महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-091
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युधिष्ठिरेण लोमशादिभिः सह तीर्थसेवनाय प्रस्थानम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-91-1x |
ततः प्रयान्तं कौन्तेयं ब्राह्मणा वनवासिनः। अभिगम्य तदा राजन्निदं वचनमब्रुवन् ।। | 3-91-1a 3-91-1b |
राजंस्तीर्थानि गन्तासि पुण्यानि भ्रातृभिः सह। देवर्षिणा च सहितो लोमशेन महात्मना ।। | 3-91-2a 3-91-2b |
अस्मानपि महाराज नेतुमर्हसि पाण्डव। अस्माभिर्हि न शक्यानि त्वदृते तानि कौरव ।। | 3-91-3a 3-91-3b |
श्वापरदैरुपसृष्टानि दुर्गाणि विषमाणि च। अगम्यानि नरैरल्पैस्तीर्थानि मनुजेश्वर ।। | 3-91-4a 3-91-4b |
भवतो भ्रातरः शूरा धनुर्धरवराः सदा। भवद्भिः पालिताः शूरैर्गच्छामो वयमप्युत ।। | 3-91-5a 3-91-5b |
भवत्प्रसादाद्धि वयं प्राप्नुयामः सुखं फलम्। तीर्थानां पृथिवीपाल वनानां च विशांपते ।। | 3-91-6a 3-91-6b |
तव वीर्यपरित्राताः शुद्धास्तीर्थपरिप्लताः। भवेम धूतपाप्मानस्तीर्थसंदर्शनान्नृप ।। | 3-91-7a 3-91-7b |
भवानपि नरेन्द्रस्य कार्तवीर्यस्य भारत। अष्टकस्य च राजर्षेर्लोमपादस् चैव ह ।। | 3-91-8a 3-91-8b |
भरतस्य च वीरस्य सार्वभौमस्य पार्तिव। ध्रुवं प्राप्स्यति दुष्प्रापाँल्लोकांस्तीर्थपरिप्लुतः ।। | 3-91-9a 3-91-9b |
प्रभासादीनि तीर्थानि महेन्द्रादींश्च पर्वतान्। गङ्गाद्याः सरितश्चैव प्लक्षादींश्च पर्वतान् ।। | 3-91-10a 3-91-10b |
त्वया सह महीपाल द्रष्टुमिच्छामहे वयम्। `भवद्भिः पालिताः शूरैस्तीर्थान्यायतनानि च' ।। | 3-91-11a 3-91-11b |
यदि ते ब्राह्मणेष्वस्ति काचित्प्रीतिर्जनाधिप। कुरुक्षिप्रं वचोऽस्माकं ततः श्रेयोऽभिपत्स्यसे ।। | 3-91-12a 3-91-12b |
तीर्तानि हि महाबाहो तपोविघ्नकरैः सदा। अनुकीर्णानि रक्षोभिस्तेभ्यो नस्त्रातुमर्हसि ।। | 3-91-13a 3-91-13b |
तीर्थान्युक्तानि धौम्येन नारदेन च धीमता। यान्युवाच च देवर्षिर्लोमशः सुमहातपाः ।। | 3-91-14a 3-91-14b |
विधिवत्तानि सर्वाणि पर्यटस्व नराधिप। धूतपाप्मा सहास्माभिर्लोमशेनाबिपालितः ।। | 3-91-15a 3-91-15b |
स राजा पूज्यमानस्तैर्हर्षादश्रुपरिप्लुतः। भीमसेनादिभिर्वीरैर्भ्रातृभिः परिवारितः ।। | 3-91-16a 3-91-16b |
बाढमित्यब्रवीत्सर्वांस्तानृषीन्पाण्डवर्षभः। लोमशं समनुज्ञाप्य धौम्यं चैव पुरोहितम् ।। | 3-91-17a 3-91-17b |
ततः स पाण्डवश्रेष्ठो भ्रातृभिः सहितो वशी। द्रौपद्या चानवद्याङ्ग्या गमनाय मनो दधे ।। | 3-91-18a 3-91-18b |
अथ व्यासो महाभागस्तथा पर्वतनारदौ। दाम्यके पाण्डवंद्रष्टुं समाजग्मुर्मनीषिणः ।। | 3-91-19a 3-91-19b |
तेषां युधिष्ठिरो राजा पूजां चक्रे यथाविधि। सत्कृतास्ते महाभागा युधिष्ठिरमथाब्रुवन् ।। | 3-91-20a 3-91-20b |
युधिष्ठिरयमौ भीम मनसा कुरुतार्जवम्। मनसा कृतशौचा वै शद्धास्तीर्थानि यास्यथ ।। | 3-91-21a 3-91-21b |
शरीरनियमं प्राहुर्ब्राह्मणा मानुषं व्रतम्। मनोविशुद्धां बुद्धिं च दैवमाहुर्व्रतं द्विजाः ।। | 3-91-22a 3-91-22b |
मनो ह्यदुष्टं शौचाय पर्याप्तं वै नराधिप। मैत्रीं बुद्धिं समास्थाय शुद्धास्तीर्थानि गच्छत ।। | 3-91-23a 3-91-23b |
ते यूयं मानसैः शुद्धाः शरीरनियमव्रतैः। दैवं व्रतं समास्थाय यथोक्तं फलमाप्स्यथ ।। | 3-91-24a 3-91-24b |
ते तथेति प्रतिज्ञाय कृष्णया सह पाण्डवाः। कृतस्वस्त्ययनाः सर्वे मुनिभिर्देवमानुषैः ।। | 3-91-25a 3-91-25b |
लोमशस्योपसंगृह्य पादौ द्वैपायनस् च। नारदस्य च राजेन्द्र देवर्षेः पर्वतस्य च ।। | 3-91-26a 3-91-26b |
धौम्येन सहिता वीरास्तथा तैर्वनवासिभिः। मार्गशीर्ष्यामतीतायां पुष्येण प्रययुस्ततः ।। | 3-91-27a 3-91-27b |
कठिनानि समादाय चीराजिनजटाधराः। अभेद्यैः कवचैर्युक्तास्तीर्थान्यन्वचरंस्ततः ।। | 3-91-28a 3-91-28b |
इन्द्रसेनादिभिर्भृत्यै रथैः परिचतुर्दशैः। महानसव्यापृतैश्च तथाऽन्यैः परिचारकैः ।। | 3-91-29a 3-91-29b |
सायुधा बद्धनिस्त्रिंशास्तूणवन्तः समार्गणाः। प्राङ्युखाः प्रययुर्वीराः पाण्डवा जनमेजय ।। | 3-91-30a 3-91-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि एकनवतितमोऽध्यायः ।। 91 ।। |
3-91-7 तीर्थसंस्पर्शनान्नृपेति क. पाठः ।। 3-91-13 अनुकीर्णानि व्याप्तानि। नोऽस्मान् ।। 3-91-21 आर्जवमृजुबुद्धिं श्रद्धामित्यर्थः ।। 3-91-23 मनो ह्यदुष्टं शूराणामिति क. पाठः ।। 3-91-24 फलमाप्नुतेति क. पाठः ।। 3-91-28 कठिनानि करण्डानि ।। 3-91-29 परिचतुर्दशैः पञ्चदशाभिः। चतुर्दशभ्यः परि उपरीति व्युत्पत्तेः। संख्ययाव्ययासन्नेति समासः। बहुव्रीहौ संख्येये डजिति डच् ।।
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