महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-225
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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मार्कण्डेयेन युदिष्ठिरंप्रति कुमारोत्पत्तिप्रकारकथनारम्भः ।। 1 ।। देवसेनानां नायकसंपादनाय चिन्तयता इन्द्रेण मानसशैले कस्याश्चित्कन्याया अवलोकनम् तस्याः कुलचिकीर्षितादिप्रश्नश्च ।। 2 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-225-1x |
अग्नीनां विविधा वंशाः कीर्तितास्ते मयाऽनघ। शुणु जन्म तु कौरव्य कार्तिकेयस् धीमतः ।। | 3-225-1a 3-225-1b |
अद्भुतस्याद्भुतं पुत्रं प्रवक्ष्याम्यमितौजसम्। जातं सप्तर्षिभार्याभिर्ब्रह्मण्यं कीर्तिवर्धनम् ।। | 3-225-2a 3-225-2b |
देवासुराः पुरा यत्ता विनिघ्नन्तः परस्परम्। तत्राजयन्सदा देवान्दानवा घोररूपिणः ।। | 3-225-3a 3-225-3b |
वध्यमानं बलं दृष्ट्वा बहुशस्तैः पुरंदरः। स सैन्यनायकार्थाय चिन्तयामास वासवः ।। | 3-225-4a 3-225-4b |
देवसेनां दानवैर्हि भग्नां दृष्ट्वा महाबलः। पालयेद्वीर्यमाश्रित्य स ज्ञेयः पुरुषो मया ।। | 3-225-5a 3-225-5b |
स शैलं मानसं गत्वा ध्यायन्नर्थमिमं भृशम्। शुश्रावार्तस्वरं घोरमथ मुक्तं स्त्रिया तदा ।। | 3-225-6a 3-225-6b |
अभिधावतु मां कश्चित्पुरुषस्त्रातु चैव ह। पतिं च मे प्रदिशतु स्वयं वा पतिरस्तु मे ।। | 3-225-7a 3-225-7b |
पुरंदरस्तु तामाह मा भैर्नास्ति भयं तव। एवमुक्त्वा ततोऽपश्यत्केशिनं स्थितमग्रतः ।। | 3-225-8a 3-225-8b |
किरीटिनं गदापाणिं धातुमन्तमिवाचलम्। हस्ते गृहीत्वा कन्यां तामथैनं वासवोऽब्रवीत् ।। | 3-225-9a 3-225-9b |
अनार्यकर्मन्कस्मात्त्वमिमां कन्यां जिहीर्षसि। वज्रिणं मांविजानीहि विरमास्याः प्रबाधनात् ।। | 3-225-10a 3-225-10b |
केश्युवाच। | 3-225-11x |
विसृजस्व त्वमेवैनां शक्रैषा प्रार्थिता मया। क्षमं तेजीवतो गनतुं स्वपुरं पाकशासन ।। | 3-225-11a 3-225-11b |
एवमुक्त्वा गदां केशी चिक्षेपेन्द्रवधाय वै। तामापतन्तीं चिच्छेद मध्ये वज्रेण वासवः ।। | 3-225-12a 3-225-12b |
अथास्य शैलशिखरं केशी क्रुद्धो व्यवासृजत्। `महामेघप्रतीकाशं चलत्पावकसंकुलम् ।। | 3-225-13a 3-225-13b |
तदापन्ततं संप्रेक्ष्य शैलशृङ्गं शतक्रतुः। बिभेद राजन्वज्रेण भुवि तन्निपपात ह ।। | 3-225-14a 3-225-14b |
पतता तु तदा केशी तेन शृङ्गेण ताडितः। हित्वा कन्यां महाभागां प्राद्रवद्भृशपीडितः ।। | 3-225-15a 3-225-15b |
अपयातेऽसुरे तस्मिंस्तां कन्यां वासवोऽब्रवीत्। कासि कस्यसि किंचेह कुरुषे त्वं शुभानने ।। | 3-225-16a 3-225-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि पञ्चविंसत्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 225 ।। |
3-225-2 अद्भुतस्याग्नेः। अद्भुतं अभिवनम् ।। 3-225-6 स्त्रिया देवसेनाभिमानिदेवतया ।।
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