महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-294
← आरण्यकपर्व-293 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-294 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-295 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
मार्कण्डेयेन युधिष्ठिरंप्रति सावित्र्युपाख्यानकथनारम्भः ।। 1 ।। अस्वपतिनाम्नो मद्रराजस्य स्वीयव्रतचर्यासंतुष्टसावित्रीदेवीप्रसादात्सावित्रीनामककन्याजननम् ।। 2 ।। यौवनस्ययातया पित्राज्ञया वृद्दामात्यैः सह राजर्षीणामाश्रमेषु स्वोधितवरान्वेषणम् ।। 3 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-294-1x |
नात्मानमनुशोचामि नेमान्भ्रातॄन्महामुने। हरणं चापि राज्यस् यथेमां द्रुपदात्मजाम् ।। | 3-294-1a 3-294-1b |
द्यूते दुरात्मभिः क्लिष्टाः कृष्णया तारिता वयम्। जयद्रथेन चपुनर्वनाच्चापि हृता बलात् ।। | 3-294-2a 3-294-2b |
अस्ति सीमन्तिनी काचिद्दृष्टपूर्वाऽपिवा श्रुता। पतिव्रता महाभागा यथेयं द्रुपदात्मजा ।। | 3-294-3a 3-294-3b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-294-4x |
शृणु राजन्कुलस्त्रीणां महाभाग्यं युधिष्ठिर। सर्वमेतद्यथाप्राप्तं सावित्र्या राजकन्यया ।। | 3-294-4a 3-294-4b |
आसीन्मद्रेषु धर्मात्मा राजा परमधार्मिकः। ब्रह्मण्यश्चमहात्मा च सत्यसन्धो जितेन्द्रियः ।। | 3-294-5a 3-294-5b |
यज्वा दानपतिर्दक्षः पौरजानपदप्रियः। पार्थिवोऽश्वपतिर्नाम सर्वभूतहिते रतः ।। | 3-294-6a 3-294-6b |
क्षमावाननपत्यश्च सत्यवाग्विजितेन्द्रियः। अतिक्रान्तेन वयसा संतापमुपजग्मिवान् ।। | 3-294-7a 3-294-7b |
अपत्योत्पादनार्थं च तीव्रं नियममास्थितः। काले परिमिताहारो ब्रहमचारी जितेन्द्रियः ।। | 3-294-8a 3-294-8b |
हुत्वा शतसहस्रं स सावित्र्या राजसत्तम। षष्ठेषष्ठे तदाकाले बभूव मितमोजनः ।। | 3-294-9a 3-294-9b |
एतेन नियमेनासीद्वर्षाण्यष्टादशैव तु। पूर्णे त्वष्टादशे वर्षे सावित्री तुष्टिमभ्यगात् ।। | 3-294-10a 3-294-10b |
रूपिणी तु तदा राजन्दर्शयामास तं नृपम्। अग्निहोत्रात्समुत्थाय हर्षेण महताऽन्विता ।। | 3-294-11a 3-294-11b |
उवाच चैनं वरदा वचनं पार्थिवं तदा। सा तमश्वपतिं राजन्सावित्री नियमे स्थितम् ।। | 3-294-12a 3-294-12b |
ब्रह्मचर्येण शुद्धेन दमेन नियमेन रच। सर्वात्मना च भक्त्या च तुष्टाऽस्मि तव पार्थिवाः ।। | 3-294-13a 3-294-13b |
वरं वृणीष्वाश्वपते मद्रराज यदीप्सितम्। न प्रामादश्च धर्मेषु कर्तव्यस्ते कथंचन ।। | 3-294-14a 3-294-14b |
अश्वपतिरुवाच। | 3-294-15x |
अपत्यार्थः समारम्भः कृतो धर्मेप्सया मया। पुत्रा मे बहवो देवि भवेयुः कुलभावनाः ।। | 3-294-15a 3-294-15b |
तुष्टाऽसि यदि मे देवि वरमेतं वृणोम्यहम्। संतां परमो धर्म इत्याहुर्मां द्विजातयः ।। | 3-294-16a 3-294-16b |
सावित्र्युवाच। | 3-294-17x |
पूर्वमेव मया राजन्नभिप्रायमिमं तव। ज्ञात्वा पुत्रार्थमुक्तो वै भगवांस्ते पितामहः ।। | 3-294-17a 3-294-17b |
प्रसादाच्चैव तस्मात्ते स्वयं विहितवत्यहम्। कन्या तेजस्विनी सौम्य क्षिप्रमेव भविष्यति ।। | 3-294-18a 3-294-18b |
उत्तरं च न ते किंचिद्व्याहर्तव्यं कथंचन। पितामहनियोगेन तुष्टा ह्येतद्ब्रवीमि ते ।। | 3-294-19a 3-294-19b |
स तथेति प्रतिज्ञाय सावित्र्या वचनं नृपः। प्रसादयामास पुनः क्षिप्रमेतद्भविष्यति ।। | 3-294-20a 3-294-20b |
अन्तर्हितायां सावित्र्यां जगाम स्वपुरं नृपः। स्वराज्ये चावसद्बीरः प्रजा धर्मेण पालयन् ।। | 3-294-21a 3-294-21b |
कस्मिंश्चित्तु गते काले स राजा नियतब्रतः। ज्येष्ठायां धर्मचारिण्यां महिष्यां कगर्भमादधे ।। | 3-294-22a 3-294-22b |
राजपुत्र्यास्तु गर्भः स मानव्या भरतर्षभ। व्यर्धतं तदा शुक्ले तारापतिरिवाम्बरे ।। | 3-294-23a 3-294-23b |
प्राप्ते काले तु सुषुवे कन्यां राजीवलोचनाम्। क्रियाश्च तस्या मुदितश्चक्रे च नृपसत्तमः ।। | 3-294-24a 3-294-24b |
सावित्र्या प्रीतया दत्ता साव्त्र्या द्दुतया ह्यपि। सावित्रीत्येव नामास्याश्चक्रुर्विप्रास्तथा पिता ।। | 3-294-25a 3-294-25b |
सा विग्रहवतीव श्रीव्यवर्धत नृपात्मजा। कालेन चापि सा कन्या यौवनस्ता बभूव ह ।। | 3-294-26a 3-294-26b |
तां सुमध्यां पृथुश्रोणीं प्रतिमां काञ्चनीमिव। प्राप्तेयं रदेवकन्येति दृष्ट्वा संमेनिरे जनाः ।। | 3-294-27a 3-294-27b |
तां तु पद्मपलाशाक्षीं ज्वलन्तीमिव तेजसा। न कश्चिद्वरयामास तेजसा प्रतिवारितः ।। | 3-294-28a 3-294-28b |
अथोपोष्य शिरःस्नाता देवतामभिगम्य सा। हुत्वाग्निं विधिवद्विप्रान्वाचयामास पर्वणि ।। | 3-294-29a 3-294-29b |
ततः सुमनसः शेषाः प्रतिगृह्य महात्मनः। पितुः समीपमगमद्देवी श्रीरिव रूपिणी ।। | 3-294-20a 3-294-30b |
साऽभिवाद्य पितुः पादौ शेषाः पूर्वं निवेद्य च। कृताञ्जलिर्वरारोहा नृपतेः पार्श्वमास्थिता ।। | 3-294-31a 3-294-31b |
यौवनस्थां तु तां दृष्ट्वा स्वां सुतां देवरूपिणीम्। अयाच्यमानां च वरैर्नृपतिर्दुःखितोऽभवत् ।। | 3-294-32a 3-294-32b |
राजोवाच। | 3-294-33x |
पुत्रि प्रदानकालस्ते न च कश्चिद्वृणोति माम्। स्वयमन्विच्छ भर्तारं गुणैः सदृशमात्मनः ।। | 3-294-33a 3-294-33b |
प्रार्थितः पुरुषो यश्च स निवेद्यस्त्वया मम। विमृश्याहं प्रदास्यामि वरय त्वं यथेप्सितम् ।। | 3-294-34a 3-294-34b |
श्रुतं हि धर्मशास्त्रेषु पठ्यमानं द्विजातिभिः। तथा त्वमपिकल्याणि गदतो मे वचः शृणु ।। | 3-294-35a 3-294-35b |
अप्रदाता पिता वाच्यो वाच्यश्चानुपयन्पतिः। मृते पितरि पुत्रश्च वाच्यो मातुररक्षिता ।। | 3-294-36a 3-294-36b |
इदं मे वचनं क्षुत्वा भर्तुरन्वेषणे न्वर। देवतानां यथा याच्यो न भवेयं तथा कुरु ।। | 3-294-37a 3-294-37b |
एवमुक्त्वा दुहितरं तथा वृद्धांश्च मन्त्रिणः। व्यादिदेशानुयात्रं च गम्यतां चेत्यचोदयत् ।। | 3-294-38a 3-294-38b |
साऽभिवाद्य पितुः पादौ व्रीडितेव मनस्विनी। पितुर्वचनमाज्ञाय निर्जगामाविचारितम् ।। | 3-294-39a 3-294-39b |
सा हैमं रथमास्थाय स्थविरैः सचिवैर्वृता। तपोवनानिरम्याणि राजर्षीणां जगाम ह ।। | 3-294-40a 3-294-40b |
मान्यानां तत्र वृद्धानां कृत्वा पादाभिवादनम्। वनानि क्रमशस्तात सर्वाण्येवाभ्यगच्छत ।। | 3-294-41a 3-294-41b |
एवं तीर्थेषु सर्वेषु धनोत्सर्गं नृपात्मजा। कुर्वी द्विजमुख्यानां तंतं देशं जगाम ह ।। | 3-294-42a 3-294-42b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि पतिव्रतामाहात्म्यपर्वणि चतुर्नवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 294 ।। |
3-294-9 सावित्र्या सावित्री सवितृकन्या तद्दैवत्यवा ऋचा रसा च। सोर्मा वधूयुरभवदित्यादिः। षष्ठेकाले अष्टधाविभक्तस्याह्नः षष्ठेशे ।। 3-294-19 उत्तरं पुत्रार्थं प्रार्थनावचनम् ।। 3-294-20 प्रतिज्ञायाज्ञोकृत्य ।। 3-294-23 मानव्या मनुपुत्र्याः ।। 3-294-28 प्रतिवारितोऽभिभूतः ।। 3-294-30 सुमनस इष्टदेवतायाः। शोषाः प्रसादपूर्वकं दत्तानि माल्यानि ।। 3-294-32 अयाच्यमानां तु नरैरिति ध. पाठः ।। 3-294-34 प्रार्थित इच्छितः ।। 3-294-36 वाच्यो निन्द्यः। अनुपयन् ऋतावगच्छन ।। 3-294-38 अनुयात्रां यात्रोपकरणं वाहनादि ।।
आरण्यकपर्व-293 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-295 |