महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-235
दिखावट
← आरण्यकपर्व-234 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-235 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-236 → |
द्रौपद्या सत्यभामांप्रति पतिवशीकरणोपायोपदेशव्याजेन पतिव्रताधर्मकथनम् ।। 1 ।।
द्रौपद्युवाच। | 3-235-1x |
इमं तु ते मार्गमपेतदोषं वक्ष्यामि चित्तग्रहणाय भर्तुः। अस्मिन्यथावत्सखि वर्तमाना भर्तारमाच्छेत्स्यसि कामिनीभ्यः ।। | 3-235-1a 3-235-1b 3-235-1c 3-235-1d |
नैतादृशं दैवतमस्ति किंचि- त्सर्वेषुलोकेषु सदेवकेषु। यथा पतिस्तस्य तु सर्वकामा लभ्याः प्रसादे कुपितश् हन्यात् ।। | 3-235-2a 3-235-2b 3-235-2c 3-235-2d |
तस्मादपत्यं विविधाश् भोगाः शय्यासनान्यद्भुतदर्शनानि। वस्त्राणि माल्यानि तथैव गन्धाः स्वर्गश्चलोको विपुला च कीर्तिः ।। | 3-235-3a 3-235-3b 3-235-3c 3-235-3d |
सुखं सुखनेह न जातु लभ्यं दुःखेन साध्वी लभते सुखानि। सा कृष्णमाराधय सौहृदेन प्रेम्णा च नित्यं प्रतिकर्मणा च ।। | 3-235-4a 3-235-4b 3-235-4c 3-235-4d |
स्नानासनैश्चारुभिरग्रमाल्यै- र्दाक्षिण्ययोगैर्विविधैश्च गन्धैः। अस्याः प्रियोस्मीति यथा विदित्वा त्वामेव संश्लिष्यति सर्वभावैः ।। | 3-235-5a 3-235-5b 3-235-5c 3-235-5d |
श्रुत्वा स्वरं द्वारगतस् भर्तुः प्रत्युत्थिता तिष्ठ गृहस्य मध्ये। दृष्ट्वा प्रविष्टं त्वरिताऽसनेन पाद्येन चैनं प्रतिपूजयस्व ।। | 3-235-6a 3-235-6b 3-235-6c 3-235-6d |
संप्रेषितायामथ चैव दास्या- मुत्थाय सर्वं स्वयमेव कार्यम्। जानातु कृष्णस्तव भावमेतं सर्वात्मना मां भजतीति सत्ये ।। | 3-235-7a 3-235-7b 3-235-7c 3-235-7d |
त्वत्संनिधौ यत्कथयेत्पतिस्ते यद्यप्यगुह्यं परिरक्षितव्यम्। काचित्सपत्नी तव वासुदेवं प्रत्यादिशेत्तेन भवेद्विरागः ।। | 3-235-8a 3-235-8b 3-235-8c 3-235-8d |
प्रियांश्च रम्यांश्च हितांश् भर्तु- स्तान्भोजयेथा रविविधैरुपायैः। द्वेष्यैरुपेक्ष्यैरहितैश् तस्य भिद्स्वनित्यं कुहकोद्धतैश्च ।। | 3-235-9a 3-235-9b 3-235-9c 3-235-9d |
मदं प्रमादं पुरुषेषु हित्वा संयच्छ मानं प्रतिगृह् वाचम्। प्रद्युम्नसाम्बावपि ते कुमारौ नोपासितव्यौ रहिते कदाचित् ।। | 3-235-10a 3-235-10b 3-235-10c 3-235-10d |
महाकुलीनाभिरपापिकाभिः स्त्रीभिः सतीभिस्तव सख्यमस्तु। चण्डाश् शौण्डाश्च महाशनाश्च चोराश्च दुष्टाश्चपलाश्च वर्ज्याः ।। | 3-235-11a 3-235-11b 3-235-11c 3-235-11d |
एतद्यशस्यं भगवेतनं च स्वार्थं तदा शत्रुनिबर्हणं च। महार्हमाल्याभरणाङ्गरागा भर्तारमाराधय पुण्यगन्धैः ।। | 3-235-12a 3-235-12b 3-235-12c 3-235-12d |
।। इति श्रीमनमहाभारते अरण्यपर्वणि द्रौपदीसत्यभामासंवादपर्वणि पञ्चत्रिंशततमोऽध्यायः ।। 235 ।। |
3-235-1 आच्छेत्स्यसि बलाद्धरिष्यसि। कामिनीभ्यः सपत्नीभ्यः। भर्तारमाकर्षसीति थ. पाठः ।। 3-235-4 प्रतिकर्मणा कायक्लेशेन ।। 3-235-5 संश्लिष्यति तद्विधत्स्वेति झ. पाठः ।। 3-235-8 न भवेद्विकार इतिट. पाठः ।। 3-235-10 तप्रमादं पुरुषेषु कृत्वेति ध.पाठः। नैवं प्रमाणं कुहकेषु कुर्या इति थ.पाठः। रहिते विजने ।। 3-235-11 चण्डाः क्रूराः। शौण्डाः पराभिभवसमर्थाः। महाशनाः बहुभुजः। दुष्टाः द्वेषाद्याक्रान्ताः। स्त्रियो वर्ज्या इति शेषः ।। 3-235-12 भगदैवतमिति झ. पाठः। भगदैवतं भाग्यकरम् ।।
आरण्यकपर्व-234 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-236 |