महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-309
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कतिपयकालातिपाते कर्णस्य सहजकवचकुण्डलधारणएन कुन्त्यां जननम् ।। 1 ।।
कुन्त्या धात्र्यासह मन्त्रपूर्वकं जातमात्रस् गर्भस्य मञ्जूषायां निक्षेपपूर्वकमश्वनद्यां विसर्जनम् ।। 2 ।।
सगर्भाया मञ्जूषायाः क्रमेण चर्मण्वतीयमुनाद्वारा गङ्गायां प्लवनेन चम्पापुरीप्रवेशः ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-309-1x |
ततो गर्भः समभवत्पृथायाः पृथिवीपते। शुक्ले दशोत्तरे पक्षे तारापतिरिवाम्बरे ।। | 3-309-1a 3-309-1b |
सा बान्धवभयाद्बाला गर्भं तं विनिगूहती। धारयामास सुश्रोणी न चैनां बुबुधे जनः ।। | 3-309-2a 3-309-2b |
न हि तां वेद नार्यन्या काचिद्धात्रेयिकामृते। कन्यापुरगतां बालां निपुणां परिरक्षणे ।। | 3-309-3a 3-309-3b |
ततः कालेन सा गर्भं सुषुवे वरवर्णिनी। कन्यैव तस्य देवस्य प्रसादादमरप्रभम् ।। | 3-309-4a 3-309-4b |
तथैवाबद्धकवचं कनकोज्ज्वलकुण्डलम्। हर्यक्षं वृषभस्कन्धं यथास्य पितरं तथा ।। | 3-309-5a 3-309-5b |
जातमात्रं च तं गर्भं धात्र्या संमन्त्र्य भामिनी। `उत्स्रष्टुकामा तं गर्भं कारयामास भारत। | 3-309-6a 3-309-6b |
मञ्जूषां शिल्पिभिस्तूर्णं सुनद्धां सुप्रतिष्ठिताम् ।। प्लवैर्बहुविधैर्बद्धां प्लवनार्थं जले नृप। अजिनैर्मृदुभिश्चैवं संस्तीर्णशयनां तथा'।। | 3-309-7a 3-309-7b 3-309-7c |
मञ्जूषायां समाधाय स्वास्तीर्णायां समन्ततः। मधूच्चिष्टस्थितायां तं सुखायां रुदती तथा। श्लक्ष्णायां सुपिधानायामश्वनद्यामवासृजत् ।। | 3-309-8a 3-309-8b 3-309-8c |
जानती चाप्यकर्तव्यं कन्याया गर्भधारणम्। पुत्रस्नेहेन सा राजन्करुणं पर्यदेवयत् ।। | 3-309-9a 3-309-9b |
समुत्सृजन्ती मञ्जूपामश्वनद्यां तदा जले। उवाच रुदतीकुन्ती यानि वाक्यानि तच्छृणु ।। | 3-309-10a 3-309-10b |
स्वस्ति तेऽस्त्वान्तरिक्षेभ्यः पार्थिवेभ्यश्च पुत्रक। दिव्येभ्यश्चैव भूतेभ्यस्तथा तोयचराश्च ये ।। | 3-309-11a 3-309-11b |
शिवास्ते सन्तु पन्थानो मा च ते परिपन्थिनः। आगताश्च तथा पुत्र भवन्त्यद्रोहचेतसः ।। | 3-309-12a 3-309-12b |
पातु त्वां वरुणो राजा सलिले सलिलेश्वरः। अन्तरिक्षेऽन्तरिक्षस्थः पवनः सर्वगस्तथा ।। | 3-309-13a 3-309-13b |
पिता त्वां पातु सर्वत्र तपनस्तपतांवरः। येन दत्तोसि मे पुत्र दिव्येन विधिना किल ।। | 3-309-14a 3-309-14b |
आदित्या वसवो रुद्राः साध्या विश्वे च देवताः। मरुतश्च सहेन्द्रेण दिशश्च सदिदीश्वराः ।। | 3-309-15a 3-309-15b |
रक्षन्तु त्वां सुराः सर्वे समेषु विषमेषु च। वेत्स्यामि त्वांविदेशेपि कवचेनाभिसूचितम् ।। | 3-309-16a 3-309-16b |
धन्यस्ते पुत्र जनरको देवो भानुर्विभावसुः। स्त्वां द्रक्ष्यति दिव्येन चक्षुषा वाहिनीगतम् ।। | 3-309-17a 3-309-17b |
धन्या सा प्रमदा या त्वां पुत्रत्वे कल्पयिष्यति। यस्यास्त्वं तृषितः पुत्र स्तनं पास्यसि देवज ।। | 3-309-18a 3-309-18b |
कोनु स्वप्नस्तया दृष्टो या त्वामादित्यवर्चसम्। दिव्यवर्मसमायुक्तं दिव्यकृण्डलभूषितम् ।। | 3-309-19a 3-309-19b |
पद्मायतविशालाक्षं पद्मताम्रदलोज्ज्वलम्। सुललाटं सुकेशान्तं पुत्रत्वे कल्पयिष्यति ।। | 3-309-20a 3-309-20b |
धन्या द्रक्ष्यन्ति पुत्र त्वां भूमौ संसर्पमाणकम्। अव्यक्तकलवाक्यानि वदन्तं रेणुगुण्ठितम् ।। | 3-309-21a 3-309-21b |
धन्या द्रक्ष्यन्ति पुत्र त्वां पुनर्यौवनगोचरम्। हिमवद्वनसंभूतं सिंहं केसरिणं यथा ।। | 3-309-22a 3-309-22b |
एवं बहुविधं राजन्विलप्य करुणं पृथा। अवामृजतमज्जूषामश्वनद्यां तदा जले ।। | 3-309-23a 3-309-23b |
रुदती पुत्रशोकार्ता निशीथे कमलेक्षणा। धात्र्या सह पृथा राजन्पुत्रदर्शनलालसा ।। | 3-309-24a 3-309-24b |
विसर्जयित्वा मञ्जूषां संबोधनभयात्पितुः। विवेश राजभवनं पुनः शोकातुरा ततः ।। | 3-309-25a 3-309-25b |
मञ्जूषा त्वश्वनद्याः सा ययौ चर्मयण्वतीं नदीम्। चर्मण्वत्याश्चयमुनां ततो गङ्गां जगाम ह ।। | 3-309-26a 3-309-26b |
गङ्गायाः सूतविषयं चम्पामनुययौ पुरीम्। स मञ्जूषागतो गर्भस्तरङ्गैरुह्यमानकः ।। | 3-309-27a 3-309-27b |
अमृतादुत्थितं दिव्यं तनुवर्म सकुण्डलम्। धारयामास तं गर्भं दैवं च विधिनिर्मितम् ।। | 3-309-28a 3-309-28b |
एतद्गुह्यं महाराज सूर्यस्यासीन्महात्मनः। स सूर्यसंभवो गर्भः कुन्त्या गर्भेण धारितः' ।। | 3-309-29a 3-309-29b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि कुण्डलाहरणपर्वणि नवाधिकत्रिशततमोऽध्यायः ।। 309 ।। |
3-309-1 दशोत्तरे एकादशे शुक्ले पक्षे प्रतिपदि चन्द्रइव बाल उद्भूतः। माघशुक्लप्रतिपदि कर्णनिषेकजन्मेत्यर्थः ।। 3-309-5 हर्यक्षं सिंहनेत्रम् ।। 3-309-6 गर्भं प्रति संमन्त्र्येत्यध्याहारेणान्वयः ।। 3-309-8 मधूच्छिष्टं सिक्थकम्। मयनमिति भाषायाम्। तेन स्थितायां सर्वतोलिप्तायां मञ्जूषायाम्। जलप्रवेशो न भवेदित्यर्थः ।। 3-309-12 आगमाश्च तथा सन्तु दिव्येन विधिना तव इति थ. ध. पाठः। आगमाश्च तथा पान्तु इति क. पाठः ।। 3-309-28 दैवं कर्तृ। गर्भं सकुण्डलं वर्म धारयामासेत्यन्वयः। गर्भं कवचकुण्डलधारकंचकारेत्यर्थः। विधिना ईश्वरेण निर्मितम् ।।
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