महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-059
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नलेन स्वपन्त्या दमयन्त्या वस्त्रार्धच्छेदनपूर्वकं परित्यागेनापयानम् ।। 1 ।।
बृहदश्व उवाच। | 3-59-1x |
`इत्युक्तः स तदा देव्या नलो वचनमब्रवीत्।' यथा राज्यंतव पितुस्तथा मम नसंशयः। न तु तत्र गमिष्यामि विषमस्थः कथंचन ।। | 3-59-1a 3-59-1b 3-59-1c |
कथं समृद्धो गत्वाऽहं तव हर्षविवर्धनः। परिद्यूनो गमिष्यामि तव शोकविवर्धनः ।। | 3-59-2a 3-59-2b |
इति ब्रुवन्नलो राजा दमयन्तीं पुनः पुनः। सान्खयामास कल्याणीं वाससोर्धेन संवृताम् ।। | 3-59-3a 3-59-3b |
तावेकवस्त्रसंवीतावटमानावितस्ततः। क्षुत्पिपासापरिश्रान्तौ सभां कांचिदुपेयतुः ।। | 3-59-4a 3-59-4b |
तां सभामुपसंप्राप्य तदा स निषधाधिपः। वैदर्भ्या सहितो राजा निषसाद महीतले ।। | 3-59-5a 3-59-5b |
स वै विवस्त्रो मलिनो विवर्णः पांसुगुण्ठितः। दमयन्त्या सह श्रान्तः सुष्वाप धरणीतले ।। | 3-59-6a 3-59-6b |
`ततः स्ववसनस्यान्तं दमयन्ती विशांपते। भूमावास्तीर्य सुष्वाप पतिमालिङ्ग्य शोभना ।।' | 3-59-7a 3-59-7b |
दमयनत्यपि कल्याणी निद्रयाऽपहृता ततः। सहसा दुःखमासाद्य सुकुमारी तपस्विनी ।। | 3-59-8a 3-59-8b |
सुप्तायां दमयन्त्यां तु नलो राजा विशांपते। शोकोन्मथितचित्तः सन्न स्म शेते यथा पुरा ।। | 3-59-9a 3-59-9b |
स तद्राज्यापहरणं सुहृत्त्यागं च सर्वशः। वने च तं परिध्वंसं प्रेक्ष्य चिन्तामुपेयिवान् ।। | 3-59-10a 3-59-10b |
किं नु मे स्यादिदं कृत्वा किंनु मे स्यादकुर्वतः। किंनु मे मरणं श्रेयः परित्यागो जनस्य वा ।। | 3-59-11a 3-59-11b |
मामियं ह्यनुरक्तैवं दुःखमाप्नोति मत्कृते। मद्विहीना त्वियं गच्छेत्कदाचित्स्वजनं प्रति ।। | 3-59-12a 3-59-12b |
मया निःसंशयं दुखमियं प्राप्स्यत्यनुव्रता। उत्सर्गेसंशयः स्यात्तु विन्देतापि सुखं क्वचित् ।। | 3-59-13a 3-59-13b |
बृहदश्च उवाच। | 3-59-14x |
स विनिश्चित्य बहुधा विचार्य च पुनःपुनः। उत्सर्गेऽमन्यत श्रेयो दमयन्त्या नराधिप ।। | 3-59-14a 3-59-14b |
न चैषा तेजसा शक्या कैश्चिद्धर्षयितुं पथि। यशस्विनी महाभागा मद्भक्तेयं पतिव्रता ।। | 3-59-15a 3-59-15b |
एवं तस् तदा बुद्धिर्दमयन्त्यां न्यवर्तत। कलिना दुष्टभावेन दमयन्त्या विसर्जने ।। | 3-59-16a 3-59-16b |
सोऽवस्त्रतामात्मनश्च तस्याश्चाप्येकवस्त्रताम्। चिन्तयित्वाऽध्यगाद्राजा वस्त्रार्धस्यावकर्तनम् ।। | 3-59-17a 3-59-17b |
कथं वासो विकर्तेयं न च बुद्ध्येत मे प्रिया। विचिन्त्यैवं नलो राजा सभां पर्यचरत्तदा ।। | 3-59-18a 3-59-18b |
परिधावन्नथ नल इतश्चेतश्च भारत। आससाद सभोद्देशे विकोशं स्वङ्गमुत्तमम् ।। | 3-59-19a 3-59-19b |
तेनार्धं वाससश्छित्त्वा निवस् च परंतपः। सुप्तामुत्सृज्य वैदर्भीं प्राद्रवद्गतचेतनाम् ।। | 3-59-20a 3-59-20b |
ततो निबद्धहृदयः पुनरागम् तां सभाम्। दमयन्तीं तदा दृष्ट्वा रुरोद निषधाधिपः ।। | 3-59-21a 3-59-21b |
यां न वायुर्न चादित्यः पुरा पश्यति मे प्रियाम्। सेयमद्य सभामध्ये शेते भूमावनाथवत् ।। | 3-59-22a 3-59-22b |
इयं वस्त्रावकर्तेन संवीता चारुहासिनी। उन्मत्तेव मया हीना कथं बुद्ध्वा भविष्यति ।। | 3-59-23a 3-59-23b |
कथमेका सती भमी मया विरहिता शुभा। चरिष्यति वने घोरे मृगव्यालनिषेविते ।। | 3-59-24a 3-59-24b |
आदित्या वसवो रुद्रा अश्विनौ समरुद्गणौ। रक्षन्तु त्वां महाभागे धर्मेणासि समावृता ।। | 3-59-25a 3-59-25b |
एवमुक्त्वा प्रियां भार्यां रूपेणाप्रतिमां भुषि। कलिनाऽपहृतज्ञानो नलः प्रातिपष्ठदुद्यतः ।। | 3-59-26a 3-59-26b |
गत्वागत्वा नलो राजा पुनरेति सभां मुहुः। आकृष्यमाणः कलिना सौहृदेनावकृष्यते ।। | 3-59-27a 3-59-27b |
द्विधेव हृदयं तस्य दुःखितस्याभवत्तदा। दोलेव मुहुरायाति याति चैव मुहुर्मुहुः ।। | 3-59-28a 3-59-28b |
अवकृष्टस्तु कलिना मोहितः प्राद्रवन्नलः। सुप्तामुत्सृज्य तां भार्यां विलप्य करुणं बहु ।। | 3-59-29a 3-59-29b |
नष्टात्मा कलिनाऽऽविष्टस्तत्तद्विगणयन्मुहुः। जगामैकां वने शून्ये भार्यामुत्सृज्य मोहितः ।। | 3-59-30a 3-59-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि एकोनषष्टितमोऽध्यायः ।। 59 ।। |
3-59-10 परिध्वंसं कलिना वस्त्रापहरणादिक्लेशम् ।। 3-59-11 जनस्य भार्यायाः ।। 3-59-16 दमयन्त्यां विषये न्यवर्तत निवृत्तासती विसर्जनेऽभूदिति शेषः ।। 3-59-20 निवस्य परिधाय ।।
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