महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-240
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दुर्योधनेन घोषयात्राव्याजेनानुजादिभिः सहद्वैतवनंप्रतिरामनम् ।। 1 ।।
वैसंपायन उवाच। | 3-240-1x |
धृतराष्ट्रं ततः सर्वेददृशुर्जनमेजय। दृष्ट्वा सुखमथो राज्ञः पृष्टा राज्ञा च भारत ।। | 3-240-1a 3-240-1b |
ततस्तैर्विहितः पूर्वं संगवो नाम वल्लवः। समीपस्थास्तदा गावो धृतराष्ट्रे न्यवेदयत् ।। | 3-240-2a 3-240-2b |
अनन्तरं च राधेयः शकुनिश्च विशांपते। आहतुः पार्थिवश्रेष्ठं धृतराष्ट्रं जनाधिपम् ।। | 3-240-3a 3-240-3b |
रमणीयेषु देशेषु घोषाः संप्रति कौरव। स्मारणे समयः प्राप्तो वत्सानामपि चाङ्कनम् ।। | 3-240-4a 3-240-4b |
मृगया चोचिता राजन्नस्मिन्काले सुतस्यते। दुर्योधनस्य गमनं त्वमनुज्ञातुमर्हसि ।। | 3-240-5a 3-240-5b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 3-240-6x |
मृगया शोभना तात गवां हि समवेक्षणम्। विस्रम्भस्तु न गन्तव्यो वल्लवानामिति स्मरे ।। | 3-240-6a 3-240-6b |
ते तु तत्रनरव्याघ्राः समीप इति नः श्रुतम्। अतो नाभ्यनुजानामि गमनं तत्र वः स्वयम् ।। | 3-240-7a 3-240-7b |
छद्मना निर्जितास्ते तु कर्शिताश्च महावने। तपोनित्याश्च राधेय समर्थाश्च महारथाः ।। | 3-240-8a 3-240-8b |
धर्मराजो न संक्रुद्ध्येद्भीमसेनस्त्वमर्षणः। यज्ञसेनस् दुहिता तेज एवतु केवलम् ।। | 3-240-9a 3-240-9b |
यूयंचाप्यपराध्येयुर्दर्पमोहसमन्विताः। ततो विनिर्दहेयुस्ते तपसा हि समन्विताः ।। | 3-240-10a 3-240-10b |
अथवा सायुधावीरा मन्युनाऽभिपरिप्लुताः। सहिता बद्धनिस्त्रिशा दहेयुः शस्त्रतेजसा ।। | 3-240-11a 3-240-11b |
अथ यूयं बहुत्वात्तान्नारभध्वं कथंचन। अनार्यं परमं तत्स्यादशक्यं तच्च वै मतम् ।। | 3-240-12a 3-240-12b |
उषितो हि महाबाहुरिन्द्रलोके धनंजयः। दिव्यान्यस्त्राण्यवाप्याथ ततः प्रत्यागतो वनं ।। | 3-240-13a 3-240-13b |
अकृतास्त्रेण पृथिवी जिता बीभत्सुना पुरा। किं पुनः सकृतास्त्रोऽद्य न हन्याद्वो महारथः ।। | 3-240-14a 3-240-14b |
अथवा मद्वचः श्रुत्वा तत्र यत्ता भविष्यथ। उद्विग्रवासा विस्रब्धा दुःखं तत्रगमिष्यथ ।। | 3-240-15a 3-240-15b |
अथवा सैनिकाः केचिदपकुर्युर्युधिष्ठिरे। तदबुद्धिकृतंकर्म दोषमुत्पादयेच्च वः ।। | 3-240-16a 3-240-16b |
तस्मादन्ये नरा यान्तु स्मारणायाप्तकारिणः। न स्वयं तत्रगमनं रोचये तव भारत ।। | 3-240-17a 3-240-17b |
शकुनिरुवाच। | 3-240-18x |
धर्मज्ञः पाण्डवो ज्येष्ठः प्रतिज्ञातं च संसदि। तेन द्वादशवर्षाणि वस्तव्यानीति भारत ।। | 3-240-18a 3-240-18b |
अनुवृत्ताश्च रतं सर्वे पाण्डवा धर्मचारिणः। युधिष्ठिरस्तु कौन्तेयो न नः कोपं करिष्यति ।। | 3-240-19a 3-240-19b |
मृगयां चैव नो गन्तुमिच्छा संवर्धते भृशम्। स्मारणं तु चिकीर्षामो न तु पाण्डवदर्सनम् ।। | 3-240-20a 3-240-20b |
न चानार्यसमाचारः कश्चित्तत्र भविष्यति। न च तत्र गमिष्यामो यत्र तेषां प्रतिश्रयः ।। | 3-240-21a 3-240-21b |
वैशंपायन उवाच। | 3-240-22x |
एवमुक्तः शकुनिना धृतराष्ट्रो जनेश्वरः। दुर्योधनं सहामात्यमनुजज्ञे न कामतः ।। | 3-240-22a 3-240-22b |
अनुज्ञातस्तु गान्धारिः कर्णेन सहितस्तदा। निर्ययौ भरतश्रेष्ठो बलेन महता वृतः ।। | 3-240-23a 3-240-23b |
दुःशासनेन च तथा सौबलेन च धीमता। संवृतो भ्रातृभिश्चान्यैः स्त्रीभिश्चापि सहस्रशः ।। | 3-240-24a 3-240-24b |
तं निर्यान्तं महाबाहुं द्रष्टुं द्वैतवनं सरः। पौराश्चानुययुः सर्वेसहदारा वनं च तत् ।। | 3-240-25a 3-240-25b |
अष्टौ रथसहस्राणि त्रीणि नागायुतानि च। पत्तयो बहुसाहस्रा हयाश्च नवतिः शताः ।। | 3-240-26a 3-240-26b |
शकटापणवेशाश्च वणिजो वन्दिनस्तथा। नराश्च मृगयाशीलाः शतशोऽथ सहस्रशः ।। | 3-240-27a 3-240-27b |
ततः प्रयाणे नृपतेः सुमहानभवत्स्वनः। प्रावृषीव महावायोरुत्थितस्य विशांपते ।। | 3-240-28a 3-240-28b |
गव्यूतिमात्रेन्यवसद्राजा दुर्योधनस्तदा। प्रयातो वाहनैः सर्वैस्ततो द्वैतवनं सरः ।। | 3-240-29a 3-240-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 240 ।। |
3-240-2 समङ्गो नाम इति झ. पाठः ।। 3-240-4 स्मारणे स्मरणहेतौ कर्मणि गवां संख्यापूर्वकं वयोवर्णजातिनाम्नां लेखने ।। 3-240-7 ते पाण्डवाः ।। 3-240-9 तेजोऽग्निरेव ।। 3-240-27 वेशो वेश्याजनाश्रयः ।। 3-240-29 गव्यूतिः क्रोशद्वयम् ।।
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