महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-222
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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मारक्ण्डेयेन युधिष्ठिरंप्रत्यग्न्युत्पत्तिकथनम् ।। 1 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-222-1x |
काश्यपो ह्यथ वासिष्ठः प्राणश्च प्राणपुत्रकः। अग्निराङ्गिरसश्चैव च्यवनस्तीव्रवर्चकः ।। | 3-222-1a 3-222-1b |
अचरत्स तपस्तीव्रं पुत्रार्थे बहुवार्षिकम्। पुत्रं लभेयं धर्मिष्ठं यशसा ब्रह्मणा समम् ।। | 3-222-2a 3-222-2b |
महाव्याहृतिभिर्ध्यातः पञ्चभिस्तैस्तदा त्वथ। जज्ञे तेजोमयार्चिष्मान्पञ्चवर्णः प्राकरः ।। | 3-222-3a 3-222-3b |
समिद्धोऽग्निः शिरस्तस्य बाहू सूर्यनिभौ तथा। त्वङ्नेत्रे च सुवर्णाभे कृष्णे जङ्घे च भारत ।। | 3-222-4a 3-222-4b |
पञ्चवर्षः स तपसा कृतस्तैः पञ्चभिर्जनैः। पाञ्चजन्यः श्रुतो देवः पञ्चवंशकरस्तु सः ।। | 3-222-5a 3-222-5b |
दशवर्षसहस्राणि तपस्तप्त्वा महातपाः। जनयत्पावकं घोरं पितॄणां स प्रजाः सृजन् ।। | 3-222-6a 3-222-6b |
बृहद्रथंतरौ मूर्ध्ना वक्राच्च तपसा हरिम्। शिवं नाभ्यां बलादिन्द्रं प्राणाद्वायुं च भारत ।। | 3-222-7a 3-222-7b |
बाहुभ्यामनुदात्तौ च विश्वे भूतानि चैव ह। एतान्सृष्ट्वा ततः पञ्च पितॄणामसृजत्सुतान् ।। | 3-222-8a 3-222-8b |
बृहद्रथस्य प्रणिधिः काश्यपश्य महत्तरः। भानुरङ्गिरसो धीरः पुत्रो वर्चस्य सौरभः ।। | 3-222-9a 3-222-9b |
प्राणस्य चानुदात्तस्तु व्याख्याताः पञ्च वंशजाः। देवान्यज्ञमुषश्चान्यान्सृजन्पञ्चदशोत्तरान् ।। | 3-222-10a 3-222-10b |
सुभीममतिभीमं च भीमं भीमबलाबलम्। एतान्यज्ञमुषः पञ्च देवानप्यसृजत्ततः ।। | 3-222-11a 3-222-11b |
सुमित्रं मित्रवन्तं च मित्रज्ञं मित्रवर्धनम्। मित्रधर्माणमित्येतान्देवानभ्यसृजत्ततः ।। | 3-222-12a 3-222-12b |
सुरप्रवीरं वीरं च सुरेशं च सुवर्चसम्। सुराणामपि भर्तारं पञ्चैतानसृजत्ततः ।। | 3-222-13a 3-222-13b |
त्रिविधं संस्थिता ह्येते पञ्चपञ्च पृथक्पृथक्। मुष्णन्त्यत्र स्थिता ह्येते स्वर्गतान्यज्ञयाजिनः ।। | 3-222-14a 3-222-14b |
तेषामिष्टं हरन्त्येते निघ्नन्ति च महद्धविः। स्पर्धयाहव्यवाहानां निघ्नन्त्येते हरन्ति च ।। | 3-222-15a 3-222-15b |
बहिर्वेद्यां तदादानं कुशलैः संप्रवर्तितम्। तत्रैते नोपसर्पन्ति यत्र चाग्निः स्थितो भवेत् ।। | 3-222-16a 3-222-16b |
चितोऽग्निरुद्वहन्यज्ञं पक्षाभ्यां तान्प्रबाधते। मन्त्रै प्रशमिताह्येते नेष्टं मुष्णन्ति यज्ञियम् ।। | 3-222-17a 3-222-17b |
तपस्ये बृदुक्थस्य पुत्रो भूमिमुपाश्रितः। अग्निहोत्रे हूयमाने पृथिव्यां सद्भिरीड्यते ।। | 3-222-18a 3-222-18b |
रथन्तरश्चतपसः पुत्रोऽग्निः परिपठ्यते। मित्रविन्दा तथा भार्या हविरध्वर्यवो विदुः ।। | 3-222-19a 3-222-19b |
`एतैः सह महाभाग तपस्तेजस्विभिर्नृप'। मुमुदे परमप्रीतः सह पुत्रैर्भहायशाः ।। | 3-222-20a 3-222-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि द्वाविंशत्यधिरकद्विरतितमोऽध्यायः ।। 222 ।। |
[सम्पाद्यताम्]
3-222-2 काश्यप इति त्रयाणां संबन्धः। अत्रपाठकमादर्थक्रमस्य बलीयस्त्वात् आद्ययोः श्लोकयोर्व्यत्यासेनार्थो ग्राह्यः। अचरदिति ।।
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