महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-300
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साल्वदेशीयैर्द्युमत्सेनंप्रति न्मन्त्रिणा तच्छत्रुनिषर्हणनिवेदनपूर्वकं निजनगरंप्रत्यागमनप्रार्थना ।। 1 ।। सभार्येण द्युमत्सेनेन सावित्रीसत्यवद्भ्यां सह मुनिगणाभिवादनादिपूर्वकं स्वपुरप्रत्यागमनम् ।। 2 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-300-1x |
तस्यां रात्र्यां व्यतीतायामुदिते सूर्यमण्डले। कृतपौर्वाह्णिकाः सर्वे समेयुस्ते तपोधनाः ।। | 3-300-1a 3-300-1b |
तदेव सर्वं सावित्र्या महाभाग्यं महर्षयः। द्युम्सेनाय नातृप्यन्कथयन्तः पुनः पुनः ।। | 3-300-2a 3-300-2b |
ततः प्रकृतयः सर्वाः साल्वेभ्योऽभ्यागा नृपम्। आचख्युर्निहतं चैव स्वेनामात्येन तं द्विषम् ।। | 3-300-3a 3-300-3b |
तं मन्त्रिणा हतं प्रोच्य ससहायं सबान्धवम्। न्यवेदयन्यथावृत्तं विद्रुतं च द्विषद्बलम् ।। | 3-300-4a 3-300-4b |
ऐकमत्यं च सर्वस्य जनस्य स्वं नृपं प्रति। सचक्षुर्वाऽप्यचक्षुर्वा स नो राजा भवत्विति ।। | 3-300-5a 3-300-5b |
अनेन निश्चयेनेह वयं प्रस्थापिता नृप। प्राप्तानीमानि यानानि चतुरङ्गं च ते बलम् ।। | 3-300-6a 3-300-6b |
प्रयाहि राजन्भद्रं ते घुष्टस्ते नगरे जयः। अध्यास्स्व चिररात्राय पितृपैतामहं पदम् ।। | 3-300-7a 3-300-7b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-300-8x |
चक्षुष्मन्तं च तं दृष्ट्वा राजानं वपुषाऽन्वितम्। मूर्ध्ना निपतिताः सर्वेविस्मयोत्फुल्ललोचनाः ।। | 3-300-8a 3-300-8b |
तोऽभिवाद्य तान्वृद्धान्द्विजानाश्रमवासिनः। तैश्चाभिपूजितः सर्वैः प्रययौ नगरं प्रति ।। | 3-300-9a 3-300-9b |
शैव्या च सह सावित्र्या स्वास्तीर्णेन सुवर्चसा। नरयुक्तेन यानेन प्रययौ सेनया वृता ।। | 3-300-10a 3-300-10b |
ततोऽभिषिषिचुः प्रीत्या द्युमत्सेनं पुरोहिताः। पुत्रं चास्य महात्मानं यौवराज्येऽभ्यषेचयन् ।। | 3-300-11a 3-300-11b |
ततः कालेन महता सावित्र्याः कीर्तिवर्धनम्। तद्वै पुत्रशतं जज्ञे शूराणामनिवर्तिनाम् ।। | 3-300-12a 3-300-12b |
भ्रातृणां सोदराणां च तथैवास्याभवच्छतम्। मद्राधिपस्याश्वपतेर्मालव्यां सुमहाबलम् ।। | 3-300-13a 3-300-13b |
एवमात्मा पिता माता श्वश्रूः श्वशुर एव च। भर्तुः कुलं च सावित्र्या सर्वं कृच्छ्रात्समुद्धृतं ।। | 3-300-14a 3-300-14b |
तथैवैषा हि कल्याणी द्रौपदी शीलसंमता। तारयिष्यति वः सर्वान्सावित्रीव कुलाङ्गना ।। | 3-300-15a 3-300-15b |
वैशंपायन उवाच। | 3-300-16x |
एवं स पाण्डवस्तेन अनुनीतो महात्मना। विशोको विज्वरो राजन्काम्यके न्यवसत्तदा ।। | 3-300-16a 3-300-16b |
यश्चेदं शृणुयाद्भक्त्या सावित्र्याख्यानमुत्तमम्। स सुखी सर्वसिद्धार्थो न दुःखं प्राप्नुयान्नरः ।। | 3-300-17a 3-300-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि पतिव्रतामाहात्म्यपर्वणि त्रिशततमोऽध्यायः ।। 300 ।। |
3-300-7 चिररात्राय बहुकालम् ।। 3-300-17 सर्पसिद्धार्थो रदीर्घमायुरवाप्नुयात् इति क. पाठः ।।
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