महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-096
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धनयाचनाय श्रुतर्वादिनृपत्रयमुपगतेनागस्त्येन तद्धनानां समायव्ययतापरिज्ञानेन तैःसह इल्वलं प्रति गमनम् ।। 1 ।।
लोमश उवाच। | 3-96-1x |
ततो जगाम कौरव्य सोऽगस्त्यो भिक्षितुं वसु। श्रुतर्वाणं महीपालं यं वेदाभ्यधिकं नृपैः ।। | 3-96-1a 3-96-1b |
स विदित्वा तु नृपतिः कुम्भयोनिमुपागतम्। विषयान्ते सहामात्यः प्रत्यगृह्णात्सुसत्कृतम् ।। | 3-96-2a 3-96-2b |
तस्मै चार्घ्यं थान्यायमानीय पृथिवीपतिः। प्राञ्जलिः प्रयतो भूत्वापप्रच्छागमनेऽर्थिताम् ।। | 3-96-3a 3-96-3b |
अगस्त्य उवाच। | 3-96-4x |
वित्तार्थिनमनुप्राप्तं विद्धि मां पृथिवीपते। थाशक्त्यविहिंस्यान्यान्संविभागं प्रयच्छ मे ।। | 3-96-4a 3-96-4b |
लोमश उवाच। | 3-96-5x |
तत आयव्ययौ पूर्णो तस्मै राजा न्यवेदयत्। अतो विद्वन्नुपादत्स्व यदत्रव्यतिरिच्यते ।। | 3-96-5a 3-96-5b |
तत आयव्ययौ दृष्ट्वा समौ सममतिर्द्विजः। सर्वथा प्राणिनां पीडामुपादानादमन्यत ।। | 3-96-6a 3-96-6b |
स श्रुतर्वाणमादाय ब्रध्नश्वमगमत्ततः। स च तौ विषयस्यान्ते प्रत्यगृह्णाद्यथाविधि ।। | 3-96-7a 3-96-7b |
तयोरर्ध्यं च पाद्यं च ब्रध्नश्वः प्रत्यवेदयत्। अनुज्ञाप्यच पप्रच्छ प्रयोजनमुपक्रमे। `वद कामं मुनिश्रेष्ठ धन्योस्म्यागमनेन ते' ।। | 3-96-8a 3-96-8b 3-96-8c |
अगस्त्य उवाच। | 3-96-9x |
वित्तकामाविह प्राप्तौ विद्ध्यावां पृथिवीपते। यथाशक्त्यविहिंस्यान्यान्संविभागं प्रयच्छ नौ ।। | 3-96-9a 3-96-9b |
लोमश उवाच। | 3-96-10x |
तत आयव्ययौ पूर्णौ ताभ्यां राजा न्यवेदयत्। अतो ज्ञात्वा तु गृह्णीतं यदत्रव्यतिरिच्यते ।। | 3-96-10a 3-96-10b |
तत आयव्ययौ दृष्ट्वासमौ सममतिर्द्विजः। सर्वथा प्राणिनां पीडामुपादानादमन्यत ।। | 3-96-11a 3-96-11b |
पौरुकुत्सं ततो जग्मुस्त्रसदस्युं महाधनम्। अगस्त्यश्च श्रुतर्वा च ब्रध्नश्वश्च महीपतिः ।। | 3-96-12a 3-96-12b |
त्रसदस्युस्तु तान्दृष्ट्वा प्रत्यगृह्णाद्यथाविधि। अभिगम्य महाराज विषयान्ते महामनाः ।। | 3-96-13a 3-96-13b |
अर्चयित्वा यथान्यायमैक्ष्वाको राजसत्तमः। समस्तांश्च ततोऽपच्छत्प्रयोजनमुपक्रमे ।। | 3-96-14a 3-96-14b |
अगस्त्य उवाच। | 3-96-15x |
वित्तकामानिह प्राप्तान्विद्धि नः पृथिवीपते। यथाशक्त्यवीहिंस्यान्यान्संविभागं प्रयच्छ नः ।। | 3-96-15a 3-96-15b |
लोमश उवाच। | 3-96-16x |
तत आयव्ययौ पूर्णौ तेषां राजा न्यवेदयत्। एतज्ज्ञात्वा ह्युपादद्ध्वं यदत्रव्यतिरिच्यते ।। | 3-96-16a 3-96-16b |
तत आयव्ययौ दृष्ट्वासमौ सममतिर्द्विजः। सर्वथा प्राणिनां पीडामुपादानादमन्यत ।। | 3-96-17a 3-96-17b |
ततः सर्वे समेत्याथ ते नृपास्तं महामुनिम्। इदमूचुर्महाराज समवेक्ष्य परस्परम् ।। | 3-96-18a 3-96-18b |
अयं वै दानवो ब्रह्मन्निल्वलो वसुमान्भुवि। तमतिक्रम्य सर्वेऽद्यवयं चार्तामहे वसु ।। | 3-96-19a 3-96-19b |
लोमश उवाच। | 3-96-20x |
तेषां तदासीदुचितमिल्वलस्यैव भिक्षणम्। ततस्ते सहिता राजन्निल्वलं समुपाद्रवन् ।। | 3-96-20a 3-96-20b |
3-96-2 विषयान्ते देशसीमान्ते ।। 3-96-3 आगमने निमित्तभूतां अर्थिताम्। किमिच्छन्नागतोसीति पप्रच्छेत्यर्थः ।। 3-96-6 उपादानात् धनग्रहणात् ।। 3-96-7 वाध्र्यश्वमगमत्तत इति क. ध. पाठः ।। 3-96-8 उपक्रमे आगमने ।। 3-96-9 नौ आवाभ्याम् ।। 3-96-19 वसुमान् धनवान् ।।
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