महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-244
दिखावट
← आरण्यकपर्व-243 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-244 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-245 → |
भीमेन युधिष्ठिरंप्रति दुर्योधनकृतापनयानुस्मनारणपूर्वकं तद्विमोचनस्यानौचित्यप्रतिपादने युधिष्ठिरेण पुनस्तंप्रति तच्चोदनायामर्जुनेन तत्प्रतिज्ञानम् ।। 1 ।।
यधिष्ठिर उवाच। | 3-244-1x |
अस्मानभिगतांस्तात भयार्ताञ्छरणैषिणः। कौरवान्विषमप्राप्तान्कथं ब्रूयास्त्वमीदृशम् ।। | 3-244-1a 3-244-1b |
भवन्ति भेदा ज्ञातीनां कलहाश्च वृकोदर। प्रसक्तानि च वैराणि ज्ञातिधर्मो न नश्यति ।। | 3-244-2a 3-244-2b |
यदा तु कश्चिज्ज्ञातीनां बाह्यः प्रार्थयते कुलम्। न मर्षयन्ति तत्सन्तो बाह्येनाभिप्रधर्षणम् ।। | 3-244-3a 3-244-3b |
जानात्येष हि दुर्बुद्धिरस्मानिह चिरोषितान्। स एवं परिभूयास्मानकार्षीदिदमप्रियम् ।। | 3-244-4a 3-244-4b |
दुर्योधनस्य ग्रहणाद्गन्धर्वेण बलाद्रणे। स्त्रीणां बाह्याभिमर्शाच्च हतं भवति नः कुलम् ।। | 3-244-5a 3-244-5b |
श्चरणं च प्रपन्नानां त्राणार्थं च कुलस्य च। उत्तिष्ठध्वं नरव्याघ्राः सज्जीभवत मा चिरम् ।। | 3-244-6a 3-244-6b |
अर्जुनश्च यमौ चैव त्वं च भीमापराजितः। मोक्षयध्वं नरव्याघ्रा ह्रियमाणं सुयोधनम् ।। | 3-244-7a 3-244-7b |
एते रथा नरव्याघ्राः सर्वशस्त्रसमन्विताः। धृतराष्ट्रस्य पुत्राणां विमला काञ्चनध्वजाः ।। | 3-244-8a 3-244-8b |
सस्वनानधिरोहध्वं नित्यसज्जानिमान्रथान्। इन्द्रसेनादिभिः सूतैः कृतशस्त्रैरधिष्ठितान् ।। | 3-244-9a 3-244-9b |
एतानास्थाय वै यत्ता गन्धर्वान्योद्धुमाहवे। सुयोधनस्य मोक्षाय प्रयतध्वमतनद्रिताः ।। | 3-244-10a 3-244-10b |
`परैः परिभवे प्राप्ते वयं पञ्चोत्तरं शतम्। परस्परविरोधे तु वयं पञ्चैव ते शतम् ।।' | 3-244-11a 3-244-11b |
य एव कश्चिद्राजन्यः शरणार्थमिहागतम्। परं शक्त्याभिरक्षेत किं पुनस्त्वं वृकोदर ।। | 3-244-12a 3-244-12b |
`एवमुक्तस्तु कौन्तेयः पुनर्वाक्यमभाषत। कोपसंरक्तनयनः पूर्ववैरमनुस्मरन् ।। | 3-244-13a 3-244-13b |
पुरा जतुगृहेऽनेन दग्धुमस्मान्युधिष्ठिर। दुर्बुद्धिर्हि कृता वीर तदा दैवेन रक्षिताः ।। | 3-244-14a 3-244-14b |
कालकूटविषं तीक्ष्णं भोजने मम भारत। उप्त्वा गङ्गां लतापाशैर्वैद्ध्वा च प्राक्षिपत्प्रभो ।। | 3-244-15a 3-244-15b |
रसातलं च संप्राप्य तदा वासुकिमञ्जसा। तत्र दृष्ट्वा तु राजेन्द्रपुनः प्राप्तो महीतलम् ।। | 3-244-16a 3-244-16b |
द्यूतकालेऽपिकौन्तेय वृजिनानि कृतनि वै। द्रौपद्याश्च पराभर्शः केशग्रहणमेव च। वस्त्रापहरणं चैव सभामध्ये कृतानि वै ।। | 3-244-17a 3-244-17b 3-244-17c |
राज्यं चाच्छिद्य राजेन्द्र उक्तवान्परुषाणि नः। पुरा कृतानां पापानां फलं भुङ्क्ते सुयोधनः ।। | 3-244-18a 3-244-18b |
अस्माबिरेवकर्तव्यं धार्तराष्ट्रस्य निग्रहम्। अन्येन तु कृतं तद्वै मैत्र्यमस्माकमिच्छता। उपकारी तु गन्धर्वो मा राजन्विमना भव ।। | 3-244-19a 3-244-19b 3-244-19c |
वैशंपायन उवाच। | 3-244-20x |
एतस्मिन्नन्तरे राजंश्चित्रसेनेन वै हृतः। विललाप सुदुःखार्तो नीयमानः सुयोधनः ।। | 3-244-20a 3-244-20b |
युधिष्ठिर महाबाहो सर्वधर्मभृतांवर। सपुत्रान्सहदारांश्च गन्धर्वेण हृतान्बलात् ।। | 3-244-21a 3-244-21b |
पाण्डुपुत्र महाबाहो कौरवाणां यशस्कर' सर्वधर्मभृतां श्रेष्ठ गन्धर्वेण हृतं बलात्। रक्षस्व पुरुषव्याघ्र युधिष्ठिर महायशः ।। | 3-244-22a 3-244-22b 3-244-22c |
भ्रातरं ते महाबाहो बद्ध्वा नयति मामयम्। दुश्शासनं दुर्विषहं दुर्मुखं दुर्जयं तथा ।। | 3-244-23a 3-244-23b |
बद्ध्वा हरन्ति गन्धर्वा अस्मान्दारांश्च सर्वशः। अनुधावत मां क्षिप्रं रक्षध्वं पुरुषोत्तमाः ।। | 3-244-24a 3-244-24b |
यमौ मामनुधावेतां रक्षार्थं मम सायुधौ। कुरुवंशस्य सुमहदयशः प्राप्तमीदृशम्। व्यपोहयध्वं गन्धर्वाञ्जित्वा वीर्येण पाण्डवाः ।। | 3-244-25a 3-244-25b 3-244-25c |
एवं विलपमानस्य कौरवस्यार्तया गिरा। श्रुत्वा विलापं संभ्रान्तो घृणयाऽभिपरिप्लुतः ।। | 3-244-26a 3-244-26b |
युधिष्ठिरः पुनर्वाक्यं भीमसेनमथाब्रवीत्। सुयोधनस्य मोक्षाय प्रयतध्वमतन्द्रिताः' ।। | 3-244-27a 3-244-27b |
क इवार्यो दयेत्प्राणानभिधावेति चोदितः। प्राञ्जलं शरणापन्नं दृष्ट्वा शत्रुमपि ध्रुवम् ।। | 3-244-28a 3-244-28b |
वरप्रदानं राज्यं च पुत्रजन्म च पाण्डवाः। शत्रोश्च मोक्षणं क्लेशास्त्रीणि चैकं च तत्समम् ।। | 3-244-29a 3-244-29b |
न ह्यस्त्यधिकमेतस्माद्यदापन्नः सुयोधनः। त्वद्बाहुबलमाश्रित्य जीवितं परिमार्गते ।। | 3-244-30a 3-244-30b |
स्वयमेव प्रधावेयं यदि न स्याद्वृकोदर। विततो मे क्रतुर्वीर न हि मेऽत्र विचारणा ।। | 3-244-31a 3-244-31b |
साम्नैव तु यथा भीम मोक्षयेथाः सुयोधनम्। तथा सर्वैरुपायैस्त्वं यतेथाः कुरुनन्दन ।। | 3-244-32a 3-244-32b |
न साम्ना प्रतिपद्येत यदि गन्धर्वराडसौ। पराक्रमेण मृदुना मोक्षयेथाः सुयोधनम् ।। | 3-244-33a 3-244-33b |
अथासौ मृदुयुद्धेन न मुञ्चेद्भीम कौरवान्। सर्वोपायैर्पिमोच्यास्ते निगृह्य परिपन्थिनः ।। | 3-244-34a 3-244-34b |
एतावद्धि मया शक्यं संदेष्टुं वै वृकोदर। वैताने कर्मणि तते वर्तमाने च भारत। `वरप्रदानं सुमहद्याचकस्य प्रकीर्तितम्' ।। | 3-244-35a 3-244-35b 3-244-35c |
वैशंपायन उवाच। | 3-244-36x |
अजातसत्रोर्वचनं तच्छ्रुत्वा तु धनंजयः। प्रतिजज्ञे गुरोर्वाक्यं कौरवाणां विमोक्षणम् ।। | 3-244-36a 3-244-36b |
अर्जुन उवाच। | 3-244-37x |
यदि ककसाम्ना न मोक्ष्यन्ति गन्धर्वा धृतराष्ट्रजान्। अद्य गन्धर्वराजस्य भूमिः पास्यति शोणितम् ।। | 3-244-37a 3-244-37b |
अर्जुनस्य तु तां श्रुत्वा प्रतिज्ञां सत्यवादिनः। कौरवाणां तदा राजन्पुनः प्रत्यागतं मनः ।। | 3-244-38a 3-244-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 244 ।। |
3-244-28 क इवार्यो नयेत्प्राणान् इति थ. पाठः। क इहार्यो भवेत्राणं इति झ. पाठः। अभिधाव याहीति चोदित आर्यः प्राणान् दयेत्। स्वप्राणेषु दयां कुर्यादित्यर्थः ।।
आरण्यकपर्व-243 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-245 |