महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-154
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सौगन्धिकसरोविविक्षुं भीमंप्रति तद्रक्षिभिः क्रोधवशनामकै राक्षसैस्तच्चिकीर्षिप्रश्नः ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-154-1x |
स गत्वानलिनीं रम्यां राक्षसैरभिरक्षिताम्। कैलासशिरे रम्ये ददर्श शुभकानने ।। | 3-154-1a 3-154-1b |
कुबेरभुवनाभ्याशे जातां पर्वतनिर्झरैः। सुरम्यां विपुलच्छायां नानाद्रुमलताकुलाम् ।। | 3-154-2a 3-154-2b |
हरिताम्बुजसंछन्नां दिव्यां कनकपुष्कराम्। नानापक्षिजनाकीर्णां सूपतीर्थामकर्दमाम् ।। | 3-154-3a 3-154-3b |
अतीव रम्यां सुजलां जातां पर्वतसानुषु। विचित्रभूतां लोकस्य शुभामद्भुतदर्शनाम् ।। | 3-154-4a 3-154-4b |
तत्रामृतरसं शीतं लघु कुन्तीसुतः शुभम्। ददर्शविमलं तोयं पिबंश्च बहु पाण्डवः ।। | 3-154-5a 3-154-5b |
तां तु कपुष्करिणीं रम्यां दिव्यसौगन्धिकावृताम्। जातरूपमयैः पद्मैश्छन्नां परमगन्धिभिः ।। | 3-154-6a 3-154-6b |
वैडूर्यवरनालैश्च बहुचित्रैर्मनोरमैः। हंसकारण्डवोद्धूतैः सृजद्भिरमलं रजः ।। | 3-154-7a 3-154-7b |
आक्रीडं राजराजस् कुबेरस्य महात्मनः। गन्धर्वैरप्सरोभिश्च देवैश्च परमार्चिताम् ।। | 3-154-8a 3-154-8b |
सेवितामृषिभिर्दिव्यैर्यक्षैः किंपुरुषैस्तथा। राक्षसैः किंनरैश्चापि गुप्तां वैश्रवणेन च ।। | 3-154-9a 3-154-9b |
तां च दृष्ट्वैव कौन्तेयो भीमसेनो महाहलः। बभूव परमप्रीतो दिव्यंप्रेक्ष्य सरो महत् ।। | 3-154-10a 3-154-10b |
तच्च क्रोवशा नाम राक्षसा राजशासनात्। रक्षन्ति शतसाहस्राश्चित्रायुधपरिच्छदाः ।। | 3-154-11a 3-154-11b |
ते तु दृष्ट्वैव कौन्तेयमजिनैः परिवारितम्। रुक्माङ्गदधरं वीरं भीमं भीमपराक्रमम् ।। | 3-154-12a 3-154-12b |
सायुधं बद्धनिस्त्रिंशमशङ्कितमरिंदमम्। पुष्करप्सुमुपायान्तमन्योन्यमभिचुक्रुशुः ।। | 3-154-13a 3-154-13b |
अयं पुरुषशार्दूलः सायुधोऽजिनसंवृतः। यच्चिकीर्षुरिह प्राप्तस्तत्संप्रष्टुमिहार्हथ ।। | 3-154-14a 3-154-14b |
ततः सर्वे महाबाहुं समासाद्यवृकोदरम्। तेजोयुक्तमपृच्छन्त कस्त्वमाख्यातुमर्हसि ।। | 3-154-15a 3-154-15b |
मुनिवेषधरश्चैव सायुधश्चैव लक्ष्यसे। यदर्थमाभिसंप्राप्तस्तदाचक्ष्यमहामते ।। | 3-154-16a 3-154-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्तयात्रापर्वणि चतुःपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ।। 154 ।। |
3-154-3 सूपतीर्थां शोभनानि उपतीर्थानि तीराणि यस्यां सा ।। 3-154-5 लघु आरोग्यकरम् ।। 3-154-6 जातरूपं स्वर्णम् ।। 3-154-8 आक्रीडं क्रीडास्थानम् ।।
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