महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-207
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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मधुकैटभपुत्रेण धुन्धुना तपस्तोषिताद्विरिञ्चादवध्यत्वादिवरग्रहणेन देवानां पीडनम् ।। 1 ।। उदङ्कचोदितेन कुवलाश्वेन समुद्रमध्यमधिवसतस्तस्य ब्रह्मास्त्रेण दहनम् ।। 2 ।। तदा देवादिभिः कुवलाश्वस्य धुन्धुमार इति नामकरणेन तस्मै वरदानपूर्वकं स्वस्वस्थानंप्रति गमनम् ।। 3 ।। मार्कण्डेयेन युधिष्ठिरंप्रति तत्पुत्राणां नामकथनपूर्वकं धुन्धुमारोपाख्यानस्तवनम् ।। 4 ।।
मर्कण्डेय उवाच। | 3-207-1x |
धुन्धुर्नाम महाराज तयोः पुत्रो महाद्युतिः। स तपोऽतप्यत महन्महावीर्यपराक्रमः ।। | 3-207-1a 3-207-1b |
अतिष्ठदेकपादेन कृशो धमनिसंततः। तस्मै ब्रह्मा ददौ प्रीतो वरं वव्रे स च प्रभुम् ।। | 3-207-2a 3-207-2b |
देवदानवयक्षाणां सर्पगन्धर्वरक्षसाम्। अवध्योऽहं भवेयं वै वर एष वृतो मया ।। | 3-207-3a 3-207-3b |
एवं भवतु गच्छेति तमुवाच पितामहः। स एवमुक्तस्तत्पादौ मूर्ध्ना स्पृष्ट्वा जगाम ह ।। | 3-207-4a 3-207-4b |
सतु धुन्धुर्वरं लब्ध्वा महवीर्यपराक्रमः। अनुस्मरन्पितृवधं द्रुतं विष्णुमुपागमत् ।। | 3-207-5a 3-207-5b |
सतु देवान्सगन्धर्वाञ्जित्वा धुन्धुरमर्षणः। बबाध सर्वानसकृद्विष्णुं देवांश्च वै भृशम् ।। | 3-207-6a 3-207-6b |
समुद्रवालुकापूर्णे उज्जानक इति स्मृते। आगम्य च स दुष्टात्मा तं देशं भरतर्षभ। बाधतेस्म परं शक्त्या तमुदङ्काश्रमं विभो ।। | 3-207-7a 3-207-7b 3-207-7c |
अन्तर्भूमिगतस्तत्र वालुकान्तर्हितस्तथा। मधुकैटभयोः पुत्रो धुन्धुर्भीमपराक्रमः ।। | 3-207-8a 3-207-8b |
शेते लोकविनाशाय तपोबलमुपाश्रितः। उदङ्कस्याश्रमाभ्याशे निःश्वसन्पावकार्चिषः ।। | 3-207-9a 3-207-9b |
एतस्मिन्नेव काले तु राजा सबलवाहनः। कुवलाश्वो नरपतिरन्वितो बलशालिनाम् ।। | 3-207-10a 3-207-10b |
सहस्रैरेकविंशत्या पुत्राणामरिमर्दनः। प्रायादुदङ्कसहितो धुन्धोस्तस्य वधाय वै ।। | 3-207-11a 3-207-11b |
तमाविशत्ततो विष्णुर्भगवांस्तेजसा प्रभुः। उदङ्कस् नियोगेन लोकानां हितकाम्यया ।। | 3-207-12a 3-207-12b |
तस्मिन्प्रयाते दुर्धर्षे दिवि शब्दो महानभूत्। एष श्रीमान्नृपसुतो धुन्धुमारो भविष्यति ।। | 3-207-13a 3-207-13b |
दिव्यैश्च पुष्पैस्तं देवाः समन्तात्पर्यवाकिरन्। देवदुन्दुभयश्चापि नेदुः स्वयमनीरिताः ।। | 3-207-14a 3-207-14b |
शीतश्च वायुः प्रववौ प्रयाणे तस्य धीमतः। विपांसुलां महीं कुर्वन्ववर्ष च सुरेश्वरः। `प्रदक्षिणाश्चाप्यभवन्वन्यास्तं समृगद्विजाः' ।। | 3-207-15a 3-207-15b 3-207-15c |
अन्तरिक्षे विमानानि देवतानां युधिष्ठिर। तत्रैव समदृश्यन्त धुन्धुर्यत्र महासुरः ।। | 3-207-16a 3-207-16b |
कुवलाश्वस्य धुन्योश्च युद्धकौतूहलान्विताः। देवगन्धर्वसहिताः समवैक्षन्महर्षयः ।। | 3-207-17a 3-207-17b |
नारायणेन कौरव्य तेजसाऽऽप्यायितस्तदा। स गतो नृपतिः क्षिप्रं पुत्रैस्तैः सर्वतो दिशम् ।। | 3-207-18a 3-207-18b |
अर्णवं स्वानयामास कुवलाश्वो महीपतिः। `हितार्तं सर्वलोकानामुदङ्कस्य वशे स्थितः' ।। | 3-207-19a 3-207-19b |
कुवलाश्वस् पुत्रैश्च तस्मिन्वै वालुकार्णवे। सप्तभिर्दिवसैः स्वात्वा दृष्टो धुन्धुर्महाबलः ।। | 3-207-20a 3-207-20b |
आसीद्धोरं वपुस्तस्य वालुकान्तर्हितं महत्। दीप्यमानं यथा सूर्यस्तेजसा भरतर्षभ ।। | 3-207-21a 3-207-21b |
ततो धुन्धुर्महाराज दिशमावृत्य पश्चिमाम्। सुप्तोऽभूद्राजशार्दूल कालानलसमद्युतिः ।। | 3-207-22a 3-207-22b |
कुवलाश्वस्य पुत्रैस्तु सर्वतः परिवारितः। अभिद्रुतः शरैस्तीक्ष्णैर्गदाभिर्मुसलैरपि ।। | 3-207-23a 3-207-23b |
प्टसैः परिधैः प्रासैः खङ्गैश् विमलैः शितैः। सवध्यमानः संक्रुद्धः समुत्तस्थौ महाबलः ।। | 3-207-24a 3-207-24b |
क्रुद्धश्चाभक्षयत्तेषां शस्त्राणि विविधानि च। आस्याद्वमन्पावकं स संवर्तकसमं तदा ।। | 3-207-25a 3-207-25b |
तान्सर्वान्नृपतेः पुत्रानदहत्स्वेन तेजसा। मुखजेनाग्निना क्रुद्धो लोकानुद्वर्तयन्निव ।। | 3-207-26a 3-207-26b |
क्षणेन राजशार्दूल पुरेव कपिलः प्रभुः। सगरस्यात्मजान्क्रुद्धस्तदद्भुतमिवाभवत् ।। | 3-207-27a 3-207-27b |
तेषु क्रोधाग्निदग्धेषु तदा भरतसत्तम। तं प्रबुद्धं महात्मानं कुम्भकर्णमिवापरम्। आससाद महातेजाः कुवलाश्वो महीपतिः ।। | 3-207-28a 3-207-28b 3-207-28c |
तस्य वारिमहाराज सुस्राव बहु देहतः। तत्तदापीयतेतेजो राज्ञा वारिमयं नृप ।। | 3-207-29a 3-207-29b |
योगी योगेन सृष्टं स समयित्वा च वारिणा। ब्रह्मास्त्रेण ततो राजा दैत्यंक्रूरपराक्रमम्। ददाह भरतश्रेष्ठ सर्वलोकभवाय वै ।। | 3-207-30a 3-207-30b 3-207-30c |
सोऽस्त्रेण दग्ध्वा राजर्षिः कुवलाश्वो महासुरम्। सुरशत्रुममित्रघ्नस्त्रैलोक्येश इवापरः ।। | 3-207-31a 3-207-31b |
धुन्धोर्वधात्तदा राजा कुवलाश्वो महामनाः। धुन्धुमार इतिख्यातो नाम्ना समभवत्ततः ।। | 3-207-32a 3-207-32b |
प्रीतैश्च त्रेदशैः सर्वैर्महर्षिमसितैस्तदा। परं वृणीष्वत्युक्तः स प्राञ्जलिः प्रणतस्तदा। अतीव मुदितो राजन्निदंवचनमब्रवीत् ।। | 3-207-33a 3-207-33b 3-207-33c |
दद्यां वित्तं द्विजाग्र्येभ्यः शत्रूणां चापि दुर्जयः। सख्यं च विष्णुना मे स्याद्भूतेष्वद्रोह एव च। धर्मे रतिश् सततं स्वर्गे वासस्तथाऽक्षयः ।। | 3-207-34a 3-207-34b 3-207-34c |
तथाऽस्त्विति ततो देवैः प्रीतैरुक्तः स पार्थिवः। ऋषिभिश्च सगन्धर्वैरुदङ्केन च धीमता ।। | 3-207-35a 3-207-35b |
संभाष्य चैनं विविधैराशीर्वादैस्ततो नृषम्। देवा महर्षयश्चापि स्वानि स्तानानि भेजिरे ।। | 3-207-36a 3-207-36b |
तस्य पुत्रास्त्रयः शिष्टा युधिष्ठिर तदाऽभवन्। दृढाश्वः कपिलाश्वश्च भद्राश्वश्चैव भारत ।। | 3-207-37a 3-207-37b |
तेभ्यः परम्परा राजन्निक्ष्वाकूणां महात्मनाम्। [वंशस्य सुमहाभाग राज्ञाममिततेजसाम्] ।। | 3-207-38a 3-207-38b |
एवंसं निहतस्तेन कुवलाश्वेन सत्तम। धुन्धुर्नाम महादैत्यो मधुकैटभयोः सुतः ।। | 3-207-39a 3-207-39b |
कुवलाश्वश्च नृपतिर्धुन्धुमार इति स्मृतः। नाम्ना च गुणयुक्तेन तदाप्रभृति सोऽभवत् ।। | 3-207-40a 3-207-40b |
एतत्ते सर्वमाख्यातं यन्मां त्वं परिपृच्छसि। धौन्धुमारमुपाख्यानं प्रथितं यस्य कर्मणा ।। | 3-207-41a 3-207-41b |
इदं तु पुण्यमाख्यानं विष्णोः समनुकीर्तनम्। शृणुयाद्यः स धर्मात्मा पुत्रवांश्च भवेन्नरः ।। | 3-207-42a 3-207-42b |
आयुष्मान्भूतिमांश्चैव श्रुत्वा भवति पर्वसु। न च व्याधिभंयकिंचित्प्राप्नोति विगतज्वरः ।। | 3-207-43a 3-207-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि गार्कण्डेयसमास्यापर्वणि सप्ताधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 207 |
3-207-30 वृष्टिं सगमयित्वाविचारिणा इति क. थ. पाठः। वह्निं च शमयामास वारिणा इति झ. पाठः ।।
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