महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-056
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कलिचोदनया पुष्करेण नलाह्वानम् ।। 1 ।।
नलपुष्करयोरक्षदेवनम् ।। 1 ।।
बृहदश्व उवाच। | 3-56-1x |
एवं स समयं कृत्वा द्वापरेण कलिः सह। आजगाम ततस्तत्र यत्रराजा स नैषधः ।। | 3-56-1a 3-56-1b |
स नित्यमन्तरप्रेक्षी निषधेष्ववसच्चिरम्। अथास्य द्वादशे वर्षे ददर्श कलिरन्तरम् ।। | 3-56-2a 3-56-2b |
कृत्वा मूत्रमुपस्पृश्य संध्यामन्वास्त नैषधः। अकृत्वा पादयोः शौचं तत्रैनं कलिराविशत् ।। | 3-56-3a 3-56-3b |
स समाविश्य च नलं समीपं पुष्करस्य च। गत्वा पुष्करमाहेदमेहि दीव्य नलेन वै ।। | 3-56-4a 3-56-4b |
अक्षद्यूते नलं जेता भवान्हि सहितो मया। निषधान्प्रतिपद्यस्व जित्वा राज्यं नलं नृपम् ।। | 3-56-5a 3-56-5b |
एवमुक्तस्तु कलिना पुष्करो नलमभ्ययात्। कलिश्चैव वृषो भूत्वा तं वै पुष्करमन्वयात् ।। | 3-56-6a 3-56-6b |
आसाद्य तु नलं वीरं पुष्करः परवीरहा। दीव्यावेत्यब्रवीद्धाता वृषेणेति मुहुर्मुहुः ।। | 3-56-7a 3-56-7b |
न चक्षमे ततो राजा समाह्वानं महामनाः। वैदर्भ्याः प्रेक्षमाणायाः प्राप्तकालममन्यत ।। | 3-56-8a 3-56-8b |
`ततः स राज्ञा सहसा देवितुं संप्रचक्रमे ।। | 3-56-9a |
भ्रात्रा देवाभिभूतेन दैवाविष्टो जनाधिपः।' हिरण्यस्य सुवर्णस्य यानयुग्यस् वाससाम्। आविष्टः कलिना द्यूते जीयते स्म नलस्तदा ।। | 3-56-10a 3-56-10b 3-56-10c |
तमक्षमदसंमत्तं सुहृदां न तु कश्चन। निवारणेऽभवच्छक्तो दीव्यमानमरिंदमम् ।। | 3-56-11a 3-56-11b |
ततः पौरजनाः सर्वे मन्त्रिभिः सह भारत। राजानं द्रष्टुमागच्छन्निवारयितुमातुरम् ।। | 3-56-12a 3-56-12b |
ततः सूत उपागम्य दमयन्त्यै न्यवेदयत्। एष पौरजनो देवि द्वारि तिष्ठति कार्यवान् ।। | 3-56-13a 3-56-13b |
निवेद्यतां नैषधाय सर्वाः प्रकृतयः स्थिताः। अमृष्यमाणा व्यसनं राज्ञो धर्मार्थदर्शिनः ।। | 3-56-14a 3-56-14b |
ततः सा बाष्पकलया वाचा दुःखेन कर्शिता। उवाच नैषधं भैमी शोकोपहतचेतना ।। | 3-56-15a 3-56-15b |
राजन्पौरजनो द्वारि त्वां दिदृक्षुरवस्थितः। `वृद्धैर्ब्राह्मणमुख्यैश्च वणिग्भिश्च समन्वितः ।। | 3-56-16a 3-56-16b |
आगतं सहितं राजंस्त्वत्प्रसादावलम्बनम्।' तं द्रष्टुमर्हसीत्येवं पुनः पुनरभाषत ।। | 3-56-17a 3-56-17b |
तां तथा रुचिरापाङ्गीं विलपन्तीं तथाविधाम्। आविष्टः कलिना राजा नाभ्यभाषत किंचन ।। | 3-56-18a 3-56-18b |
ततस्ते मन्त्रिणः सर्वे ते चैव पुरवासिनः। नायमस्तीति दुःखार्ता व्रीडिता जग्मुरालयान् ।। | 3-56-19a 3-56-19b |
तथा तदभवद्द्यूतं पुष्करस्य नलस्य च। युधिष्ठिर बहून्मासान्पुण्यश्लोकस्त्वजीयत ।। | 3-56-20a 3-56-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि नलोपाख्यानपर्वणि षट्पञ्चाशोऽध्यायः ।। 65 ।। |
3-56-1 समयं संकेतम् ।। 3-56-3 अन्वास्त उपासितवान् ।। 3-56-4 स कुलिः। नलं समाविश्य रूपान्तरेण पुष्करं चाब्रवीत्। दीव्य द्यूतं कुरु ।। 3-56-6 वृषः श्रेष्ठः पाशश्रेष्ठो भूत्वा ।। 3-56-7 वृषेणाक्षमुख्येन। अब्रवीत्प्रीत्येति क. पाठः ।। 3-56-10 यानेषु युग्यं युगवहं रथादि तस्य ।। 3-56-19 नायमस्ति नष्टोयमित्यर्थः ।। 3-56-20 पुण्यः पावनः श्लोको यशो यस्य। अजीयत जितः ।।
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