महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-243
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चित्ररथेन रणे पराजितस्य दुर्योधनस्य बन्धनपूर्वकं स्वरथारोपणम् ।। 1 ।। इतरैर्गन्धर्वैर्दुर्योधनभ्रतॄणां तद्दाराणां वन्धनम् ।। 2 ।। दुर्योधनामात्यादिभिर्युधिष्ठिराय तन्निवेदने भीमेन तदनुमोदनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-243-1x |
गन्धर्वैस्तु महाराज भग्ने कर्णे महारथे। संप्राद्रवच्चमूः सर्वा धार्तराष्ट्रस्य पश्यतः ।। | 3-243-1a 3-243-1b |
तान्दृष्ट्वा द्रवतः सर्वान्धार्तराष्ट्रान्पराङ्मुखान्। दुर्योधनो महाराजो नासीत्तत्र पराङ्मुखः ।। | 3-243-2a 3-243-2b |
तामापतन्तीं संप्रेक्ष्य गन्धर्वाणां महाचमूम्। महता शरवर्षेण सोऽभ्यवर्षदरिंदमः ।। | 3-243-3a 3-243-3b |
अचिन्त्य शरवर्षं तु गन्धर्वास्तस्य तं रथम्। दुर्योधनं जिघांसन्तः समन्तात्पर्यवारयन् ।। | 3-243-4a 3-243-4b |
युगमीषां वरूथं च तथैव ध्वजसारथी। अश्वांस्त्रिवेणुमक्षं च तिलशो व्यधमञ्छरैः ।। | 3-243-5a 3-243-5b |
दुर्योधनं चित्रसनो विरथं पतितं भुवि। अभिद्रुस्य महाबाहुर्जीवग्राहमथाग्रहीत् ।। | 3-243-6a 3-243-6b |
`तस्य बाहू महाराज बद्ध्वा रज्ज्वा महारथम्। आरोप्यस महाबाहुश्चित्रसेनो ननाद ह' ।। | 3-243-7a 3-243-7b |
तस्मिन्गृहीते राजेन्द्र स्थितं दुःशासनं रथे। पर्यगृह्णन्त गन्धर्वाः परिवार्य समन्ततः ।। | 3-243-8a 3-243-8b |
विधिशतिं चित्रसेनमादायान्ये विदुद्रुवुः। विन्दानुविन्दावपरे राजदारांश्च सर्वशः ।। | 3-243-9a 3-243-9b |
सेनास्तु धार्तराष्ट्रस्य गन्धर्वैः समभिद्रुताः। पूर्वं प्रभग्नैः सहिताः पाण्डवानभ्ययुस्तदा ।। | 3-243-10a 3-243-10b |
शकटापणवेशाश्च यानयुग्यं च सर्वशः। शरणं पाण्डवाञ्जग्मुर्हियमाणे महीपतौ ।। | 3-243-11a 3-243-11b |
सैनिका ऊचुः। | 3-243-12x |
प्रियदर्शी महाबाहो धार्तराष्ट्रो महाबलः। गन्धर्वैर्ह्रियते राजा पार्थास्तमनुधावत ।। | 3-243-12a 3-243-12b |
दुःशासनो दुर्विषहो दुर्मुखो दुर्मुखो दुर्जयस्तथा। बद्ध्वा ह्रियन्ते गन्धर्वै राजदाराश्च सर्वशः ।। | 3-243-13a 3-243-13b |
इतिदुर्योधनामात्याः क्रोशन्तो राजगृद्धिनः। आर्ता दीनास्ततः सर्वे युधिष्ठिरमुपागमन् ।। | 3-243-14a 3-243-14b |
तांस्तथा व्यथितान्दीनान्भिक्षमाणान्युधिष्ठिरम्। वृद्धान्दुर्योधनामात्यान्भीमसेनोऽभ्यभाषत ।। | 3-243-15a 3-243-15b |
महता हि प्रयत्नेन संनह्य गजवाजिभिः। अन्यथा वर्तमानानामर्थो जातोऽयमन्यथा ।। | 3-243-16a 3-243-16b |
अस्माभिर्यदनुष्ठेयं गन्धर्वैस्तदनुष्ठितम् ।। | 3-243-17a |
दुर्मन्त्रितमिदं तावद्राज्ञो दुर्द्यूतदेविनः। `दीनान्दुर्योधनस्यास्मान्द्रष्टुकामस्य दुर्मतेः' ।। | 3-243-18a 3-243-18b |
द्वेष्टारमन्ये क्लीवस्य घातयन्तीति नः श्रुतम्। इदं कृतं नः प्रत्यक्षं गन्धर्वैरतिमानुषम् ।। | 3-243-19a 3-243-19b |
दिष्ट्या लोके पुमानस्ति कश्चिदस्मन्प्रिये स्थितः। येनास्माकं हृतो भार आसीनानां सुखावहः ।। | 3-243-20a 3-243-20b |
शीतवातातपसहांस्तपसा चैव कर्शितान्। समस्थो विषमस्थान्हि द्रष्टुमिच्छति दुर्मतिः ।। | 3-243-21a 3-243-21b |
अधर्मचारिणस्तस्य कौरव्यस्य दुरात्मनः। ये शीलमनुवर्तन्ति ते पश्यन्ति पराभवम् ।। | 3-243-22a 3-243-22b |
अधर्मो हि कृतस्तेन येनैतदुपलक्षितम्। अनृशंसास्तु कौन्तेयास्तत्प्रत्यक्षं ब्रवीमि वः ।। | 3-243-23a 3-243-23b |
एवं ब्रुवाणं कौन्तेयं भीमसेनमपस्वरम्। न कालः परुषस्यायमिति राजाऽभ्यभाषत ।। | 3-243-24a 3-243-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि त्रिचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 243।। |
3-243-6 जीवग्राहं जीवन्तमेव गृहीत्वेति णमुलन्तम्। कषादित्वादग्रहीदित्यनुप्रयोगः ।। 3-243-18 राज्ञो युधिष्ठिरस्य ।। 3-243-19 क्लीबस्य अशक्तत्वात् ।। 3-243-23 येनैतदुपशिक्षितम् इति झ. पाठः ।। 3-243-24 अपस्वरं क्रोधेन विकलवर्णं यथा स्यात्तथा ब्रुवाणम् ।।
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