महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-251
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कर्णेन बहुधा प्रार्थनेपि दुर्योधनेन प्रायोपवेशाध्यवसायादपरावर्तनम् ।। 1 ।।
कर्ण उवाच। | 3-251-1x |
राजन्नद्यावगच्छामि तवैव लघुसत्वताम्। `अल्पत्वं च तथा बुद्धेः कार्याणामविवेकिताम्' ।। | 3-251-1a 3-251-1b |
किमत्र चित्रं धर्मज्ञ मोक्षितः पाण्डवैरसि। सद्यो वशं समापन्नः शत्रूणां शत्रुकर्शन ।। | 3-251-2a 3-251-2b |
सेनाजीवैश्च कौरव्य तथा विषयवासिभिः। अज्ञातैर्यदि वा ज्ञातैः कर्तव्यं नृपतेः प्रियम् ।। | 3-251-3a 3-251-3b |
प्रायः प्रधानाः पुरुषाः क्षोभयित्वाऽरिवाहिनीम्। निगृह्यन्ते चयुद्धेषु मोक्ष्यन्ते च स्वसैनिकैः ।। | 3-251-4a 3-251-4b |
सेनाजीवाश्च ये राज्ञां विषये सन्ति मानवाः। तैः संगम्य नृपार्थाय यतितव्यं यथातथम् ।। | 3-251-5a 3-251-5b |
यद्येवं पाण्डवै राजन्भवद्विषयवासिभिः। यदृच्छया मोक्षितोऽसि कतत्रका परिदेवना ।। | 3-251-6a 3-251-6b |
न चैतत्साधु यद्राजन्पाण्डवास्त्वां नृपोत्तमम्। स्वसेनया संप्रयान्तं नानुयान्ति स्म पृष्ठतः ।। | 3-251-7a 3-251-7b |
शूराश्च बलवन्तश्च संयुगेष्वपलायिनः। भवतस्ते सभायां वै प्रेष्यतां पूर्वमागताः ।। | 3-251-8a 3-251-8b |
पाण्डवेयानि रत्नानि त्वमद्याप्युपभुञ्जसे। सत्वस्थान्पाण्डवान्पश्य न ते प्रायमुपाविशन् ।। | 3-251-9a 3-251-9b |
`तदलं ते महाबाहो विषादं कर्तुमीदृशम्'। उत्तिष्ठ रराजन्भद्रं ते न चिन्तां कर्तुमर्हसि ।। | 3-251-10a 3-251-10b |
अवश्यमेव नृपते राज्ञो विषयवासिभिः। प्रियाण्याचरितव्यानि तत्र का परिदेवना ।। | 3-251-11a 3-251-11b |
मद्वाक्यमेतद्राजेन्द्र यद्येवं न करिष्यसि। स्थास्यामीह भवत्पादौ शुश्रूषन्नरिमर्दन ।। | 3-251-12a 3-251-12b |
नोत्सहे जीवितुमहं त्वद्विहीनो नरर्षभः। प्रायोपविष्टस्तु तथा राज्ञां हास्यो भविष्यसि ।। | 3-251-13a 3-251-13b |
वैशंबायन उवाच। | 3-251-14x |
एवमुक्तस्तु कर्णेन राजा दुर्योधनस्तदा। नैवोत्थातुं मनश्चक्रे स्वर्गाय कृतनिश्चयः ।। | 3-251-14a 3-251-14b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। |
3-251-8 भवतस्ते सहाया वै इति झ. पाठः ।।
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