महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-048
दिखावट
← आरण्यकपर्व-047 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-048 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-049 → |
धृतराष्ट्रेण संजयाग्रे पाण्डवपराक्रमस्मरणेन पुत्रान्प्रति परिशोचनम् ।। 1 ।। संजयेन धृतराष्ट्रंप्रति स्वस्य चारमुस्वात् पाण्डवदिदृक्षया वनं गतानां कृष्णादीनां दुर्योधनादिवधप्रतिज्ञाश्रवणकथनम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-48-1x |
तेषां तच्चरितं श्रुत्वा मनुष्यातीतमद्भुतम्। चिन्ताशोकपरीतात्मा मन्युनाभिपरिप्लुतः ।। | 3-48-1a 3-48-1b |
दीर्घमुष्णं च निःश्वस्य धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। अब्रवीत्संजयं सूतमामन्त्र्य भरतर्षभ ।। | 3-48-2a 3-48-2b |
न रात्रौ न दिवा सूत शान्तिं प्राप्नोमि वैक्षणम्। संचिन्त्य दुर्णयं घोरमतीतं द्यूतजं हि तत् ।। | 3-48-3a 3-48-3b |
तेषामसह्यवीर्याणां शौर्यं धैर्यं धृतिं पराम्। अन्योन्यमनुरागं च भ्रातॄणामतिमानुषम् ।। | 3-48-4a 3-48-4b |
देवपुत्रौ महाभागौ देवराजसमद्युती। नकुलः सहदेवश्च पाण्डवौ युद्धदुर्मदौ ।। | 3-48-5a 3-48-5b |
दृढायुधौ दूरपातौ युद्धे च कृतनिश्चयौ। शीघ्रहस्तौ दृढक्रोधौ नित्ययुक्तौ रथे स्थितौ ।। | 3-48-6a 3-48-6b |
भीमार्जुनौ पुरोधाय यदा तौ रणमूर्धनि। स्थास्येते सिंहविक्रान्तावश्विनाविव दुःसहौ ।। | 3-48-7a 3-48-7b |
निःशेषमिह पश्यामि मम सैन्यस्य संजय ।। | 3-48-8a |
तौ ह्यप्रतिरथौ युद्धे देवपुत्रौ महारथौ। द्रौपद्यास्तं परिक्लेशं न क्षंस्येतेऽत्यमर्षिणौ ।। | 3-48-9a 3-48-9b |
वृष्णयोऽथ महेष्वासाः पाञ्चाला वा महौजसः। युधि सत्याभिसन्धेन वासुदेवेन रक्षिताः। प्रधक्ष्यन्ति रणे पार्थाः पुत्राणां मम वाहिनीम् ।। | 3-48-10a 3-48-10b 3-48-10c |
रामकृष्णप्रणीतानां वृष्णीनां सूतनन्दन। न शक्यः सहितुं वेगः पर्वतैरपि दुःसहः ।। | 3-48-11a 3-48-11b |
तेषां मध्ये महेष्वासो भीमो भीमपराक्रमः। शैक्यया वीरघातिन्या गदया विचरिष्यति ।। | 3-48-12a 3-48-12b |
तथा गाण्डीवनिर्घोषं विस्फूर्जितमिवाशनेः। गदावेगं च भीमस्य नालं सोढुं नराधिपाः ।। | 3-48-13a 3-48-13b |
ततोऽहं सुहृदां वाचो दुर्योधनवशानुगः। स्मरणीयाः स्मरिष्यामि मया या न कृताः पुरा ।। | 3-48-14a 3-48-14b |
संजय उवाच। | 3-48-15x |
व्यतिक्रमोऽयं सुमहांस्त्वया राजन्नुपेक्षितः। समर्थेनापि यन्मोहात्पुत्रस्ते न निवारितः ।। | 3-48-15a 3-48-15b |
श्रुत्वाऽयं निर्जितान्द्यूते पाण्डवान्मधुसूदनः। त्वरितः कामय्के पार्थान्समभावयदच्युतः ।। | 3-48-16a 3-48-16b |
द्रुपदस्य तथा पुत्रा धृष्टद्युम्नपुरोगमाः। विराटो धृष्टकेतुश्च केकयाश्च महारथाः ।। | 3-48-17a 3-48-17b |
तैश्च यत्कथितं राजन्दृष्ट्वा पार्थान्पराजितान्। चारेण विदितं सर्वं तन्मया वेदितं च ते ।। | 3-48-18a 3-48-18b |
समागम्य वृतस्तत्र पाण्डवैर्मधुसूदनः। सारथ्ये फल्गुनस्याजौ तथेत्याह च तान्हरिः ।। | 3-48-19a 3-48-19b |
अमर्षितो हि कृष्णोपि दृष्ट्वा पार्थांस्तदा गतान्। कृष्णाजिनोत्तरासङ्गानब्रवीच्च युधिष्ठिरम् ।। | 3-48-20a 3-48-20b |
या सा समृद्धिः पार्थानामिन्द्रप्रस्थे बभूव ह। राजसूये मया दृष्टा नृपैरन्यैः सुदुर्लभा ।। | 3-48-21a 3-48-21b |
यत्रसर्वान्महीपालाञ्शस्त्रतेजोभयार्दितान्। सवङ्गाङ्गान्सपौण्ड्रौढ्रान्सचोलद्रविडान्ध्रकान् ।। | 3-48-22a 3-48-22b |
सागरानूपकांश्चैव ये च पत्तनवासिनः। सिंहलान्बर्बरान्म्लेच्छान्ये च लङ्कानिवासिनः ।। | 3-48-23a 3-48-23b |
पश्चिमानि चराष्ट्राणि शतशः सागरान्तिकान्। पह्लवान्दरदान्सर्वान्किरातान्यवनाञ्शकान् ।। | 3-48-24a 3-48-24b |
हारहूणांश्च चीनांश्च तुषारान्सैन्धवांस्तथा। जागुडान्रामठान्मुण्डान्स्त्रीराज्यमथ तङ्गणान् ।। | 3-48-25a 3-48-25b |
केकयान्मालवांश्चैव तथा काश्मीरकानपि। अद्राक्षमहमाहूतान्यज्ञे ते परिवेषकान् ।। | 3-48-26a 3-48-26b |
सा ते समृद्धिर्यैरात्ता चपला प्रतिसारिणी। आदाय जीवितं तेषामाहरिष्यामि तामहम् ।। | 3-48-27a 3-48-27b |
रामेण सह कौरव्य भीमार्जुनवयैस्तथा। अक्रूरगदसाम्बैश्च प्रद्युम्नेनाहुकेन च ।। | 3-48-28a 3-48-28b |
धृष्टद्युम्नेन वीरेण शिशुपालात्मजेन च। दुर्योधनं रणे हत्वा सद्यः कर्णं च भारत। दुःशासनं सौबलेयं यश्चान्यः प्रतियोत्स्यति ।। | 3-48-29a 3-48-29b 3-48-29c |
ततस्त्वं हास्तिनपुरे भ्रातृभिः सहितो वसन्। धार्तराष्ट्रीं श्रियं प्राप्य प्रशाधि पृथिवीमिमां ।। | 3-48-30a 3-48-30b |
अथैनमब्रवीद्राजा तस्मिन्वीरसमागमे। शृण्वत्स्वेतेषु वीरेषु धृष्टद्युम्नमुखेषु च ।। | 3-48-31a 3-48-31b |
प्रतिगृह्णामि ते वाचमिमां सत्यां जनार्दन। अमित्रान्मे महाबाहो सानुबन्धान्हनिष्यसि ।। | 3-48-32a 3-48-32b |
वर्षात्रयोदशादूर्ध्वं सत्यं मां कुरु केशव। प्रतिज्ञातो वने वासो राज्ञांमध्ये मया ह्ययम् ।। | 3-48-33a 3-48-33b |
धर्मराजस्य वचनं प्रतिश्रुत्य सभासदः। धृष्टद्युम्नपुरोगास्ते समयामासुऱञ्जसा ।। | 3-48-34a 3-48-34b |
केशवं मधुरैर्वाक्यैः कालयुक्तैरमर्षितम्। पाञ्चालीं प्राहुरक्लिष्टां वासुदेवस्य शृण्वतः ।। | 3-48-35a 3-48-35b |
दुर्योधनस्तव क्रोधाद्देवि त्यक्ष्यति जीवितम्। प्रतिजानीम ते सत्यं मा शुचो वरवर्णिनि ।। | 3-48-36a 3-48-36b |
ये स्म ते कुरवः कृष्णे दृष्ट्वा त्वां प्राहसंस्तदा। मांसानि तेषां खादन्तो हरिष्यन्ति वृकद्विजाः ।। | 3-48-37a 3-48-37b |
पास्यन्ति रुधिरं तेषां गृध्रा गोमायवस्तथा। उत्तमाङ्गानि कर्षन्तो यैः कृष्टाऽसि सभातले ।। | 3-48-38a 3-48-38b |
तेषां द्रक्ष्यसि पाञ्चालि गात्राणि पृथिवीतले। क्रव्यादैः कृष्यमाणानि भक्ष्यमाणानि चासकृत् ।। | 3-48-39a 3-48-39b |
परिक्लिष्टाऽसियैस्तत्रयैश्चासि समुपेक्षिता। तेषामुत्कृत्तशिरसां भूमिः पास्यति शोणितम् ।। | 3-48-40a 3-48-40b |
एवं बहुविधा वाचस्त ऊचुः पुरुषर्षभाः। सर्वेतेजस्विनः शूराः सर्वेचाहतलक्षणाः ।। | 3-48-41a 3-48-41b |
ते धर्मराजेन वृतावर्षादूर्ध्वं त्रयोदशात्। पुरस्कृत्योपयास्यन्ति वासुदेवं महारथाः ।। | 3-48-42a 3-48-42b |
रामश्च कृष्णश्च धनंजयश्च प्रद्युम्नसाम्बौ युयुधानभीमौ। माद्रीसुतौ केकयराजपुत्राः पाञ्चालपुत्राः सह मत्स्यराज्ञा ।। | 3-48-43a 3-48-43b 3-48-44c 3-48-43d |
एतान्सर्वाल्लोँकवीरानजेया- न्महात्मनः सानुबन्धान्ससैन्यान्। को जीवितार्थी समरेऽभ्युदीया- त्क्रुद्धान्सिंहान्केसरिणो यथैव ।। | 3-48-44a 3-48-44b 3-48-44c 3-48-44d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 3-48-45x |
यन्माऽब्रवीद्विदुरो द्यूतकाले त्वं पाण्डवाञ्जेषय्सि चेन्नरेन्द्र। ध्रुवं कुरूणामयमन्तकालो महाभयो भविता शोणितौधः ।। | 3-48-45a 3-48-45b 3-48-45c 3-48-45d |
मन्ये यथा तद्भवितेति सूत यथा क्षत्ता प्राह वचः पुरा माम्। असंशयं भविता युद्धमेत- द्गते काले पाण्डवानां यथोक्तम् ।। | 3-48-46a 3-48-46b 3-48-46c 3-48-46d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि |
3-48-9 न क्षंस्येते क्षमां न करिष्तः ।। 3-48-11 सहितुं सोढुम् ।। 3-48-12 शैक्यया शिक्यस्थया भूमिं भित्त्वा पातालं प्रवेक्ष्यतीति भयादन्तरिक्षे एव धृतयेत्यर्थः ।। 3-48-27 प्रतिसारिणी प्रतीपं सरतीति नीचानुगामिनीत्यर्थः। आहारेष्यामि इदानीमेवेति शेषः। अतएव प्रार्थना सत्यं मां कुर्विति ।। 3-48-34 समयामासुः समं युक्तमित्याचख्युः। समशब्दात्तदाचष्ट इति णिच् लिटि आम् ।। 3-48-43 युयुधानः सात्यकिः ।। 3-48-44 केसरिणः क्रोधेनोच्छ्रितसटान् ।।
आरण्यकपर्व-047 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-049 |