महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-052
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नलेन दमयन्त्यभिन्द्रादिनिदेशनिवेदनम् ।। 1 ।।
बृहदश्व उवाच। | 3-52-1x |
तेभ्यः प्रतिज्ञाय नलः करिष्य इति भारत। अथैतान्परिपप्रच्छ कृताञ्जलिरुपस्थितः ।। | 3-52-1a 3-52-1b |
के वै भवन्तः कश्चासौ यस्याहं दूत ईप्सितः। किंच तत्रमया कार्यं कथयध्वं यथातथम् ।। | 3-52-2a 3-52-2b |
एवमुक्ते नैषधेन मघवानभ्यभाषत। अमरान्वै निबोधास्मान्दमयन्त्यर्थमागतान् ।। | 3-52-3a 3-52-3b |
अहमिन्द्रोऽयमग्निश्च तथैवायमपांपतिः। शरीरान्तकरो नॄणां यमोऽयमपि पार्थिव ।। | 3-52-4a 3-52-4b |
त्वं वै समागतानस्मान्दमयन्त्यै निवेदय। लोकपाला महेन्द्राद्याः समायान्ति दिदृक्षवः ।। | 3-52-5a 3-52-5b |
प्राप्तुमिच्छन्ति देवास्त्वां शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः। तेषामन्यतमं देवं पतित्वे वरयस्व ह ।। | 3-52-6a 3-52-6b |
एवमुक्तः स शक्रेण नलः प्राञ्जलिरब्रवीत्। एकार्थसमवेतं मां न प्रेषयितुमर्हथ ।। | 3-52-7a 3-52-7b |
कथ हि जातसंकल्पः स्त्रियमुत्सृजते पुमान्। परार्थमीदृशं वक्तं तद्वै पश्यामरेश्वर ।। | 3-52-8a 3-52-8b |
`एवमुक्तो नैषधेन मघवान्पुनरब्रवीत्।' करिष्य इतिसंश्रुत्य पूर्वमस्मासु नैषध। न करिष्यसि कस्मात्त्वं व्रज नैषध माचिरम् ।। | 3-52-9a 3-52-9b 3-52-9c |
`स वै त्वमागतानस्मान्दमयन्त्यै निवेदय। श्रेयसा योक्ष्यसे हि त्वं कुर्वन्नमरशासनम् ।।' | 3-52-10a 3-52-10b |
बृहदश्व उवाच। | 3-52-11x |
एवमुक्तः स देवैस्तैर्नैषधः पुनरब्रवीत्। सुरक्षितानि वेश्मानि प्रवेष्टुं कथमुत्सहे ।। | 3-52-11a 3-52-11b |
प्रवेक्ष्यसीति तं शक्रः पुनरेवाभ्यभाषत। जगाम स तथेत्युक्त्वा दमयन्त्या निवेशनम् ।। | 3-52-12a 3-52-12b |
ददर्श तत्र वैदर्भीं सखीगणसमावृताम्। देदीप्यमानां वपुषा श्रिया च वरवर्णिनीम् ।। | 3-52-13a 3-52-13b |
अतीव सुकुमाराङ्गीं तनुमध्यां सुलोचनाम्। आक्षिपन्तीमिव च तां शशिनं स्वेन तेजसा ।। | 3-52-14a 3-52-14b |
तस्य दृष्ट्वैव ववृधे कामस्तां चारुहासिनीम्। सत्यं चिकीर्षमाणस्तुधारयामास हृच्छयम् ।। | 3-52-15a 3-52-15b |
ततस्ता नैषधं दृष्ट्वा संभ्रान्ताः परमाङ्गनाः। आसनेभ्यः समुत्पेतुस्तेजसा तस्य धर्षिताः ।। | 3-52-16a 3-52-16b |
प्रशशंसुश्च मुप्रीता नलं ता विस्मयान्विताः। न चैनमभ्यभाषन्त मनोभिस्त्वभ्यपूजयन् ।। | 3-52-17a 3-52-17b |
अहो रूपमहो कान्तिरहो धैर्यं महात्मनः। कोऽयं देवोऽथवा यक्षो गन्धर्वो वा भविष्यति ।। | 3-52-18a 3-52-18b |
न तास्तं शक्नुवन्ति स्म व्याहर्तुमपि किंचन। तेजसा धर्षितास्तस्य लज्जावत्यो वराङ्गनाः ।। | 3-52-19a 3-52-19b |
अथैनं स्मयमानेव स्मितपूर्वाभिभाषिणी। दमयन्ती नलं वीरमभ्यभाषत विस्मिता ।। | 3-52-20a 3-52-20b |
कस्त्वं सर्वानवद्याङ्ग मम हृच्छयवर्धन। प्राप्तोस्यमरवद्वीर ज्ञातुमिच्छामि तेऽनघ ।। | 3-52-21a 3-52-21b |
कथमागमनं चेह कथं चासि न लक्षितः। सुरक्षितं हि मे वेश्म राजा चैवोग्रशासनः ।। | 3-52-22a 3-52-22b |
एवमुक्तस्तु वैदर्भ्या नलस्तां प्रत्युवाच ह। नलं मां विद्धि कल्याणि देवदूतमिहागतम् ।। | 3-52-23a 3-52-23b |
देवास्त्वां प्राप्तुमिच्छन्ति शक्रोऽग्निर्वरुणो यमः। तेषामन्यतमं देवं पतिं वरय शोभने ।। | 3-52-24a 3-52-24b |
तेषामेव प्रभावेण प्रविष्टोऽहमलक्षितः। प्रविशन्तं न मां कश्चिदपश्यन्नाप्यवारयत् ।। | 3-52-25a 3-52-25b |
एतदर्थमहं भद्रे प्रेषितः सुरसत्तमैः। एतच्छ्रुत्वा शुभे बुद्धिं प्रकुरुष्व यथेच्छसि ।। | 3-52-26a 3-52-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि द्विपञ्चाशोऽध्यायः ।। 52 ।। |
3-52-16 धर्षिता अभिभूताः ।।
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