महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-233
दिखावट
← आरण्यकपर्व-232 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-233 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-234 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
मार्कण्डेयेन युधिष्ठिराय स्कन्दनाम्नां कीर्तनम् ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-233-1x |
भगवञ्श्रोतुमिच्छामि नामानि च महात्मनः। तरिषु लोकेषु यान्यस्य विख्यातानि द्विजोत्तम ।। | 3-233-1a 3-233-1b |
वैशंपायन उवाच। | 3-233-2x |
इत्युक्तः पाण्डवेयेन महात्मा ऋषिसन्निधौ। उवाच भगवांस्तत्र मार्कण्डेयो महातपाः ।। | 3-233-2a 3-233-2b |
आगेयश्चैव स्कनदश्च दीप्तकीर्तिरनामयः। मयूरकेतुर्धर्मात्मा भूतेशो महिषार्दनः ।। | 3-233-3a 3-233-3b |
कामजित्कामदः कान्तः सत्यवाग्भुवनेश्वरः। शिशुः शीघ्रः शुचिश्चण्डो दीप्तवर्णः शुभाननः ।। | 3-233-4a 3-233-4b |
अमोघस्त्वनघो रौद्रः प्रियश्चन्द्राननस्तथा। दीप्तशक्तिः प्रशान्तात्मा नद्रकुक्कुटमोहनः ।। | 3-233-5a 3-233-5b |
षष्ठीप्रियश्च धर्मात्मा पवित्रो मातृवत्सलः। कन्याभर्ता विभक्तश्च स्वाहेयो रेवतीसुतः ।। | 3-233-6a 3-233-6b |
प्रभुर्नेता विशाखश्च नैगमेयः सुदुश्चरः। सुव्रतो ललितश्चैवबालक्रीडनकप्रियः ।। | 3-233-7a 3-233-7b |
खचारी ब्रह्मचारी च शूरः शरवणोद्भवः। विश्वामित्रप्रियश्चैव देवसेनाप्रियस्तथा। वासुदेवप्रियश्चैव प्रियः प्रियकृदेव तु ।। | 3-233-8a 3-233-8b 3-232-8c |
नामान्येतानि दिव्यानि कार्तिकेयस्य यः पठेत्। स्वर्गं कीर्तिं धनं चैव स लभेन्नात्र संशयः ।। | 3-233-9a 3-233-9b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-233-10x |
स्तोष्यामि देवैर्ऋषिभिश्च जुष्टं शक्त्या गुहंनामभिरप्रमेयम्। षडाननं शक्तिधरं सुवीरं निबोध चैतानि कुरुप्रवीर ।। | 3-233-10a 3-233-10b 3-233-10c 3-233-10d |
ब्रह्मण्यो वै ब्रहमजो ब्रह्मविच्च ब्रह्मेशयो ब्रह्मवतांवरिष्ठः। ब्रह्मप्रियो ब्राह्मणसर्वमन्त्री त्वं ब्रह्मणां ब्राह्मणानांच नेता ।। | 3-233-11a 3-233-11b 3-233-11c 3-233-11d |
स्वाहा स्वधा त्वंपरमं पवित्रं मन्त्रस्तुतस्त्वंप्रथितः षडर्चिः। संवत्सरस्त्वमृतवश्च षड्वै मासार्धमासाश्चदिनं दिशश्च ।। | 3-233-12a 3-233-12b 3-233-12c 3-233-12d |
त्वंपुष्कराक्षस्त्वरविन्दवक्रः सहस्रचक्षोसि सहस्रबाहुः। त्वं लोकपालः परमं हविश्च त्वं भावनः सर्वसुरासुराणाम् ।। | 3-233-13a 3-233-13b 3-233-13c 3-233-13d |
त्वमेव सेनाधिपतिः प्रचण्डः प्रभुर्विभुश्चाप्यथ शक्रजेता। सहस्रपात्त्वं धरणी त्वमेव सहस्रतुष्टिश्च सहस्रभुक्व ।। | 3-233-14a 3-233-14b 3-233-14c 3-233-14d |
सहस्रशीर्षस्त्वमनन्तरूपः। सहस्रपात्त्वंदशशक्तिधारी। गङ्गासुतस्त्वं स्वमतेन देव स्वाहामहीकृत्तिकानां तथैव ।। | 3-233-15a 3-233-15b 3-233-15c 3-233-15d |
त्वं क्रीडसे षण्मुख कुक्कुटेन यथेष्टनानाविधकामरूपी। दीक्षाऽसि सोमो मरुतः सदैव धर्मोऽसि वायुरचलेन्द्र इन्द्रः ।। | 3-233-16a 3-233-16b 3-233-16c 3-233-16d |
सनातनानामपि शाश्वतस्त्वं प्रभुः प्रभूणामपि चोग्रधन्वा। ऋतस्य कर्ता दितिजान्तकस्त्वं जता रिपूणां प्रवरः सुराणाम् ।। | 3-233-17a 3-233-17b 3-233-17c 3-233-17d |
सूक्ष्मं तपस्तत्परमं त्वमेव परावरज्ञोसि परावरस्त्वम्। धर्मस्य कामस्य परस्य चैव त्वत्तेजसा कत्स्नमिदं महात्मन् ।। | 3-233-18a 3-233-18b 3-233-18c 3-233-18d |
व्याप्तं जगत्सर्वसुरप्रवीर शक्त्या मया संस्तुत लोकनाथ। नमोस्तु ते द्वादशनेत्रबाहो अतः परं वेद्मि गतिं न तेऽहम् ।। | 3-233-19a 3-233-19b 3-233-19c 3-233-19d |
स्कन्दस्य य इदं विप्रः पठेज्जन्म समाहितः। श्रावयेद्ब्राह्मणेभ्यो यः शृणुयाद्वा द्विजेरितम् ।। | 3-233-20a 3-233-20b |
धनमायुर्यशो दीप्तं पुत्राञ्शत्रुजयं तथा। स पुष्टितुष्टी संप्राप्य स्कन्दसालोक्यमाप्नुयात् ।। | 3-233-21a 3-233-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि त्रयस्त्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 233 ।। |
3-233-4 कामजित्पूणमनोरथः ।। 3-233-10 जुष्टं सेवितम् ।। 3-233-11 ब्रह्मण्यो ब्राह्मणेषु साधुः। ब्रह्मजोवेदोक्तेन गर्भाधानादिकर्मणाजातः। ब्रह्मविद्वेदार्थज्ञाता। ब्रह्मे ब्रह्मणि कर्मब्रह्मरूपे शेते इति ब्रह्मेशयः। अदन्तत्वमार्षम्। कर्मब्रह्मनिष्ठावानित्यर्थः। ब्राह्मणसव्रतीति पाठे ब्राह्मणो ब्रह्मवित्तेन सह समानं व्रतमद्वेष्टृत्वादिरूपं यस्य स ब्राह्मणसव्रती ।। 3-233-12 वषडर्चिःषण्मुखत्वात्वड्जिह्वः ।।
आरण्यकपर्व-232 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-234 |