महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-126
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इन्द्राभिष्टुतेन च्यवनेन तस्मिन्स्वप्रयुक्तकृत्यायास्ततो विनिवर्त्य स्र्यादिषु विभजनम् ।। 1 ।। लोमशेन सुकम्योपाख्यानसमापनपूर्वकं युधिष्ठिराय नानातीर्थमहिमानुवर्णनम् ।। 2 ।।
लोमश उवाच। | 3-126-1x |
तं दृष्ट्वा घोरवदनं मदं देवः शतक्रतुः। आयान्तं भक्षयिष्यन्तं व्यात्ताननमिवान्तकम् ।। | 3-126-1a 3-126-1b |
भयात्संस्तम्भितभुजः सृक्विणी लेलिहन्मुहुः। ततोऽव्रवीद्देवराजश्च्यवनं भयपीडितः ।। | 3-126-2a 3-126-2b |
सोमार्हावश्विनावेतावद्य प्रभृति भार्गव। भविष्यतः सत्यमेतद्वचो विप्र प्रसीद मे ।। | 3-126-3a 3-126-3b |
न ते मिथ्या समारम्भो भवत्वेष परो विधिः। जानामि चाहं विप्रर्षे न मिथ्या त्वं करिष्यसि ।। | 3-126-4a 3-126-4b |
सोमपावश्विनावेतौ यथा वाद्य कृतौ त्वया। `तथैव मामपि ब्रह्मञ्श्रेयसा योक्तुमर्हसि' ।। | 3-126-5a 3-126-5b |
भूय एव तु ते वीर्यं प्रकाशेदिति भार्गव। सुकन्यायाः पितुश्चास्य लोके कीर्तिः प्रथेदिति ।। | 3-126-6a 3-126-6b |
अतो मयैतद्विहितं तव वीर्यप्रकाशनम्। तस्मान्प्रसादं कुरु मे भवत्वेवं यथेच्छसि ।। | 3-126-7a 3-126-7b |
एवमुक्तस्य शक्रेण च्यवनस्य महात्मनः। स मन्युर्व्यगमच्छीघ्रं सुमोच च पुरंदरम् ।। | 3-126-8a 3-126-8b |
मदं च व्यभजद्राजन्पाने स्त्रीषु च वीर्यवान्। अक्षेषु मृगयायां च पूर्वसृष्टं पुनः पुनः ।। | 3-126-9a 3-126-9b |
तदा मदं विनिक्षिप्य शक्रं संतर्प्य चेन्दुना। अश्विभ्यां सहितान्देवान्याजयित्वा च तं नृपम् ।। | 3-126-10a 3-126-10b |
विख्याप्य वीर्यं लोकेषु सर्वेषु वदतांवरः। सुकन्यया सहारण्ये विजहारानुकूलया ।। | 3-126-11a 3-126-11b |
तस्यैतद्द्विजसंघुष्टं सरो राजन्प्रकाशते। अत्रत्वं सह सोदर्यैः पितृडन्देवांश्च तर्पय ।। | 3-126-12a 3-126-12b |
एतद्दृष्ट्वा महीपाल सिकताक्षं च भारत। सैन्धवारण्यमासाद्य कुल्यानां कुरु दर्शनम् ।। | 3-126-13a 3-126-13b |
पुष्करेषु महाराज सर्वेषु च जलं स्पृश। स्थाणोर्मन्त्राणि च जपन्सिद्धिं प्राप्स्यसि भारत ।। | 3-126-14a 3-126-14b |
संधिर्द्वयोर्नरश्रेष्ठ त्रेताया द्वापरस्य च। अयं हि दृश्यते पार्थ सर्वपापप्रणाशनः। अत्रोपस्पृश चैव त्वं सर्वपापप्रणाशने ।। | 3-126-15a 3-126-15b 3-126-15c |
आर्चीकपर्वतश्चैव निवासौ वै मनीषिणाम्। सदाफलः सदास्रोतो मरुतां स्तानमुत्तमम् ।। | 3-126-16a 3-126-16b |
चैत्याश्चैते बहुविधास्त्रिदशानां युधिष्ठिर। एतच्चन्द्रमसस्तीर्थमृषयः पर्युपासते। वैखानसप्रभृतयो वालखिल्यास्तथैव च ।। | 3-126-17a 3-126-17b 3-126-17c |
शृङ्गाणि त्रीणि पुण्यानि त्रीणि प्रसर्वणानि च। सर्वाण्यनुपरिक्रम्य यथाकाममुपस्पृश ।। | 3-126-18a 3-126-18b |
शान्तनुश्चात्र राजेन्द्र शुनकश्च नराधिपः। नरनारायणौ चोभौ तपस्तप्त्वा चिरं नृप। स्थानं सनातनं प्राप्तावीश्वरध्यानतत्परौ ।। | 3-126-19a 3-126-19b 3-126-19c |
इह नित्याश्रया देवाः पितरश्च महर्षिभिः। आर्चीकपर्वते तेपुस्तान्यजस्व युधिष्ठिर ।। | 3-126-20a 3-126-20b |
इह ते वै चरून्प्राश्नन्नृषयश्च विशांपते। यमुना चाक्षयस्रोताः कृष्णश्चेह तपोरतः ।। | 3-126-21a 3-126-21b |
यमौ च भीमसेनश्च कृष्णा चामित्रकर्शन। सर्वे चात्र गमिष्यामस्त्वयैव सह पाण्डव ।। | 3-126-22a 3-126-22b |
एतत्प्रस्रवणं पुण्यमिन्द्रस्य मनुजेश्वर। यत्रधाता विधाता च वपरुणश्चोर्ध्वमागताः ।। | 3-126-23a 3-126-23b |
इह तेऽप्यवसन्राजञ्शान्ताः परमधर्मिणः। मैत्राणामृजुबुद्धीनामयं गिरिवरः शुभः ।। | 3-126-24a 3-126-24b |
एषा सा यमुना राजन्महर्षिगणसेविता। नानायज्ञचिता राजन्पुण्या पापभयापहा ।। | 3-126-25a 3-126-25b |
अत्रराजा महेष्वासो मांधाताऽयजत स्वयम्। साहदेविश्च कौन्तेय सोमको ददतांवरः ।। | 3-126-26a 3-126-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि षड्विंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 126 ।। |
3-126-2 सृक्किणी गल्लगर्भौ ।। 3-126-3 वचो ब्रह्मन्ब्रवीमि ते इति क. पाठः ।। 3-126-15 संप्रति कलिद्वापरसंधावपि अत्रतीर्थे त्रेताद्वापारसंधितुल्यः कालेस्ति। अत्रस्नातानां कलिस्पर्शो नास्तीति भावः ।। 3-126-16 सदास्रोतः सदाप्रवाहयुक्तम् ।। 3-126-18 त्रीणि सृङ्गाणीति त्रिकोणं वाराणसीक्षेत्रम्। त्रीणि प्रस्रवणानीति च प्रयागम्। एतानि सर्वाणि अनुपरिक्रम्य प्रदक्षिणीकृत्य ।। 3-126-20 तेपुस्तपस्रक्रुः ।। 3-126-26 साहदेविः सृञ्जयपुत्रस्य पुत्रः ।।
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