महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-142
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भीमेन दुर्गमे गमनाक्षमतया युधिष्ठिरनिवारितानां द्रौपद्यादीनां वहनाङ्गीकारः ।। 1 ।। पथि कुलिन्दाधिपतिना सुबाहुना पूजितैर्युधिष्ठिरादिभिस्तस्यिन्भृत्यवर्गस्थापनपूर्वकमर्जुनदिदृक्षया गन्धमादनंप्रति प्रस्थानम् ।। 2 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-142-1x |
अन्तर्हितानि भूतानि रक्षांसि बलवन्ति च। अग्निना तपसा चैव शक्यं गन्तुं वृकोदर ।। | 3-142-1a 3-142-1b |
सन्निवर्तय कौन्तेय क्षुत्पिपासे बलाश्रयात्। ततो बलं च दाक्ष्यं च संश्रयस्व वृकोदर ।। | 3-142-2a 3-142-2b |
ऋषेस्त्वया श्रुतं वाक्यं कैलासं पर्वतं प्रति। बुद्ध्या प्रपश्य कौन्तेय कथं कृष्णा गमिष्यति ।। | 3-142-3a 3-142-3b |
अथवा सहदेवेन धौम्येन च समं विभो। सूतैः पौरोगवैश्चैव सर्वैश्च परिचारकैः ।। | 3-142-4a 3-142-4b |
रथैरश्वैश्च ये चान्ये विप्राः क्लेशासहाः पथि। सर्वैस्त्वं सहितो भीम निवर्तस्वायतेक्षण ।। | 3-142-5a 3-142-5b |
त्रयो वयं गमिष्यामो लध्वाहारा यतव्रताः। अहं च नकुलश्चैव लोमशश्च महातपाः ।। | 3-142-6a 3-142-6b |
ममागमनमाकाङ्क्षन्ग्गाद्वारे समाहितः। वसेह द्रौपदीं रक्षन्यावदागमनं मम ।। | 3-142-7a 3-142-7b |
भीम उवाच। | 3-142-8x |
राजपुत्री श्रमेणार्ता दुःखार्ता चैव भारत। व्रजत्येव हि कल्याणी श्वेतवाहदिदृक्षया ।। | 3-142-8a 3-142-8b |
तवचाप्यरतिस्तीव्रा वर्तते तमपश्यतः। गुडाकेशं महात्मानं संग्रामेष्वपलायिनम्। किं पुनः सहदेवं च मां च कृष्णां च भारत ।। | 3-142-9a 3-142-9b 3-142-9c |
द्विजाः कामं निवर्तन्तां सर्वे च परिचारकाः। सूताः पौरोगवाश्चैव यं च मन्येत नो भवान् ।। | 3-142-10a 3-142-10b |
न ह्यहं हातुमिच्छामि भवन्तमिह कर्हिचित्। शैलेऽस्मिन्राक्षसाकीर्णे दुर्गेषु विपमेषु च ।। | 3-142-11a 3-142-11b |
इयं चापि महाभागा राजपुत्री पतिव्रता। त्वामृते पुरुषव्याघ्र नोत्सहेद्विनिवर्तितुम् ।। | 3-142-12a 3-142-12b |
तथैवसहदेवोऽयं सततं त्वामनुव्रतः। न जातु विनिवर्तेत मतज्ञो ह्यहमस्य वै ।। | 3-142-13a 3-142-13b |
अपिचात्र महाराज सव्यसाचिदिदृक्षया। सर्वे लालसभूताः स्म तस्माद्यास्यामहे सह ।। | 3-142-14a 3-142-14b |
यद्यशक्यो रथैर्गन्तुं शैलोऽयं बहुकन्दरः। पद्भिरेव गमिष्यामो मा राजन्विमना भव ।। | 3-142-15a 3-142-15b |
अहं वहिष्ये पाञ्चालीं यत्रयत्र न शक्ष्यति। इति मे वर्तते बुद्धिर्मा राजन्विमना भव ।। | 3-142-16a 3-142-16b |
सुकुमारौ तथा वीरौ माद्रीनन्दिकरावुभौ। दुर्गे संतारयिष्यामि यत्राशक्तौ भविष्यतः ।। | 3-142-17a 3-142-17b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-142-18x |
एवं ते भाषमाणस्य बलं भीमाभिवर्धताम्। यत्त्वमुत्सहसे वोढुं पाञ्चालीं विपुलेऽध्वनि ।। | 3-142-18a 3-142-18b |
यमजौ चापि भद्रं ते नैतदन्यत्र विद्यते। बलं तव यशश्चैवधर्मः कीर्तिश्च वर्धताम् ।। | 3-142-19a 3-142-19b |
यत्त्वमुत्सहसे नेतुं भ्रातरौ सह कृष्णया। मा ते ग्लानिर्महाबाहो मा च तेऽस्तु पराभवः ।। | 3-142-20a 3-142-20b |
वैशंपायन उवाच। | 3-142-21x |
ततः कृष्णाऽब्रवीद्वाक्यं प्रहसन्ती मनोरमा। गमिष्यामि न संताप कार्यो मां प्रति भारत ।। | 3-142-21a 3-142-21b |
लोमश उवाच। | 3-142-22x |
तपसा शक्यते गन्तुं पर्वतो गन्धमादनः। तपसा चैव कौन्तेय सर्वे योक्ष्यामहे वयम् ।। | 3-142-22a 3-142-22b |
नकुलः सहदेवश्च भीमसेनश् पार्थिव। अहं च त्वं च कौन्तेय द्रक्ष्यामः श्वेतवाहनम् ।। | 3-142-23a 3-142-23b |
वैशंपायन उवाच। | 3-142-24x |
एवं संभाषमाणास्ते सुबाहुविषयं महत्। ददृशुर्मुदिता राजन्प्रभूतगजवाजिमत् ।। | 3-142-24a 3-142-24b |
किराततङ्गणाकीर्णं पुलिन्दशतसंकुलम्। हिमवत्यमरैर्जुष्टं बह्वाश्चर्यसमाकुलम्। सुबाहुश्चापि तान्दृष्ट्वा पूजयाप्रत्यगृह्णत ।। | 3-142-25a 3-142-25b 3-142-25c |
विषयान्ते कुलिन्दानामीश्वरः प्रीतिपूर्वकम्। तत्र ते पूजितास्तेन सर्व एव सुखोपिताः ।। | 3-142-26a 3-142-26b |
प्रतस्थुर्विमले सूर्ये हिमवन्तं गिरिं प्रति। इन्द्रसेनमुखांश्चापि भृत्यान्पौरोगवांस्तथा ।। | 3-142-27a 3-142-27b |
सूदांश्च पारिबर्हांश्च द्रौपद्याः सर्वशो नृप। राज्ञः कुलिन्दाधिपतेः परिदाय महारथाः ।। | 3-142-28a 3-142-28b |
पद्भिरेव महावीर्या ययुः कौरवनन्दनाः। ते शनैः प्राद्रवन्सर्वे कृष्णया सह पाण्डवाः। तस्माद्देशात्सुसंहृष्टा द्रष्टुकामा धनंजयम् ।। | 3-142-29a 3-142-29b 3-142-29c |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि द्विचत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः ।। 142 ।। |
3-142-28 परिदाय रक्षार्थं समर्प्य ।।
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