महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-049
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भीमयुधिष्ठिरसंवादसमये बृहदश्वागमनम् ।। 1 ।।
युधिष्ठिरंप्रति बृहदश्वेन नलोपाख्यानकथनारम्भः ।। 2 ।।
जनमेजय उवाच। | 3-49-1x |
अस्त्रहेतोर्गते पार्थे शक्रलोकं महात्मनि। युधिष्ठिरप्रभृतयः किमकुर्वत पाण्डवाः ।। | 3-49-1a 3-49-1b |
वैशंपायन उवाच। | 3-49-2x |
अस्त्रहेतोर्गते पार्थे शक्रलोकं महात्मनि। न्यवसन्कृष्णया सार्धं काम्यके भरतर्षभाः ।। | 3-49-2a 3-49-2b |
ततः कदाचिदेकान्ते विविक्ते मृदुशाद्वले। दुःखार्ता भरतश्रेष्ठा निषेदुः सह कृष्णया ।। | 3-49-3a 3-49-3b |
धनंजयं शोचमानाः साश्रुकण्ठाः सुदुःखिताः। तद्वियोगार्दितान्सर्वाञ्शोकः समभिपुप्लुवे ।। | 3-49-4a 3-49-4b |
धनंजयवियोगाच्च राज्यभ्रंशाच्च दुःखिताः। अथ भीमो महाबाहुर्युधिष्ठिरमभाषत ।। | 3-49-5a 3-49-5b |
निदेशात्ते महाराज गतोऽसौ भरतर्षभः। अर्जुनः पाण्डुपुत्राणां यस्मिन्प्राणाः प्रतिष्ठिताः ।। | 3-49-6a 3-49-6b |
यस्मिन्विनष्टे पाञ्चालाः सह पुत्रैस्तथा वयम्। सात्यकिर्वासुदेवश्च विनश्येयुर्न संशयाः ।। | 3-49-7a 3-49-7b |
योसौ गच्छति धर्मात्मा बहून्क्लेशान्विचिन्तयन्। भवन्नियोगाद्बीभत्सुस्ततो दुःखतरं नु किम् ।। | 3-49-8a 3-49-8b |
यस्य बाहू समाश्रित्य वयं सर्वे महात्मनः। मन्यामहे जितानाजौ परान्प्राप्तां च मेदिनीम् ।। | 3-49-9a 3-49-9b |
यस्य प्रभावाद्धि वयं सभामध्ये धनुष्मतः। `जितान्मन्यामहे सर्वान्धार्तराष्ट्रात्ससौबलान् ।। | 3-49-10a 3-49-10b |
यस्य प्रभावान्न मया सभामध्ये महाबलाः'। नीता लोकममुं सर्वे धार्तराष्ट्राः ससौबलाः ।। | 3-49-11a 3-49-11b |
तेवयं बाहुबलिनः क्रोधमुत्थितमात्मनः। सहामहे भवन्मूलं वासुदेवेन पालिताः ।। | 3-49-12a 3-49-12b |
मया हि सह कृष्णेन हत्वा कर्णमुखान्परान्। स्वबाहुविजितां कृत्स्नां प्रशाधीनां वसुंधराम् ।। | 3-49-13a 3-49-13b |
भतो द्यूतदोषेण सर्वेवयमुपप्लुताः। अहीनपौरुषा राजन्बलिभिर्बलवत्तराः ।। | 3-49-14a 3-49-14b |
क्षात्रं धर्मं महाराज त्वमवेक्षितुमर्हसि। ग हिधर्मो महाराज त्रियस्य वनाश्रयः ।। | 3-49-15a 3-49-15b |
राज्यमेव परंधर्मं क्षत्रियस्य विदुर्बुधाः। स क्षत्रधर्मविद्राजन्माधर्म्यान्नीनशः पथः ।। | 3-49-16a 3-49-16b |
प्राग्द्वादश समा राजन्धार्तराष्ट्रान्निहन्महि। निवर्त्य च वनात्पार्थमानाय्य च जनार्दनम् ।। | 3-49-17a 3-49-17b |
व्यूढानीकान्महाराज जवेनैव महाहवे। धार्तराष्ट्रानमुं लोकं गमयाम विशांपते ।। | 3-49-18a 3-49-18b |
सर्वानहं हनिष्यामि धार्तराष्ट्रान्ससौबलान्। दुर्योधनं च कर्णं च यो वाऽन्यः प्रतियोत्स्यते ।। | 3-49-19a 3-49-19b |
मया प्रशमिते पश्चात्त्वमेष्यसि वनं पुनः। एवं कृते न ते दोषो भविष्यति विशांपते ।। | 3-49-20a 3-49-20b |
यज्ञैश्च विविधैस्तात कृतंपापमरिंदम। अवधूय महाराजगच्छेम स्वर्गमुत्तमम् ।। | 3-49-21a 3-49-21b |
एवमेतद्भवेद्राजन्यदि राजा न बालिशः। अस्माकं दीर्घसूत्रः स्याद्भवान्धर्मपरायणः ।। | 3-49-22a 3-49-22b |
निकृत्या निकृतिप्रत्रा हन्तव्या इति निश्चयः। न हि नैकृतिकं हत्वा निकृत्या पापमुच्यते। तथा भारत धर्मेषु धर्मज्ञैरिह दृश्यते ।। | 3-49-23a 3-49-23b 3-49-23c |
अहोरात्रं महाराज तुल्यं संवत्सरेण ह। तथैव वेदवचनं श्रूयते नित्यदा विभो। संवत्सरो महाराज पूर्णो भवति कृच्छ्रतः ।। | 3-49-24a 3-49-24b 3-49-24c |
यदि वेदाः प्रमाणं ते दिवसादूर्ध्वमच्युत। तयोदशादितः कालो ज्ञायतां परिनिष्ठितः ।। | 3-49-25a 3-49-25b |
कालो दुर्योधनं हन्तुं सानुबन्धमरिंदम। एकाग्रां पृथिवीं सर्वां पुरा राजन्करोति सः ।। | 3-49-26a 3-49-26b |
द्यूतप्रियेण राजेन्द्र तथा तद्भवता कृतम्। प्रायेणाज्ञातच्रयायां वयं सर्वेनिपातिताः ।। | 3-49-27a 3-49-27b |
न तं देशं प्रपश्यामि यत्र सोऽस्मान्सुदुर्जनः। न विज्ञास्यति दुष्टात्मा चारैरिति सुयोधनः ।। | 3-49-28a 3-49-28b |
अधिगम्य च सर्वान्नो वनवासमिमं ततः। प्रव्राजयिष्यतिपुनर्निकृत्याऽधमपूरुषः। यद्यस्मानभिगच्छेत पापः स हि कथंचन ।। | 3-49-29a 3-49-29b 3-49-29c |
अज्ञातचर्यामुत्तीर्णान्दृष्ट्वा च पुनराह्वयेत्। द्यूतेन ते महाराज पुनर्युद्धं प्रवर्तते ।। | 3-49-30a 3-49-30b |
भवांश्च पुनराहूतो द्यूतेनैवापनेष्यति। स तथाऽक्षेषु कुशलो निश्चितो गतचेतनः ।। | 3-49-31a 3-49-31b |
चरिष्यसि महाराज वनेषु वसतीः पुनः ।। | 3-49-32a |
यद्यस्मान्सुमहाराज कृपणान्कर्तुमर्हसि। यावज्जीवमवेक्षस्व वेदधर्मांश्च कृत्स्नशः। निकृत्या निकृतिप्रज्ञो हन्तव्य इति निश्चयः ।। | 3-49-33a 3-49-33b 3-49-33c |
अनुज्ञातस्त्वया गत्वायावच्छक्ति सुयोधनम्। यथैव कक्षमुत्सृष्टो दहेदनिलसारथिः। हनिष्यामि तथा मन्दमनुजानातु मे भवान् ।। | 3-49-34a 3-49-34b 3-49-34c |
वैशंपायन उवाच। | 3-49-35x |
एवं ब्रुवाणं भीमं तु धर्मराजो युधिष्ठिरः। उवाच सान्त्वयन्राजा मूर्न्ध्युपाघ्राय पाण्डवम् ।। | 3-49-35a 3-49-35b |
असशयं महाबाहो हनिष्यसि सुयोधनम्। वर्षात्रयोदशादूर्ध्वं सह गाण्डीवधन्वना ।। | 3-49-36a 3-49-36b |
यत्त्वमाभाषसे पार्थ प्राप्तः काल इति प्रभो। अनृतं नत्सहे वक्तुं न ह्येतन्मयि विद्यते ।। | 3-49-37a 3-49-37b |
अन्तरेणापि कौन्तेय निकृतिंपापनिश्चयम्। हन्ता त्वमसि दुर्धर्ष सानुबन्धं सुयोधनम् ।। | 3-49-38a 3-49-38b |
एवं ब्रुवति भीमं तु धर्मराजे युधिष्ठिरे। आजगाम महाभागो बृहदश्वो महानृषिः ।। | 3-49-39a 3-49-39b |
तमभिप्रेक्ष्यधर्मात्मा संप्राप्तं धर्मचारिणम्। शास्त्रवन्मधुपर्केण पूजयामास धर्मराट् ।। | 3-49-40a 3-49-40b |
आश्वस्तं चैनमासीनमुपासनो युधिष्ठिरः। अभिप्रेक्ष्य महाबाहुः कृपणं बह्वभाषत ।। | 3-49-41a 3-49-41b |
अक्षद्यूते च भगवन्धनं राज्यं च मे हृतम्। आहूय निकृतिप्रज्ञैः कितवैरक्षकोविदैः ।। | 3-49-42a 3-49-42b |
अनक्षज्ञस्य हि सतो निकृत्या पापनिश्चयैः। भार्या च मे सभां नीता प्राणेभ्योपि गरीयसी ।। | 3-49-43a 3-49-43b |
पुनर्द्यूतेन मां जित्वा वनवासां सुदारुणम्। प्राव्राजयन्मंहारण्यमजिनैः परिवारितम् ।। | 3-49-44a 3-49-44b |
अहं वने दुर्वसतीर्वसन्परमदुःखितः। अक्षद्यूताभिषङ्गेण गिरः शृण्वन्सुदारुणाः ।। | 3-49-45a 3-49-45b |
आर्तानां सुहृदां वाचो द्यूतप्रभृति शंसताम्। अहं हृदि श्रिताः स्मृत्वा सर्वरात्रीर्विचिन्तयन् ।। | 3-49-46a 3-49-46b |
यस्मिंश्च वयमायत्ताः सदा गाण्डीवधन्वनि। `स चेन्द्रलोकं गतवानस्त्रहेतोर्महाबलः ।।' | 3-49-47a 3-49-47b |
विना महात्मना तेन गतसत्व इवास्महे। कदा द्रक्ष्यामि बीभत्सुं कृतास्त्रं पुनरागतम् ।। | 3-49-48a 3-49-48b |
`इति सर्वे महेष्वासं चिन्तयाना धनंजयम्। अनेन तु विषण्णोऽहं कारणेन सहानुजः ।। | 3-49-49a 3-49-49b |
वनवासान्निवृत्तं मां पुनस्ते पापबुद्धयः। जानन्तः प्रीयमाणा वै देवने भ्रातृभिः सह। द्यूतेनैवाह्वयिष्यन्ति बलादक्षेषु तद्विदः ।। | 3-49-50a 3-49-50b 3-49-50c |
आहूतश्च पुनर्द्यूते नास्मि शक्तो निवर्तितुम्। पणे च मम नात्यर्थं वसु किंचन विद्यते ।। | 3-49-51a 3-49-51b |
एतत्सर्वमनुध्यायंश्चिन्तयानो दिवानिशम्। न मत्तो दुःखिततरः पुमानस्तीह कश्चन' ।। | 3-49-52a 3-49-52b |
नास्ति राजा मया कश्चिदल्पभाग्यतरो भुवि। भवता दृष्टपूर्वो वा श्रुतपूर्वोपि वा क्वचित्। न मत्तो दुःखिततरः पुमानस्तीति मे मतिः ।। | 3-49-53a 3-49-53b 3-49-53c |
`एवं ब्रुवन्तं दुःखार्तमुवाच भगवानृषिः। शोकं व्यपनुदन्राज्ञो धर्मराजस्य धीमतः ।। | 3-49-54a 3-49-54b |
बृहदश्व उवाच। | 3-49-55x |
न विषादे मनः त्वया बुद्धिमतांवर। आगमिष्यति बीभत्सुरमित्रांश्च विजेष्यते' ।। | 3-49-55a 3-49-55b |
यद्ब्रवीषि महाराज न मत्तो विद्ते क्वचित्। अल्पभाग्यतरः कश्चित्पुमानस्तीति पाण्डव ।। | 3-49-56a 3-49-56b |
अत्र ते वर्णयिष्यामि यदि शुश्रूषसेऽनघ। यस्त्वत्तो दुःखिततरो राजाऽऽसीत्पृथिवीपते ।। | 3-49-57a 3-49-57b |
वैशंपायन उवाच। | 3-49-58x |
अथैनमब्रवीद्राजा ब्रवीतु भगवानिति। इमामवस्थां संप्राप्तं श्रोतुमिच्छामि पार्थिवम् ।। | 3-49-58a 3-49-58b |
बृहदश्व उवाच। | 3-49-59x |
शृणु राजन्नवहितः सह भ्रातृभिरच्युत। यस्त्वत्तो दुःखिततरो राजाऽऽसीत्पृथिवोपते ।। | 3-49-59a 3-49-59b |
निषधेषु महीपालो वीरसेन इति श्रुतः। तस्य पुत्रोऽभवन्नाम्ना नलो धर्मार्तकोविदः ।। | 3-49-60a 3-49-60b |
स निकृत्याजतो राजा पुष्करेणेति नः श्रुतम्। वनवासं सुदुःखार्तो भार्यया न्यवसत्सह ।। | 3-49-61a 3-49-61b |
न तस्य दासा न रथो न भ्राता न च भान्धवाः। वने निवसतो राजन्नश्रूयन्त कदाचन ।। | 3-49-62a 3-49-62b |
भवान्हि संवृतो वीरैर्भ्रातृभिर्देवसंमितैः। ब्रह्मकल्पैर्द्विजाग्र्यैश्च तस्मान्नार्हसि शोचितुम् ।। | 3-49-63a 3-49-63b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-49-64x |
विस्तरेणाहमिच्छामि नलस्य सुमहात्मनः। चरितं वदतांश्रेष्ठ तन्ममाख्यातुमर्हसि ।। | 3-49-64a 3-49-64b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि एकोनपञ्चाशोऽध्यायः ।। 49 ।। |
3-49-4 पुप्लुवे प्लावितवान् ।। 3-49-6 निदेशात् आज्ञातः ।। 3-49-11 अगं लकं परलोकम् ।। 3-49-14 बलिभिः सामन्तदत्तैर्धर्नर्बलवत्तरा ।। 3-49-22 बालिशः बालवद्वृथाहठी। दीर्घसूत्रः चिरकारी ।। 3-49-26 पुरा अग्रे ।। 3-49-30 द्यूतेन द्यूतार्थम् ।। 3-49-31 अपनेष्यति दूरीकरिष्ति। थियमिति शेषः ।। 3-49-34 कक्षं तृणम् ।। 3-49-50 जयन्तः प्रीयमाणा वै इति क. पाठः ।। 3-49-61 पुष्करेण राज्ञा ।।
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