महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-292
← आरण्यकपर्व-291 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-292 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-293 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
रावणवधानन्तरमविन्ध्यनाम्ना राक्षसवृद्धेन रामसमीपंप्रति सीताया आनयनम् ।। 1 ।। सूतया स्वशीलशङ्किनो रामस्यानङ्गीकारवचनश्रवणेन बूमौ पतनम् ।। 2 ।। अन्तरिक्षगतैर्ब्रह्मादिभिः सीतायाः सौशील्यख्यापनपूर्वकं रामंप्रति तद्ग्रहणचोदना ।। 3 ।। रामेण सीतालक्ष्मणादिभिः सहायोध्यांप्रति प्रस्थानम् ।। 4 ।। दूत्येन भरतंप्रति हनुमत्प्रेषणपूर्वकं नन्दिग्राममागतेन रामेण भरताधिभिः सहायोध्यांप्रत्यागमनम् ।। 5 ।। वसिष्ठादिभिः सीतया सह राज्येऽभिपिक्तेन रामेण सुग्रीवविभीषणादीनां सबहुमानं स्वस्वपुरप्रेषणपूर्वकं प्रजापालनम् ।। 6 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-292-1x |
स हत्वा रावयणं क्षुद्रं राक्षसेनद्रं सुरद्विषम्। बभूव हृष्टः ससुहृद्रामः सौमित्रिणा सह ।। | 3-292-1a 3-292-1b |
ततो हते दशग्रीवे देवाः सर्षिपुरोगमाः। आशीर्भिर्जययुक्ताभिरानर्चुस्तं महाभुजम् ।। | 3-292-2a 3-292-2b |
रामं कमलपत्राक्षं तुष्टुवुः सर्वदेवताः। गन्धर्वाः पुष्पवर्षैश्च वाग्भिश्च त्रिदशालयाः ।। | 3-292-3a 3-292-3b |
पूजयित्वा रणे रामं प्रतिजग्मुर्यथागतम्। तन्महोत्सवसंकाशमासीदाकाशमच्युत ।। | 3-292-4a 3-292-4b |
ततो हत्वा दशग्रीवं लङ्कां रामो महायशाः। विभीषणाय प्रददौ प्रभुः परपुरंजयः ।। | 3-292-5a 3-292-5b |
ततः सीतां पुरस्कृत्य विभीषणपुरस्कृताम्। अविन्ध्यो नाम सुप्रज्ञो वृद्धामात्यो विनिर्ययौ ।। | 3-292-6a 3-292-6b |
उवाच च महात्मानं काकुत्स्थं दैन्यमास्थितम्। प्रतीच्छ देवीं सद्वृत्तां महात्मञ्जानकीमिति ।। | 3-292-7a 3-292-7b |
एतच्छ्रुत्वा वचस्तस्मादवतीर्य रथोत्तमात्। बाष्पेणापिहितां सीतां ददर्शेक्ष्वाकुनन्दनः ।। | 3-292-8a 3-292-8b |
तां दृष्ट्वा चारुसर्वाङ्गीं यानस्थां शोककर्शिताम्। मलोपचितसर्वाङ्गीं जटिलां कृष्णवाससम् ।। | 3-292-9a 3-292-9b |
उवाच रामो वैदेहीं परामर्शविशङ्कितः। `लक्षयित्वेङ्गितं सर्वं प्रियं तस्यै निवेद्य सः' ।। | 3-292-10a 3-292-10b |
गच्छ वैदेहि मुक्ता त्वं यत्कार्यं तनमया कृतम्। मामासाद्यपतिं भद्रे न त्वं राक्षसवेश्मनि। जरां व्रजेथा इतिमे निहतोसौ निशाचरः ।। | 3-292-11a 3-292-11b 3-292-11c |
कथं ह्यस्मद्विधो जातु जानन्धर्मविनिश्चयम्। परहस्तगतां नारीं मुहूर्तमपि धारयेत् ।। | 3-292-12a 3-292-12b |
सुवृत्तामसुवृत्तां वाऽप्यहं त्वामद्य मैथिलि। नोत्सहे परिभोगाय श्वावलीढं हविर्यथा ।। | 3-292-13a 3-292-13b |
ततः सा सहसा बाला तच्छ्रुत्वा दारुणं वचः। पपात देवी व्यथिता निकृत्ता कदली यथा ।। | 3-292-14a 3-292-14b |
योप्यस्या हर्षसंभूतो मुखरागः पुराऽभवत्। क्षणेन सपुनर्नष्टो निःश्वासादिव दर्पणे ।। | 3-292-15a 3-292-15b |
ततस्ते हरयः सर्वे तच्छ्रुत्वा रामभाषितम्। गतासुकल्पा निश्चेष्टा बभूवुः सहलक्ष्मणाः ।। | 3-292-16a 3-292-16b |
ततो देवो विशुद्धात्मा विमानेन चतुर्मुखः। पद्मयोनिर्जगत्स्रष्टा दर्शयामास राघवम् ।। | 3-292-17a 3-292-17b |
शक्रश्चाग्निश्च वायुश्चयमो वरुण एव च। यक्षाधिपश्च भगवांस्तथा सप्तर्षयोऽमलाः ।। | 3-292-18a 3-292-18b |
राजा दशरथश्चैव दिव्यभास्वरमूर्तिमान्। विमानेन महार्हेण हंसयुक्तेन भास्वता ।। | 3-292-19a 3-292-19b |
ततोऽन्तरिक्षं तत्सर्वंदेवगन्धर्वसंकुलम्। शुशुभे तारकाचित्रं शरदीव नभस्तलम् ।। | 3-292-20a 3-292-20b |
तत उत्थाय वैदेही तेषां मध्ययशस्विनी। उवाच वाक्यं कल्याणी रामं पृथुलवक्षसम् ।। | 3-292-21a 3-292-21b |
राजपुत्र न ते कोपं करोमि विदिताहि मे। गतिः स्त्रीणां नराणां च शृणु चदं वचो मम ।। | 3-292-22a 3-292-22b |
अन्तश्चरतिभूतानां मातरिश्वा सदागतिः। स मे विमुञ्चतु प्राणान्यदि पापं चराम्यहम् ।। | 3-292-23a 3-292-23b |
अग्निरापस्तथाऽऽकाशं पृथिवी वायुरेव च। विमुञ्चन्तु मम प्राणान्यदि पापं चराम्यहम् ।। | 3-292-24a 3-292-24b |
यथाऽहं त्वदृतेवीर नान्यंस्वप्नेऽप्यचिन्तयम्। तथा मे देव निर्दिष्टस्त्वमेव हि पतिर्भव ।। | 3-292-25a 3-292-25b |
ततोऽन्तरिक्षे वागारीत्सुभगा लोकसाक्षिणी। पुण्यासंहर्षणी तेषां वानराणां महात्मनाम् ।। | 3-292-26a 3-292-26b |
वायुरुवाच। | 3-292-27x |
बोभो राघव सत्यं वै वायुरस्मि सदागतिः। अपापा मैथिली राजन्संगच्छसहभार्यया ।। | 3-292-27a 3-292-27b |
अग्निरुवाच। | 3-292-28x |
अहमन्तःशरीरस्थो भूतानां रघुनन्दन। सुसूक्ष्ममपि काकुत्स्थ मैथिलीनापराध्यति ।। | 3-292-28a 3-292-28b |
वरुण उवाच। | 3-292-29x |
रसावै मत्प्रसूता हि भूतदेहेषु राघव। अहंवै त्वां प्रब्रवीमि मैथिली प्रतिगृह्यताम् ।। | 3-292-29a 3-292-29b |
यम उवाच। | 3-292-30x |
`धर्मोऽहमस्मि काकुत्स्थ साक्षी लोकस्य कर्मणाम्। शुभाशुभानां सीतेयमपापा प्रतिगृह्यताम्' ।। | 3-292-30a 3-292-30b |
ब्र्हमोवाच। | 3-292-31x |
पुत्र नैतदिहाश्चर्यं त्वयि राजर्षिधर्मणि। साधो सद्वृत्त काकुत्स्थ शृणु चेदं वचो मम ।। | 3-292-31a 3-292-31b |
शत्रुरेष त्वया वीर देवगनधर्वभोगिनाम्। यक्षाणां दानवानां च महर्षीणां च पातितः ।। | 3-292-32a 3-292-32b |
अवध्यः सर्वभूतानां मत्प्रसादात्पुराऽभवत्। कस्माच्चित्कारणात्पापः कंचित्कालमुपेक्षितः ।। | 3-292-33a 3-292-33b |
वधार्थमात्मनस्तेन हृता सीता दुरात्मना। नलकूबरशापेन रक्षा चास्याः कृता मया ।। | 3-292-34a 3-292-34b |
यदि ह्यकामामासेवेत्स्तरियमन्यामपि ध्रुवम्। शतधाऽस्य फलेन्मूर्धा इत्युक्तः सोभवत्पुरा ।। | 3-292-35a 3-292-35b |
नात्रशङ्का त्वया कार्या प्रतीच्छेमां महामते। कृतं त्वया महत्कार्यं देवानाममितप्रभ ।। | 3-292-36a 3-292-36b |
दशरथ उवाच। | 3-292-37x |
प्रीतोस्मि वत्स भद्रं ते पिता दशरथोस्मि ते। अनुजानामि राज्यं च प्रशाधि पुरुषोत्तम ।। | 3-292-37a 3-292-37b |
राम उवाच। | 3-292-38x |
अभिवादयेत्वां राजेन्द्र यदि त्वं जनको मम। गमिष्यामि पुरीं रम्यामयोध्यां शासनात्तव ।। | 3-292-38a 3-292-38b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-292-39x |
तमुवाच पिता भूयः प्रहृष्टो भरतर्षभ। गच्छायोध्यां प्रशाधि त्वंराम रक्तान्तलोचन। संपूर्णानीहवर्षाणि चतुर्दश महाद्युते ।। | 3-292-39a 3-292-39b 3-292-39c |
ततो देवान्नमस्कृत्य मुहृद्भिरभिनन्दितः। महेन्द्रइव पौलोम्या भार्यया स समेयिवान् ।। | 3-292-40a 3-292-40b |
ततो वरं ददौ तस्मै ह्यविन्ध्याय परंतपः। त्रिजटां चार्थमानाभ्यां योजयामास राक्षसीम् ।। | 3-292-41a 3-292-41b |
तमुवाच ततो ब्रह्मा देवैः शक्रषुरोगमैः। कौसल्यामातरिष्टांस्ते वरानद्य ददानि कान् ।। | 3-292-42a 3-292-42b |
वव्रेरामः स्थितिं धर्मे शत्रुभिश्चापराजयम्। राक्षसैर्निहतानां च वानराणां समुद्भवम् ।। | 3-292-43a 3-292-43b |
ततस्ते ब्रह्मणा प्रोक्ते तथेतिवचने तदा। समुत्तस्थुर्महाराज वानरा लब्धचेतसः ।। | 3-292-44a 3-292-44b |
सीता चापि महाभागा वरं हनुमते ददौ। रामकीर्त्या समं पुत्र जीवितं ते भविष्यति ।। | 3-292-45a 3-292-45b |
दिव्यास्त्वामुपभोगाश्च मत्प्रसादकृताः सदा। उपस्थास्यन्ति हनुमन्निति स्म हरिलोचन ।। | 3-292-46a 3-292-46b |
ततस्ते प्रेक्षमाणानां तेपामक्लिष्टकर्मणाम्। अन्तर्धानं ययुर्देवाः सर्वे शक्रपुरोगमाः ।। | 3-292-47a 3-292-47b |
दृष्ट्वा रामं तु जानक्या संगतं शक्रसारथिः। उवाच परमप्रीतसुहृन्मध्य इदं वचः ।। | 3-292-48a 3-292-48b |
देवगन्धर्वयक्षाणां मानुषासुरभोगिनाम्। अपनीतं त्वया दुःखमिदं सत्यपराक्रम ।। | 3-292-49a 3-292-49b |
सदेवासुरगनधर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः। कथयिष्यन्ति लोकास्त्वां यावद्भूमिर्धरिष्यति ।। | 3-292-50a 3-292-50b |
इत्येवमुक्त्वाऽनुज्ञाप्यरामं शस्त्रभृतांवरम्। संपूज्यापाक्रमत्तेन रथेनादित्यवर्चसा ।। | 3-292-51a 3-292-51b |
ततःसीतां पुरस्कृत्य रामः सौमित्रिणा सह। सुग्रीवप्रमुखैश्चैव सहितः सर्ववानरैः ।। | 3-292-52a 3-292-52b |
विधाय रक्षां लङ्कायां विभीषणपुरस्कृतः। संततार पुनस्तेन सेतुना मकरालयम् ।। | 3-292-53a 3-292-53b |
पुष्पकेण विसानन खेचरेण विराजता। कामगेन यथामुख्यैरमात्यैः संवृतो वसी ।। | 3-292-54a 3-292-54b |
ततस्तीरे समुद्रस्यं यत्रशिश्य स पार्थिवः। तत्रैवोवास धर्मात्मा सहितः सर्ववानरैः ।। | 3-292-55a 3-292-55b |
अथैनान्राघवः काले समानीयाभिपूज्य च। विसर्जयामास तदा रत्नैः संतोष्य सर्वशः ।। | 3-292-56a 3-292-56b |
गतेषु वानरेन्द्रेषु गोपुच्छर्क्षेषु तेषु च। सुग्रीवसहितो रामः किष्किन्दां पुनरागमत् ।। | 3-292-57a 3-292-57b |
विभीषणेनानुगतः सुग्रीवसहितस्तदा। पुष्पकेण विमानेन वैदेह्या दर्शयन्वनम् ।। | 3-292-58a 3-292-58b |
किष्किन्धां तु समासाद्यरामः प्रहरतांवरः। अङ्गदं कृतकर्माणं यौवराज्येऽभ्यषेचयत् ।। | 3-292-59a 3-292-59b |
ततस्तैरेव सहितो रामः सौमित्रिणा सह। यथागतेन मार्गेण प्रययौ स्वपुरं प्रति ।। | 3-292-60a 3-292-60b |
अयोध्यां स समासाद्यपुरीं राष्ट्रपतिस्ततः। भरताय हनूमन्तं दूतं प्रास्थापयद्द्रुतम् ।। | 3-292-61a 3-292-61b |
लक्षयित्वेङ्गितं सर्वंप्रियं तस्मै निवेद्य वै। वायुपुत्रे पुनः प्राप्ते नन्दिग्राममुपाविशत् ।। | 3-292-62a 3-292-62b |
सतत्रमलदिग्धाङ्गं भरतं चीरवाससम्। `नन्दिग्रामगतंरामः सशत्रुघ्नं सराघवः'। अग्रतःपादुके कृत्वा ददर्शासीनमासने ।। | 3-292-63a 3-292-63b 3-292-63c |
समेत्यभरतेनाथ शत्रुघ्नेन च वीर्यवान्। राघवः सहसौमित्रिर्मुमुदे भरतर्षभ ।। | 3-292-64a 3-292-64b |
ततो भरतशत्रुघ्नौ समेतौ गुरुणा तदा। वैदेह्या दर्शनेनोभौ प्रहर्षं समवापतुः ।। | 3-292-65a 3-292-65b |
तस्मै तद्भरतो राज्यमागतायातिसत्कृतम्। न्यासं निर्यातयामास युक्तः परमया मुदा ।। | 3-292-66a 3-292-66b |
ततस्तं वैष्णवे शूरं नक्षत्रेऽभिजितेऽहनि। वसिष्ठो वामदेवश्च सहितावभ्यषिञ्चताम् ।। | 3-292-67a 3-292-67b |
सोभिषिक्तः कपिश्रेष्ठं सुग्रीवं ससुहृज्जनम्। विभीषणं च पौलस्त्यमन्वजानाद्गृहान्प्रति ।। | 3-292-68a 3-292-68b |
अभ्यर्च्य विविधै रत्नैः प्रीतियुक्तौ मुदा युतौ। समाधायेतिकर्तव्यं दुःखेन विससर्ज ह ।। | 3-292-69a 3-292-69b |
पुष्पकं च विमानं तत्पूजयित्वा स राघवः। प्रादाद्वैश्रवणायैव प्रीत्या स रघुनन्दनः ।। | 3-292-70a 3-292-70b |
ततो देवर्षिसहितः सरितं गोमतीमनु। शताश्वमेधानाजह्रे जारूथ्यान्स निरर्गलान् ।। | 3-292-71a 3-292-71b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि द्विनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 292 ।। |
3-292-3 ब्रिदशालयः स्वर्गस्तत्स्थाः ।। 3-292-55 यत्र शिश्ये पूर्वं समुद्रप्रार्थनार्थं शयनं कृतवान् ।। 3-292-62 लक्षयित्वेङ्गितैः सर्वैरिति ध.पाटः ।। 3-292-65 गुरुणा रामेण ।। 3-292-67 वैष्णवे नक्षत्रेश्रवणे ।। 3-292-71 जारूथ्यान् त्रिगुणदक्षिणानित्यर्जुनमिश्रः ।।
आरण्यकपर्व-291 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-293 |