महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-051
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नारदेनन्द्रादीन्प्रति दमयन्तीगुणानुवर्णनपूर्वकं तस्स्वयंवरप्रवृत्तिकथनम् ।। 1 ।।
तत्स्वयंवरार्थमागच्छद्भिरिन्द्रादिभिः पथि दृष्टस्य नलस्य दमयन्तीघटनायां दूत्येन वरणम् ।। 2 ।।
बृहदश्व उवाच। | 3-51-1x |
दमयन्ती तु तच्छ्रुत्वा वचो हंसस्य भारत। तदा प्रभृति न स्वस्था नलं प्रति बभूव सा ।। | 3-51-1a 3-51-1b |
ततश्चिन्तापरा दीना विवर्णवदना कृशा। बभूवदमयन्ती तु निःश्वासपरमा तदा ।। | 3-51-2a 3-51-2b |
ऊर्ध्वदृष्टिर्ध्यानपरा बभूवोन्मत्तदर्शना। पाण्डुवर्णा क्षणेनाथ हृच्छयाविष्टचेतना ।। | 3-51-3a 3-51-3b |
न शय्यासनभोगेषु रतिं विन्दति कर्हिचित्। न नक्तं न दिवा शेते हाहेति रुदती मुहुः ।। | 3-51-4a 3-51-4b |
तामस्वस्थां तदाकारां सख्यस्ता जज्ञिरिङ्गितैः ।। | 3-51-5a |
ततो विदर्भपतये दमयन्त्याः सखीजनः। न्यवेदयत्तामस्वस्थां दमयन्तीं नरेश्वरः ।। | 3-51-6a 3-51-6b |
तच्छ्रुत्वा नृपतिर्भीमो दमयन्तीसखीगणात्। किमर्थं दुहिता मेऽद्यनातिस्वस्थेव लक्ष्यते ।। | 3-51-7a 3-51-7b |
स समीक्ष्य महीपालः स्वां सुतां प्राप्तयौवनाम्। अपश्यदात्मना कार्यं दमयन्त्याः स्वयंवरम् ।। | 3-51-8a 3-51-8b |
स सन्निपातयामास महीपालान्विशांपतिः। एषोऽनुभूयतां चीराः स्वयंवर इति प्रभो ।। | 3-51-9a 3-51-9b |
श्रुत्वा तु पार्थिवाः सर्वे दमयन्त्याः स्वयंवरम्। अभिजग्मुस्ततो वीरा राजानो भीमशासनात् ।। | 3-51-10a 3-51-10b |
हस्त्यश्वरथघोषेण नादयन्तो वसुंधराम्। विचित्रमाल्याभरणैर्बलैर्दृश्यैः स्वलंकृतैः ।। | 3-51-11a 3-51-11b |
तेषां भीमो महाबाहुः पार्थिवानां महात्मनाम्। यथार्हमकरोत्पूजां तेऽवसंस्तत्र पूजिताः ।। | 3-51-12a 3-51-12b |
एतस्मिन्नेव काले तु सुराणामृषिसत्तमौ। अटमानौ महात्मानाविन्द्रलोकमितो गतौ ।। | 3-51-13a 3-51-13b |
नारदः पर्वतश्चैव महाप्राज्ञौ महाव्रतौ। देवराजस् भवनं विविशाते सुपूजितौ ।। | 3-51-14a 3-51-14b |
तावर्चयित्वा मघवा ततः कुशलमव्ययम्। पप्रच्छानामयं चापि तयोः सर्वगतं विभुः ।। | 3-51-15a 3-51-15b |
नारद उवाच। | 3-51-16x |
आवयोः कशलं देव सर्वत्रगतमीश्वर। लोके च मघवन्कृत्स्नो नृपाः कुशलिनो विभो ।। | 3-51-16a 3-51-16b |
बृहदश्व उवाच। | 3-51-17x |
नारदस्य वचः श्रुत्वा पप्रच्छ बलवृत्रहा। धर्मज्ञाः पृथिवीपालास्त्यक्तजीवितयोधिनः ।। | 3-51-17a 3-51-17b |
शस्त्रेण निधनं काले ये गच्छन्त्यपराड्युखाः। अयं लोकोऽक्षयस्तेषां यथैव मम कामधुक् ।। | 3-51-18a 3-51-18b |
क्वनु ते क्षत्रियाः शूरा नहि पश्यामि तानहम्। आगच्छतो महीपालान्दयितामनिथीन्मम ।। | 3-51-19a 3-51-19b |
एवमुक्तस्तु शक्रेण नारदः प्रत्यभाषत। शृणु मे मघवन्येन न दृश्यन्ते महीक्षितः ।। | 3-51-20a 3-51-20b |
विदर्भराज्ञो दुहिता दमयन्तीति विश्रुता। रूपेण समतिक्रान्ता पृथिव्यां सर्वयोषितः ।। | 3-51-21a 3-51-21b |
तस्याः स्वयंवरः शक्र भविता नचिरादिव। तत्र गच्छन्ति राजानो राजपुत्राश्च सर्वशः ।। | 3-51-22a 3-51-22b |
तां रत्नभूतां लोकस्य प्रार्थयन्तो महीक्षितः। काङ्क्षन्ति स्म विशेषेण बलवृत्रनिषूदन ।। | 3-51-23a 3-51-23b |
एतस्मिन्कथ्यमाने तु लोकपालाश्च साग्निकाः। आजग्मुर्देवराजस्य समीपममरोत्तमाः ।। | 3-51-24a 3-51-24b |
ततस्ते शुश्रुवुः सर्वे नारदस्य वचो महत्। श्रुत्वैव चाब्रुवन्हृष्टा गच्छामो वयमप्युत ।। | 3-51-25a 3-51-25b |
ततः सर्वे महाराज सगणाः सहवाहनाः। विदर्भानभिजग्मुस्ते यतः सर्वे महीक्षितः ।। | 3-51-26a 3-51-26b |
नलोपि राजा कौन्तेय श्रुत्वा राज्ञां समागमम्। अभ्यगच्छददीनात्मा दमयन्तीमनुव्रतः ।। | 3-51-27a 3-51-27b |
अथ देवाः पथि नलं ददृशुर्भूतले स्तितम्। साक्षादिव स्थितं मूर्त्या मन्मथं रूपसंपदा ।। | 3-51-28a 3-51-28b |
तं दृष्ट्वा लोकपालास्ते भ्राजमानं यथा रविम्। तस्थुर्विगतसंकल्पा विस्मिता रूपसंपदा ।। | 3-51-29a 3-51-29b |
ततोऽन्तरिक्षे विष्टभ्य विमानानि दिवौकसः। अब्रुवन्नैषधं राजन्नवतीर्य नभस्तलात् ।। | 3-51-30a 3-51-30b |
भोभो निषधराजेन्द्र नल सत्यव्रतो भवात्। अस्माकं कुरु साहाय्यं दूतो भव नरोत्तम ।। | 3-51-31a 3-51-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि एकपञ्चाशोऽध्यायः ।। 51 ।। |
3-51-5 जज्ञुः ज्ञातवत्यः। रइङ्गितैः अभिप्रायसृचकैश्चेष्टितैः ।। 3-51-9 अनुभूयतां प्रेक्ष्यतां भवद्भिः ।। 3-51-20 महीक्षितः पृष्वीश्वरा ।। 3-51-29 विगतो विनष्टः दमयन्तीं प्राप्स्याम इतिसंकल्पो येषाम् ।।
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