महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-153
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उपसंहृतपृथुरूपेण हनुमता सपरिष्वङ्गवरदानं विसृष्टेन भीमेन गन्धमादने सौरान्धिकसरोदर्शनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-153-1x |
ततः संहृत्य विपुलं तद्वपुः कामवर्धितम्। भीमसेनं पुनर्दोर्भ्यां पर्यष्वजत वानरः ।। | 3-153-1a 3-153-1b |
परिष्वक्तस्य तस्याशु भ्रात्रा भीमस्य भारत। श्रमो नाशमुपागच्छत्सर्वं चासीत्प्रदक्षिणम् ।। | 3-153-2a 3-153-2b |
[बलं चातिबलो मेने न मेऽस्ति सदृशो महान्।] ततः पुनरथोवाच पर्यश्रुनयनो हरिः ।। | 3-153-3a 3-153-3b |
भीममाभाष्य सौहार्दाद्बाष्पगद्गदया गिरा। गच्छ वीर स्वमावासं स्मर्तव्योऽस्मि कथान्तरे ।। | 3-153-4a 3-153-4b |
इहस्थश्च कुरुश्रेष्ठ न निवेद्योस्मि कस्यचित्। धनदस्यालयाच्चापि विसृष्टानां महाबल ।। | 3-153-5a 3-153-5b |
एष काल इहायातुं देवगन्धर्वयोषिताम्। ममापि सफलं च क्षुः स्मारितश्चास्मि राघवम् ।। | 3-153-6a 3-153-6b |
[रामाभिधानं विष्णुं हि जगद्धृदयनन्दनम्। सीतावक्रारविन्दार्कं दशास्यध्वान्तभास्करम् ।।] | 3-153-7a 3-153-7b |
मानुषं गात्रसंस्पर्शं गत्वा भीम त्वया सह। तदस्मद्दर्शनं वीर कौन्तेयामाघमस्तु ते ।। | 3-153-8a 3-153-8b |
भ्रातृत्वं त्वं पुरस्कृत्य वरं वरय भारत। यदि तावन्मया क्षुद्रा गत्वा वारणसाह्वयम् ।। | 3-153-9a 3-153-9b |
धार्तराष्ट्रा निहन्तव्या यावदेतत्करोम्यहम्। शिलया नगरं वा तन्मर्दितव्यं मया यदि ।। | 3-153-10a 3-153-10b |
[बद्ध्वा दुर्योधनं चाद्य आनयामि तवान्तिकम्।] यावदेतत्करोम्यद्यकामं तव महाबल ।। | 3-153-11a 3-153-11b |
भीमसेनस्तु तद्वाक्यं श्रुत्वा तस् महात्मनः। प्रत्युवाच हनून्तं प्रहृष्टेनान्तरात्मना ।। | 3-153-12a 3-153-12b |
कृतमेव त्वया सर्वं मम वानरपुङ्गव। स्वस्ति तेऽस्तु महाबाहो कामये त्वां प्रसीदमे ।। | 3-153-13a 3-153-13b |
सनाथाः पाण्डवाः सर्वे त्वया नाथेन वीर्यवन्। तवैव तेजसा सर्वान्विजेष्यामो वयं परान् ।। | 3-153-14a 3-153-14b |
एवमुक्तस्तु हनुमान्भीमसेनमभाषत। भ्रातृत्वात्सौहृदाच्चैव करिष्यामि प्रियं तव ।। | 3-153-15a 3-153-15b |
चमूं विगाह्य शत्रूणां परशक्तिसमाकुलाम्। यदा सिंहरवं वीर करिष्यसि महाबल ।। | 3-153-16a 3-153-16b |
तदाहं बृंहयिष्यामि स्वरवेण रवं तव। `यं श्रुत्वैव भविष्यन्ति व्यसवस्तेऽरयो रणे' ।। | 3-153-17a 3-153-17b |
विजयस्य ध्वजस्थश्च नादान्मोक्ष्पामि दारुणान्। शत्रूणां ये प्राणहराः सुखं येन हनिष्यथ ।। | 3-153-18a 3-153-18b |
एवमाभाष्य हनुमांस्तदा पाण्डवनन्दनम्। मार्गमाख्याय भीमाय तत्रैवान्तरधीयत ।। | 3-153-19a 3-153-19b |
गते तस्मिन्हरिवरे भीमोपि बलिनांवरः। तेन मार्गेण विपुलं व्यचरद्गन्धमादनम् ।। | 3-153-20a 3-153-20b |
अनुस्मरन्वपुस्तस्य श्रियं चाप्रतिमां भुवि। माहात्म्यमनुभावं च स्मरन्दाशरथेर्ययौ ।। | 3-153-21a 3-153-21b |
स तानि रमणीयानि वनान्युपवनानि च। विलोलयामास तदा सौगन्धिकवनेप्सया ।। | 3-153-22a 3-153-22b |
फुल्लपद्मविचित्राणि सरांसि सरितस्तथा। नानाकुसुमचित्राणि पुष्पितानि वनानि च ।। | 3-153-23a 3-153-23b |
मत्तवारणयुथानि पङ्कक्लिन्नानि भारत। वर्षतामिव मेघानां वृन्दानि ददृशे तदा ।। | 3-153-24a 3-153-24b |
हरिणैश्चपलापाङ्गैर्हरिणीसहितैर्वनम्। सशष्पकवलैः श्रीमान्पथि दृष्ट्वा द्रुतं ययौ ।। | 3-153-25a 3-153-25b |
महिषैश्च वराहैश्च शार्दूलैश्च निषेवितम्। व्यपेतभीर्गिरिं शौर्याद्भीमसेनो व्यगाहत ।। | 3-153-26a 3-153-26b |
कुसुमानतशाखैश्च ताम्रपल्लवकोमलैः। याच्यमान इवारण्ये द्रुमैर्मारुतकम्पितैः ।। | 3-153-27a 3-153-27b |
कृतपद्माञ्जलिपुटा मत्तषट्पदसेविताः। प्रियतीर्थवना मार्गे पद्मिनीः समतिक्रमन् ।। | 3-153-28a 3-153-28b |
सज्जमानमनोदृष्टिः फुल्लेषु गिरिसानुषु। द्रौपदीवाक्यपाथेयो भीमो भीमपराक्रमः ।। | 3-153-29a 3-153-29b |
परिवृत्तेऽहनि ततः प्रकीर्णहरिणे वने। काञ्चनैर्विलैः पद्मैर्ददर्श विपुलां नदीम् ।। | 3-153-30a 3-153-30b |
हंसकारण्डवयुतां चक्रवाकोपशोभिताम्। रचितामिव तस्याद्रेर्भालां विमलपङ्कजाम् ।। | 3-153-31a 3-153-31b |
तस्यां नद्यां महासत्वः सौगन्धिकवनं महत्। अपश्यत्प्रीतिजननं बालार्कसदृशद्युति ।। | 3-153-32a 3-153-32b |
तद्दृष्ट्वा लब्धकामः स मनसा पाण्डुनन्दनः। वनवासपरिक्लिष्टां जगाम मनसा प्रियाम् ।। | 3-153-33a 3-153-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि त्रिपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ।। 153 ।। |
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