महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-274
दिखावट
← आरण्यकपर्व-273 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-274 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-275 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
युधिष्ठिरेण मार्कण्डेयंप्रति स्वसमानदुःखिसत्ताप्रश्नः ।। 1 ।।
जनमेजय उवाच। | 3-274-1x |
एवं हृतायां कृष्णायां प्राप्य क्लेशमनुत्तमम्। अत ऊर्द्वं नरव्याघ्राः किमकुर्वत पाण्डवाः ।। | 3-274-1a 3-274-1b |
वैशंपायन उवाच। | 3-274-2x |
एवं कृष्णां मोक्षयित्वाविनिर्जित्य जयद्रथम्। आसांचक्रे मुनिगणैर्धर्मराजो युधिष्टिरः ।। | 3-274-2a 3-274-2b |
तेषां मध्येमहर्षीणां शृण्वतामनुशोचताम्। मार्कण्डेयमिदं वाक्यमब्रवीत्पाण्डुनन्दनः ।। | 3-274-3a 3-274-3b |
भगवन्देवर्षीणां त्वं ख्यातो भूतभविष्यवित्। संशयं परिपृच्छमि च्छिन्धि मे हृदि संस्थितम् ।। | 3-274-4a 3-274-4b |
द्रुपदस्य सुता ह्येषा वेदिमध्यात्समुत्थिता। अयोनिजा महाभागास्नुषा पाण्डोर्महात्मनः ।। | 3-274-5a 3-274-5b |
मन्ये कालश्च भगवान्दैवं च दुरतिक्रमम्। भवितव्यं च भूतानां यस् नास्ति व्यतिक्रमः ।। | 3-274-6a 3-274-6b |
कथं हि पत्नीमस्माकं धर्मज्ञां धर्मचारिणीम्। संस्पृशेदीदृशो भावः शुचिं स्तैन्यमिवानृतम् ।। | 3-274-7a 3-274-7b |
न हि पापं कृतंकिंचित्कर्म वा निन्दितं क्वचित्। द्रौपद्या ब्राह्मणेष्वेव धर्मः सुचरितो महान् ।। | 3-274-8a 3-274-8b |
तां जहार बलाद्राजा मूढबुद्धिर्जयद्रथः। तस्याः संहरणात्पापः शिरसः केशवापनम् ।। | 3-274-9a 3-274-9b |
पराजयं च संग्रामे ससहाः समाप्तवान्। प्रत्याहृता तथाऽस्माभिर्हत्वा तत्सैन्धवं बलम् ।। | 3-274-10a 3-274-10b |
तद्दारहरणं प्राप्तमस्माभिरवितर्कितम्। दुःखश्चायं वने वासो मृगयायां च जीविका ।। | 3-274-11a 3-274-11b |
हिंसा च मृगजातीनां वनौकोभिर्वनौकसाम्। ज्ञातिभिर्विप्रवासश्च मिथ्याव्यवसितैरियम् ।। | 3-274-12a 3-274-12b |
अस्ति नूनं मया कश्चिदल्पभाग्यतरो नरः। भवता दृष्टपूर्वो वा श्रुतपूर्वोऽपि वा क्वचित् ।। | 3-274-13a 3-274-13b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि चतुःसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 274 ।। |
3-274-6 दैवं च विधिनिर्मितमिति झ. ध. पाठः। तत्रदैवं धर्माधर्मौ विधिः सदसत्कर्मणी ताभ्यां निर्मितम् ।। 3-274-7 ईदृशो भावः परेण हरणम् ।। 3-274-12 मिथ्याव्यवसितैः वृथातापसवेषधरैः। इयं हिंसा क्रियत इति शेषः ।। 3-274-13 मया सम इतिशेषः ।।
आरण्यकपर्व-273 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-275 |