महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-157
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गन्धमादनादुत्तरं देशं जिगमिषुणा युधिष्ठिरेण आकाशवाणीश्रवणात्ततः प्रतिनिवृत्य अनुचरैःसह नरनारायणाश्रमं प्रति पुनरागमनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-157-1x |
तस्मिन्निवसमानोऽथ धर्मराजो युधिष्ठिरः। आमन्त्र्य सहितान्भ्रातृनित्युवाच सहद्विजान् ।। | 3-157-1a 3-157-1b |
दृष्टानि तीर्थान्यस्माभिः पुण्यानि च शिवानि च। मनसो ह्लादनीयानि वनानि च पृथक्पृथक् ।। | 3-157-2a 3-157-2b |
देवैः पूर्वं विचीर्णानि मुनिभिश्च महात्मभिः। यथाक्रममशेषेण द्विजैः संपूजितानि च ।। | 3-157-3a 3-157-3b |
ऋषीणां पूर्वचरितं तपोधर्मविचेष्टितम्। राजर्षीणां च चरितं कथाश्च विविधाः शुभाः ।। | 3-157-4a 3-157-4b |
शृण्वानास्तत्रतत्र स्म आश्रमेषु शिवेषु च। अभिषेकं द्विजैः सार्धं कृतवन्तो विशेषतः ।। | 3-157-5a 3-157-5b |
अर्चिताः सततं देवाः पुष्पैरद्भिः सदा च वः। यथालब्धैर्मूलफलैः पितरश्चापि तर्पिताः ।। | 3-157-6a 3-157-6b |
पर्वतेषु च रम्येषु सर्वेषु च सरस्सु च। उदधौ च महापुण्ये सूपस्पृष्टं महात्मभिः ।। | 3-157-7a 3-157-7b |
इला सरस्वती सिन्धुर्यमुना नर्मदा तथा। नानातीर्थेषु रम्येषु सूपस्पृष्टं सह द्विजैः ।। | 3-157-8a 3-157-8b |
गङ्गाद्वारमतिक्रम्य बहवः पर्वताः शुभाः। हिमवान्पर्वतश्चैव नानाद्विजगणायुतः ।। | 3-157-9a 3-157-9b |
विशाला बदरी दृष्टा नरनारायणाश्रमः। दिव्यपुष्करिणी दृष्टा सिद्धदेवर्षिपूजिता ।। | 3-157-10a 3-157-10b |
यथाक्रमविशेषेण सर्वाण्यायतनानि च। दर्शितानि द्विजेनद्रेण लोमशेन महात्मना ।। | 3-157-11a 3-157-11b |
इमं वैश्रवणावासं दुर्गमं गन्धमादनम्। कथं भीम गमिष्यामो मतिरत्र विधीयताम् ।। | 3-157-12a 3-157-12b |
वैशंपायन उवाच। | 3-157-13x |
एवं ब्रुवति राजेन्द्रे वागुवाचाशरीरिणी। न शक्यो दुर्गमो गन्तुं पर्वतो गन्धमादनः ।। | 3-157-13a 3-157-13b |
अननैव पथा राजन्प्रतिगच्छ यथागतम्। नरनारायणस्थानं बदरीत्यभिविश्रुतम् ।। | 3-157-14a 3-157-14b |
तस्माद्यास्यसि कौन्तेय सिद्धचारणसेवितम्। बहुपुष्पफलं रम्यमाश्रमं वृषपर्वणः ।। | 3-157-15a 3-157-15b |
अतिक्रम्य च तं पार्थ त्वार्ष्टिषेणाश्रमे वसेः। ततो द्रक्ष्यसि कौन्तेय निवेशं धनदस्य च ।। | 3-157-16a 3-157-16b |
एतस्मिन्नन्तरे वायुर्दिव्यगन्धवहः शुभः। भनःप्रह्लादनः शीतः पुष्पवर्षं ववर्ष वै ।। | 3-157-17a 3-157-17b |
तच्छ्रुत्वा दिव्यमाकाशाद्विस्मयः समपद्यत। ऋषीणां ब्राह्मणानां च पार्थिवानां विशेषतः ।। | 3-157-18a 3-157-18b |
श्रुत्वा तन्महदाश्चर्यं द्विजो धौम्यस्त्वभाषत। न शक्यमुत्तरं गन्तुं प्रतिगच्छाम पाण्डव ।। | 3-157-19a 3-157-19b |
ततो युधिष्ठिरो राजा विस्मयोत्फुल्ललोचनः। [प्रत्यागम्य पुनस्तं तु नरनारायणाश्रमम् ।।] | 3-157-20a 3-157-20b |
भीमसेनादिभिः सर्वैर्भ्रातृभिः परिवारितः। पाञ्चाल्या ब्राह्मणैश्चैव न्यवसत्सुसुखं तदा ।। | 3-157-21a 3-157-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि सप्तपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ।। 157 ।। |
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