239-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि एकोनचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। |
3-239-4 आयतिमुत्तरकालम् ।। 3-239-7 इतरायावस्थानाय ।। 3-239-11 लक्ष्म्या उपेतं पश्येतां चेज्जीवितं युक्तमिति संबन्धः ।। 3-239-14 अह्मप्यद्यनिश्चित्य इति झ. पाठः। कल्यं प्रातः ।। 3-239-15 वचो भीष्मस्य इति झ. पाठः ।। 3-239-19 घोषा गोव्रजाः ।। 3-239-22 अयमुपायो घोषयात्रैव ।। 3-239-24 तलान् हस्ततलानि ।।
घोष -
देविकायां वृषो नाम कूपः सिद्धनिषेवितः ।
समुत्पतन्ति तस्यापो गवां शब्देन नित्यशः ॥ ब्रह्माण्डपुराणम् २,१३.४१
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