महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-118
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अकृतव्रणेन युधिष्ठिरंप्रति पितृवधमर्षात् त्रिः सप्तकृत्वः पृथिव्या निःक्षत्रियीकरणादिरामचरित्रकथनम् ।। 1 .। युधिष्ठिरेण परेद्युश्चतुर्दश्यां संनिहितपरशुरामपूजनादिपूर्वकं महेन्द्रशैलात्पुरः प्रस्थानम् ।। 2 ।।
राम उवाच। | 3-118-1x |
ममापराधात्तैः क्षुद्रैर्हतस्त्वं तात बालिशैः। कार्तवीर्यस्य दायादैर्वने मृग इवेषुभिः ।। | 3-118-1a 3-118-1b |
धर्मज्ञस्य कथं तात वर्तमानस्य सत्पथे। मृत्युरेवंविधो युक्तः सर्वभूतेष्वनागसः ।। | 3-118-2a 3-118-2b |
किंनु तैर्न कृतंपापं यैर्बवांस्तपसि स्तितः। अयुध्यमानो वृद्धः सन्हतः शरशतैः शितैः ।। | 3-118-3a 3-118-3b |
किंनु ते तत्र वक्ष्यन्ति सचिवेषु सुहृत्सु च। अयुध्यमानं धर्मज्ञमेकं हत्वाऽनपत्रपाः ।। | 3-118-4a 3-118-4b |
अकृतव्रण उवाच। | 3-118-5x |
लालप्यैवं सकुस्न्णं बहु नानाविधं नृप। प्रेतकार्याणि सर्वाणि पितुश्चक्रे महातपाः ।। | 3-118-5a 3-118-5b |
ददाह पितरं चाग्नौ रामः परपुरंजयः। प्रतिजज्ञे वधं चापि सर्वक्षत्रस्य भारत ।। | 3-118-6a 3-118-6b |
संक्रुद्धोऽतिबलः सङ्ख्ये शस्त्रमादाय वीर्यवान्। जघ्निवान्कार्तवीर्यस्य सुतानेकोऽन्तकोपमः ।। | 3-118-7a 3-118-7b |
तेषां चानुगता ये च क्षत्रियाः क्षत्रियर्षभ। तांश्च सर्वानवामृद्गाद्रामः प्रहरतांवरः ।। | 3-118-8a 3-118-8b |
त्रिःसप्तकृत्वः पृथिवीं कृत्वा निःक्षित्रियां प्रभुः। समन्तपञ्चके पञ्च चकार रुधिरह्रदान् ।। | 3-118-9a 3-118-9b |
स तेषु तर्पयामास पितॄन्भृगुकुलोद्वहः। साक्षाद्ददर्श चर्चीकं स च रामं न्यवारयत् ।। | 3-118-10a 3-118-10b |
ततो यज्ञेन महता जामदग्न्यः प्रतापवान्। तर्पयामास देवेन्द्रमृत्विग्भ्यः प्रददौ महीम् ।। | 3-118-11a 3-118-11b |
वेदीं चाप्यददद्धैमीं कश्यपाय महात्मने। दशव्यामायतां कृत्वा नवोत्सेधां विशांपते ।। | 3-118-12a 3-118-12b |
तां कश्यपस्यानुमते ब्राह्मणाः खण्डशस्तदा। व्यभजंस्ते तदा राजन्प्रख्याताः खाण्डवायनाः ।। | 3-118-13a 3-118-13b |
स प्रदाय महीं तस्मै कश्यपाय महात्मने। `तपः सुमहदास्थाय महाबलपराक्रमः'। अस्मिन्महेन्द्रे शैलेन्द्रे वसत्यमितविक्रमः ।। | 3-118-14a 3-118-14b 3-118-14c |
एवं वैरमभूत्तस्य क्षत्रियैर्लोकवासिभिः। पृथिवी चापि विजिता रामेणामिततेजसा ।। | 3-118-15a 3-118-15b |
वैशंपायन उवाच। | 3-118-16x |
ततश्चतुर्दशीं रामः समयेन महामनाः। दर्शयामास तान्विप्रान्धर्मराजं ज सानुजम् ।। | 3-118-16a 3-118-16b |
स तमानर्च राजेन्द्र भ्रातृभिः सहितः प्रभुः। द्विजानां च परां पूजां चक्रे नृपतिसत्तमः ।। | 3-118-17a 3-118-17b |
अर्जित्वा जामदग्न्यं स पूजितस्तेन चोदितः। महेन्द्र उष्य तां रात्रिं प्रययौ दक्षिणामुखः ।। | 3-118-18a 3-118-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि अष्टादशाधिकशततमोऽध्यायः ।। 118 ।। |
3-118-12 दशव्यामायतां व्यामो हस्तचतुष्टयम्। चत्वारिंशद्धस्तायामविस्ताराम्। नवोत्सेधां षट्रत्रिंशद्धस्तोच्छ्रायां चेत्यर्थः 3-118-17 आनर्च अर्चितवान् ।। 3-118-18 उष्य उषित्वा ।।
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