महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-123
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लामशेन युधिष्ठिरंप्रति सुकन्योपाख्यानकथनारम्भः ।। 1 ।। कदाचन शर्यातनिना नृपेण सैन्यादिभिःसह च्यवनाश्रमाभिगमनम् ।। 2 ।। तत्र शर्यातिकन्यया सुकन्यया चिरतरतपश्चर्यानिरतस्य च्यवनस्य शरीरं पर्यावृत्य विवर्धमानमहावल्मीकावलोकनम् ।। 3 ।। तथा कुतूहलाद्वल्मीकोपरि दृश्यमानच्यवननयनयुगलस्याज्ञानात्कण्टकेन विभेदनम् ।। 4 ।। ततः क्रुद्धस्य च्यवनस्य प्रसादनाय शर्यातिना भार्यात्वाय तस्मै सुकन्यायाः प्रदानम् ।। 5 ।।
लोमश उवाच। | 3-123-1x |
भृगोर्महर्षेः पुत्रोऽभूच्चयवनो नाम भारत। समीपे सरसस्तस्य तपस्तेपे महाद्युतिः ।। | 3-123-1a 3-123-1b |
स्थाणुभूतो महातेजा वीरस्थानेन पाण्डव। अतिष्ठत चिरं कालमेकदेशे विशांपते ।। | 3-123-2a 3-123-2b |
सवल्मीकोऽभवदृषिर्लताभिरिव संवृतः। कालेन महता राजन्समाकीर्णः पिपीलिकैः ।। | 3-123-3a 3-123-3b |
तथा स संवृतो धीमान्मृत्पिण्ड इव सर्वशः। तप्यते स्म तपो घोरं वल्मीकेन समावृतः ।। | 3-123-4a 3-123-4b |
अथ दीर्घस्य कालस्य शर्यातिर्नाम पार्थिवः। आजगाम सरो रम्यं विहर्तुमिदमुत्तमम् ।। | 3-123-5a 3-123-5b |
तस्य स्त्रीणां सहस्राणि चत्वार्यासन्परिग्रहः। एकैव च सुता सुभ्रूः सुकन्या नाम भारत ।। | 3-123-6a 3-123-6b |
सा सखीभिः परिवृता दिव्याभरणभूषिता। चङ्क्रम्यमाणा वल्मीकं भार्गवस्य समासदत् ।। | 3-123-7a 3-123-7b |
सा वै वसुमतीं तत्र पश्यन्ती सुमनोरमाम्। वनस्पतीन्प्रचिन्वन्ती विजहार सखीवृता ।। | 3-123-8a 3-123-8b |
रूपेण वयसा चैव भदनेन मदेन च। बभञ्ज वनवृक्षाणां शाखाः परमपुष्पिताः ।। | 3-123-9a 3-123-9b |
तां सखीरहितामेकामेकवस्त्रामलंकृताम्। ददर्श भार्गवो धमांश्चरन्तीमिव विद्युतम् ।। | 3-123-10a 3-123-10b |
तां पश्यमानो विजने स रेमे परमद्युतिः। क्षामकण्ठश्च विप्रर्षिस्तपोबलसमन्वितः। तामाबभाषेकल्याणीं सा चास्य न शृणोति वै ।। | 3-123-11a 3-123-11b 3-123-11c |
ततः सुकन्या वल्मीके दृष्ट्वा भार्गवचक्षुषी। कौतूहलात्कण्टकेन बुद्धिमोहबलात्कृता। किंनु खल्विदमित्युक्त्वा निर्बिभेदास्य लोचने ।। | 3-123-12a 3-123-12b 3-123-12c |
अक्रुद्ध्यत्स तथा विद्धे नेत्रे परममन्युमान्। ततः शर्यातिसैन्यस्य शकृन्मूत्रे समावृणोत् ।। | 3-123-13a 3-123-13b |
ततो रुद्धे शकृन्मूत्रे सैन्यमासीत्सुदुःखितम्। तथागतमभिप्रेक्ष्य पर्यपृच्छत्स पार्थिवः ।। | 3-123-14a 3-123-14b |
तपोनित्यस्य वृद्धस्य रोषणस्य विशेषतः। केनापकृतमद्येह भार्गवस्य महात्मनः। ज्ञातं वा यदि वाऽज्ञातं तद्द्रुतं ब्रूत माचिरम् ।। | 3-123-15a 3-123-15b 3-123-15c |
तमूचुः सैनिकाः सर्वे न विद्मोऽपकृतं वयम्। सर्वोपायैर्यथाकामं भवांस्तदधिगच्छतु ।। | 3-123-16a 3-123-16b |
ततः स पृथिवीपालः साम्ना चोग्रेण च स्वयम्। पर्यपृच्छत्सुहृद्वर्गं पर्यजानन्न चैव ते ।। | 3-123-17a 3-123-17b |
आनाहार्तं ततो दृष्ट्वा तत्सैन्यमनुखार्दितम्। पितरं दुःखितं दृष्ट्वा सुकन्येदमथाब्रवीत् ।। | 3-123-18a 3-123-18b |
मयाऽटन्त्येह वल्मीके दृष्टं सत्वमभिज्वलत्। खद्योतवदभिज्ञातं तन्मया विद्धमन्तिकात् ।। | 3-123-19a 3-123-19b |
एतच्छ्रुत्वा तु वल्मीकं शर्यातिस्तूर्णमभ्ययात्। तत्रापशय्त्तपोवृद्धं चन्द्रादित्यसमप्रभम् ।। | 3-123-20a 3-123-20b |
अयाचदथ सैन्यार्थं प्राञ्जलिः पृथिवीपतिः। अज्ञानाद्बालया यत्ते कृतं तत्क्षन्तुमर्हसि ।। | 3-123-21a 3-123-21b |
ततोऽब्रवीन्महीपालं च्यवनो भार्गवस्तदा। अपमानादहं विद्धो ह्यनया दर्पपूर्णया ।। | 3-123-22a 3-123-22b |
रूपौदार्यसमायुक्तां लोभमोहबलात्कृताम्। तामेव प्रतिगृह्याहं राजन्दुहितरं तव। क्षंस्यामीति महीपाल सत्यमेतद्ब्रवीमि ते ।। | 3-123-23a 3-123-23b 3-123-23c |
लोमश उवाच। | 3-123-24x |
ऋषेर्वचनमाज्ञाय शर्यातिरविचारयन्। ददौ दुहितरं तस्मै च्यवनाय महात्मने ।। | 3-123-24a 3-123-24b |
प्रतिगृह्य च तां कन्यां भगवान्प्रससाद ह। प्राप्तप्रसादौ राजा वै ससैन्यः पुरमाव्रजत् ।। | 3-123-25a 3-123-25b |
सुकन्याऽपि पतिं लब्ध्वा तपस्विनमनिन्दिता। नित्यं पर्यचरत्प्रीत्या तपसा नियमेन च ।। | 3-123-26a 3-123-26b |
अग्नीनामतीथीनां च शुश्रूषुनसूयिका। समाराधयत क्षिप्रं च्यवनं सा शुभानना ।। | 3-123-27a 3-123-27b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि त्रयोविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः ।। 123 ।। |
3-123-2 वीरस्तानेन वीरासनेन ।। 3-123-11 क्षामकण्ठः क्षीणध्वनिः अतएव सा तद्वचनं न शृणोति ।। 3-123-20 वयोवृद्धं च भार्गवम् इति झ. ध. पाठः ।।
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