महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-275
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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मार्कण्डेयेन युधिष्ठिरंप्रति रामोपाख्यानकथनारम्भः ।। 1 ।। तत्ररामाद्युत्पत्तिकथनपूर्वकं रावणोत्पत्त्युपोद्धाततया कुबेरोत्पत्तिकथनम् ।। 2 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-275-1x |
प्राप्तमप्रतिमं दुःखं रामेण भरतर्षभ। रक्षसा जानकी तस्य हृता भार्या बलीयसा ।। | 3-275-1a 3-275-1b |
आश्रमाद्राक्षसेन्द्रेण रावणेन दुरात्मना। मायामास्थाय तरसा हत्वा गृध्रं जटायुषम् ।। | 3-275-2a 3-275-2b |
प्रत्याजहार तां रामः सुग्रीवबलमाश्रितः। बद्ध्वा सेतुं समुद्रस्य दग्ध्वा लङ्कां शितैः शरैः ।। | 3-275-3a 3-275-3b |
युधिष्ठिर उवाच। | 3-275-4x |
कस्मिन्नामः कुले जातः किंवीर्यः किंपराक्रमः। रावणः कस्य पुत्रो वा किं वैरं तस् तेन ह ।। | 3-275-4a 3-275-4b |
एतन्मे भगवन्सर्वं सम्यगाख्यातुमर्हसि। `त्वया प्रत्यक्षोदृष्टं यथासर्वमशेषतः।' श्रोतुमिच्छामि चरितं रामस्याक्लिष्टकर्मणः ।। | 3-275-5a 3-275-5b 3-275-5c |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-275-6x |
अजोनामाभवद्राजा महानिक्ष्वाकुवंशजः। तस् पुत्रो दशरथःशश्वत्स्वाध्यायवाञ्छुचिः ।। | 3-275-6a 3-275-6b |
अभवंस्तस्य चत्वारः पुत्रा धर्मार्थकोविदाः। रामलक्ष्मणशत्रुघ्ना भरतश्च महाबलः ।। | 3-275-7a 3-275-7b |
रामस्य माता कौसल्या कैकेयी भरतस्य तु। सुतौ लक्ष्मणशत्रुघ्नौ सुमित्रायाः परंतपौ ।। | 3-275-8a 3-275-8b |
विदेहराजो जनकः सीता तस्यात्मजा विमो। यां चकार स्वयं त्वष्टा रामस्य महिषीं प्रियाम् ।। | 3-275-9a 3-275-9b |
एतद्रामस्य ते जन्म सीतायाश्च प्रकीर्तितम्। रावणस्यापि ते जन्म व्याख्यास्यामि रजनेश्वर ।। | 3-275-10a 3-275-10b |
पितामहो रावणस्य साक्षाद्देवः प्रजापतिः। स्वयंभूः सर्वलोकानां प्रभुः स्रष्टा महातपाः ।। | 3-275-11a 3-275-11b |
पुलस्त्यो नाम तस्यासीन्मानसो दयितः सुतः। तस्य वैश्रवणो नाम गवि पुत्रोऽभवत्प्रभुः ।। | 3-275-12a 3-275-12b |
पितरं स समुत्सृज्य पितामहमुपस्थितः। तस्य कोपात्पिता राजन्ससर्जात्मानमात्मना ।। | 3-275-13a 3-275-13b |
स जज्ञे विश्रवा नाम तस्यात्मार्धेन वै द्विजः। प्रतीकाराय सक्रोधस्ततो वैश्रवणस्य वै ।। | 3-275-14a 3-275-14b |
पितामहस्तुप्रीतात्मा ददौ वैश्रवणस् ह। अमरत्वं धनेशत्वं लोकपालत्वमेव च ।। | 3-275-15a 3-275-15b |
ईशानन तथा सख्यं पुत्रं च नलकूवरम्। राजधानीनिवेसं च लङ्कांरक्षोगणान्विताम् ।। | 3-275-16a 3-275-16b |
विमानं पुष्पकं नाम कामगं च ददौ प्रभुः। यक्षाणामाधिपत्यंच राजराजत्वमेव च ।। | 3-275-17a 3-275-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि पञ्चसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 275 ।। |
3-275-2 रावणेन विहायसा इति थ. ध.पाठः ।। 3-275-9 त्वष्टा योराममहिषीं इति थ. ध. पाठः। त्वष्टा प्रजापतिः स्वयमेव संकल्पेन चकार नतु मैथुनद्वारा। अयोनिजामित्यर्थः ।। 3-275-12 गवि गोसंज्ञायां भार्यायाम् ।। 3-275-13 तस्य वैश्रवणस्य कोपात् मां त्यक्त्वा मत्पितरं सेवत इत्यतिज्वलनात्। वैश्रवणं वाधितुं पुलस्त्यएव योगबलेन विश्रवःसंज्ञं देहान्तरं चके इत्यर्थः ।।
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