महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-231
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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स्कन्देन स्वाहादेव्या अभीष्टदानम् ।। 1 ।। ब्राह्मणा स्कन्दंप्रति सोपपत्तिकं तस्य रुद्रपुत्रत्वादिकथनम् ।। 2 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-231-1x |
यदा स्कन्देन मातृणामेवमेतत्प्रियं कृतम्। अथनैमब्रवीत्स्वाहा मम पुत्रस्त्वमौरसः ।। | 3-231-1a 3-231-1b |
इच्छाम्यहं त्वया दत्तां प्रीतिं परमदुर्लभाम्। तामब्रवीत्ततः स्कन्दः प्रीतिमिच्छसि कीदृशीम् ।। | 3-231-2a 3-231-2b |
स्वाहोवाच। | 3-231-3x |
दक्षस्याहं प्रिया कन्या स्वाहा नाम महाभुज। बाल्यात्प्रभृति नित्यं च जातकामा हुताशने ।। | 3-231-3a 3-231-3b |
न स मां कामिनीं पुत्र सम्यग्जनाति पावकः। इच्छामि शाश्वतं वासं वस्तु पुत्र सहाग्निना ।। | 3-231-4a 3-231-4b |
स्कन्द उवाच। | 3-231-5x |
हव्यं कव्यंच यत्किंचिद्द्विजा मन्त्रसुसंस्तुतम्। होष्यन्त्यग्नौ सदा देवि स्वाहेत्युक्त्वासमुद्धृतम् ।। | 3-231-5a 3-231-5b |
अद्यप्रभृति दास्यन्ति सुवृत्ताः सत्पथे स्थिताः। एवमग्निसत्वया सार्धं सदा वत्स्यति शोभने ।। | 3-231-6a 3-231-6b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-231-7x |
एवमुक्ता ततः स्वाहा तुष्टास्कन्देन पूजिता। पावकेन समायुक्ता भर्त्रा स्कन्दमपूजयत्।। | 3-231-7a 3-231-7b |
ततो ब्रह्मा महासेनं प्रजापतिरथाब्रवीत्। अभिगच्छ महादेवं पितरं त्रिपुरार्दनम् ।। | 3-231-8a 3-231-8b |
रुद्रेणाग्निं समाविश्य स्वाहामाविश्य चोमया। हितर्थं सर्वलोकानां जातस्त्वमपराजितः ।। | 3-231-9a 3-231-9b |
उमायोन्यां च रुद्रेण शुक्रं सिक्तं महात्मना। अस्मिन्गिरौ निपतितं मिञ्जिकमिञ्जिकं यतः ।। | 3-231-10a 3-231-10b |
`मिथुनं वै महाभाग तत्र तद्रुद्रसंभवम्'। संभूतं लोहितोदे तु शुक्रशेषमवापतत् ।। | 3-231-11a 3-231-11b |
सूर्यरश्मिषु चाप्यनयदन्यच्चैवापतद्भुवि। आसक्तमन्यद्वृक्षेषु तदेवं प्चधाऽपतत् ।। | 3-231-12a 3-231-12b |
तत्र ते विविधाकारा गणा ज्ञेया मनीषिभिः। तव पारिषदा घोरा य एते पिशिताशिनः ।। | 3-231-13a 3-231-13b |
एवमस्त्विति चाप्युक्त्वा महासेनो महेश्वरम्। अपूजयदमेयात्मा पितरं पितृवत्सलः ।। | 3-231-14a 3-231-14b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-231-15x |
अर्कपुष्पैस्तु ते पञ् गणाः पूज्या धनार्थिभिः। व्यादिप्रशमनार्थं चतेषां पूजां समाचरेत् ।। | 3-231-15a 3-231-15b |
मिञ्जिकामिञ्जिकं चैव मिथुनं रुद्रसंभवम्। नमस्कार्यं सदैवेह बालानां हितमिच्छता ।। | 3-231-16a 3-231-16b |
स्त्रियो मानुषमांसादा वृक्षका नाम नामतः। वृक्षेषु जातास्ता देव्यो नमस्कार्याः प्रजार्थिभिः ।। | 3-231-17a 3-231-17b |
एषामेव पिशाचानामसङ्ख्येयगणाः स्मृताः। घण्टायाः सपताकायाः शृणु मे संभवं नृप ।। | 3-231-18a 3-231-18b |
ऐरावतस्य घण्टे द्वे वैजयन्त्याविति श्रुते। गुहस्य ते स्वयं दत्ते क्रमेणानाय्य धीमता ।। | 3-231-19a 3-231-19b |
एका तत्रविशाखस्य घण्टा स्कन्दस्य चापरा। पताका कार्तिकेयस् विशाखस्य च लोहिता ।। | 3-231-20a 3-231-20b |
यानि क्रीडनकान्यस्य देवैर्दत्तानि वै तदा। तैरेव रमते देवो महासेनो महाबलः ।। | 3-231-21a 3-231-21b |
स संवृतः पिशाचानां गणैर्देवगणैस्तथा। शुशुभे काञ्चने शैले दीप्यमानः श्रिया वृत्तः ।। | 3-231-22a 3-231-22b |
तेन वीरेण शुशुभे स शैलः शुभकाननः। आदित्येनेवांशुमता मन्दरश्चारुकन्दरः ।। | 3-231-23a 3-231-23b |
संतानकवनैः फुल्लैः करवीरवनैरपि। पारिजातवनैश्चैव जपाशोकवनैस्तथा ।। | 3-231-24a 3-231-24b |
कदम्बतरुषण्डैश्च दिव्यैर्मृगगणैरपि। दिव्यैः पक्षिगणैश्चैव शुशुभे श्वेतपर्वतः ।। | 3-231-25a 3-231-25b |
तत्रदेवगणाः सर्वेसर्वे देवर्षयस्तथा। मेघतूर्यरवाश्चैव क्षुब्धोदधिसमस्वनाः ।। | 3-231-26a 3-231-26b |
तत्रदेवाश्च गन्धर्वा नृत्यन्तेऽप्सरसस्तथा। हृष्टानां तत्रभूतानां श्रूयते निनदो महान् ।। | 3-231-27a 3-231-27b |
एवं सेन्द्रं जगत्सर्वं श्वेतपर्वतसंस्थितम्। प्रहृष्टं प्रेक्षते स्कन्दं न च ग्लायति दर्शनात् ।। | 3-231-28a 3-231-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि एकत्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 231 ।। |
3-231-10 मुञ्जिको मुष्टिका ततः इति ट. थ.पाठः ।।
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