महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-276
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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मुनिवरेण विश्रवसा भार्यात्रये रावणादीनामुत्पादनम् ।। 1 ।।
सानुजेन रावणेन तपस्तोषितस्य ब्रह्मणो वरात्पुष्पका पहरणपूर्वकं कुबेरस्य निष्कासनेन लङ्कायां
मार्कण्डेय उवाच। | 3-276-1x |
पुलस्त्यस् तु यः क्रोधादर्धदेहोऽभवन्मुनिः। विश्रवानाम सक्रोधं पितरं राक्षसेश्वरः। | 3-276-1a 3-276-1b |
बुबुधे तं तु सक्रोधं पितरं राक्षसेश्वरः। कुबेरस्तत्प्रसादार्थं यतते स्म सदा नृप ।। | 3-276-2a 3-276-2b |
स राजराजो लङ्कायां न्यवसन्नरवाहनः। राक्षसीः प्रददौ तिस्रः पितुर्वै परिचारिकाः ।। | 3-276-3a 3-276-3b |
ताः सदा तं महात्मानं संतोषयितुमुद्यताः। ऋषिं भरतशार्दूल नृत्यगीतविशारदाः ।। | 3-276-4a 3-276-4b |
पुष्पोत्कटा च राका च मालिनी च विशांपते। अन्योन्यस्पर्धयाराजञ्श्रेयस्कामाः सुमध्यमाः ।। | 3-276-5a 3-276-5b |
स तासां भगवांस्तुष्टो महात्मा प्रददौ वरान्। लोकपालोपमान्पुत्रानकैकस्या यथेप्सितान् ।। | 3-276-6a 3-276-6b |
पुष्पोत्कटायां जज्ञाते द्वौ पुत्रौ राक्षसेश्वरौ। कुम्भकर्णदशग्रीवौ बलेनाप्रतिमौ भुवि ।। | 3-276-7a 3-276-7b |
मालिन जनयामास पुत्रमेकं विभीषणम्। राकार्या मिथुनं जज्ञे खरः शूर्पणखा तथा ।। | 3-276-8a 3-276-8b |
विभीषणस्तु रूपेण सर्वेभ्योऽभ्यधिकोऽभवत्। स बभूव महाभागो धर्मगोप्ता क्रियारतिः ।। | 3-276-9a 3-276-9b |
दशग्रीवस्तु सर्वेषां श्रेष्ठो राक्षसपुङ्गवः। महोत्साहो महावीर्यो महासत्वपराक्रमः ।। | 3-276-10a 3-276-10b |
कुम्भकर्णओ बलेनासीत्सर्वेभ्योऽभ्यधिको युधि। मायावी रणशौण्डश्चरौद्रश्च रजनीचरः ।। | 3-276-11a 3-276-11b |
खरो धनुषि विक्रान्तो ब्रह्मद्विट् पिशिताशनः। सिद्धविघ्नकरी चापि रौद्री शूर्पणखा तदा ।। | 3-276-12a 3-276-12b |
सर्वे वेदविदः शूराः सर्वेसुचरितव्रताः। ऊषुः पित्रा सह रता गन्धमादनपर्वते ।। | 3-276-13a 3-276-13b |
ततो वैश्रवणं तत्र ददृशुर्नरवाहनम्। पित्रा सार्धं समासीनमृद्ध्या परमया युतम् ।। | 3-276-14a 3-276-14b |
जातामर्षास्ततस्ते तु तपसे धृतनिश्चयाः। ब्रह्माणं तोषयामासुर्घोरेण तपसा तदा ।। | 3-276-15a 3-276-15b |
अतिष्ठदेकपादेन सहस्रं परिवत्सरान्। वायुभक्षो दशग्रीवः पञ्चाग्निः सुसमाहितः ।। | 3-276-16a 3-276-16b |
अधःशायी कुम्भकर्णो यताहारो यतव्रतः। विभीषणः शीर्णपर्णमेकमभ्यवहारयन् ।। | 3-276-17a 3-276-17b |
उपवासरतिर्धीमान्सदा जप्यपरायणः। तमेव कालमातिष्ठत्तीव्रं तप उदारधीः ।। | 3-276-18a 3-276-18b |
स्वरः शूर्पणखा चैव तेषां वै तप्यतां तपः। परिचर्यां च रक्षां च चक्रतुर्हष्टमानसौ ।। | 3-276-19a 3-276-19b |
पूर्णे वर्षसहस्रेतु शिरश्छित्त्वा दशाननः। जुहोत्यग्नौ दुराधर्षस्तेनातुष्यज्जगत्प्रभुः ।। | 3-276-20a 3-276-20b |
ततो ब्रह्मा स्वयं गत्वा तपसस्तान्न्यवारयत्। प्रलोभ्यवरदानेन सर्वानेवपृथक्पृथक् ।। | 3-276-21a 3-276-21b |
ब्राह्मोवाच। | 3-276-22x |
प्रीतोऽस्मि वो निवर्तध्वं वरान्वृणुत पुत्रकाः। यद्यदिष्टमृते त्वेकममरत्वं तथाऽस्तु तत् ।। | 3-276-22a 3-276-22b |
यद्यदग्नौ हुतं सर्वं शिरस्ते महदीप्सया। तथैव तानि ते देहे भविष्यन्ति यथेप्सया ।। | 3-276-23a 3-276-23b |
वैरूप्यं च न ते देहे कामरूपधरस्तथा। भविष्यसि रणेऽरीणां विजेता न च संशयः ।। | 3-276-24a 3-276-24b |
रावण उवाच। | 3-276-25x |
गन्धर्वदेवासुरतो यक्षराक्षसतस्तथा। सर्पकिंनरभूतेभ्यो न मे भूयात्पराभवः ।। | 3-276-25a 3-276-25b |
ब्रह्मोवाच। | 3-276-26x |
य एते कीर्तिताः सर्वे न तेभ्योस्ति भयं रतव। ऋते मनुष्याद्भद्रं ते तथा तद्विहितं मया ।। | 3-276-26a 3-276-26b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-276-27x |
एवमुक्तो दशग्रीवस्तुष्टः समभवत्तदा। अवमेने हि दुर्बुद्धिर्मनुष्यान्पुरुषादकः ।। | 3-276-27a 3-276-27b |
कुम्भकर्णमथोवाच तथैव प्रपितामहः। `वरं वृणीष्व भद्रं ते प्रीतोस्मीति पुनःपुनः'। स वव्रे महतीं निद्रां तमसा ग्रस्तचेतनः ।। | 3-276-28a 3-276-28b 3-276-28c |
तथाभविष्यतीत्युक्त्वा विभीषणमुवाच ह। वरं वृणीष्व पुत्र त्वं प्रीतोऽस्मीति पुनःपुनः ।। | 3-276-29a 3-276-29b |
विभीषण उवाच। | 3-276-29x |
परमापद्गतस्यापि नाधर्मे मे मतिर्भवेत्। अशिक्षितं च भगवन्ब्रह्मास्त्रं प्रतिभातु मे ।। | 3-276-30a 3-276-30b |
ब्रह्मोवाच। | 3-276-31x |
यस्माद्राक्षसयोनौ ते जातस्यामित्रकर्शन। नाधर्मे धीयते बुद्धिरमरत्वं ददानि ते ।। | 3-276-31a 3-276-31b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-276-32x |
राक्षसस्तु वरंलब्ध्वा दशग्रीवो विशांपते। लङ्कायाश्च्यावयामास युधि जित्वा धनेश्वरम् ।। | 3-276-32a 3-276-32b |
हित्वास भगवाँल्लङ्कामाविशद्गन्धमादनम्। गन्धर्वयक्षानुगतो रक्षःकिंपुरुषैः सह ।। | 3-276-33a 3-276-33b |
विमानं पुष्पकं तस्य जहाराक्रम्य रावणः। शशाप तं वैश्रवणो न त्वामेतद्वहिष्यति ।। | 3-276-34a 3-276-34b |
यस्तु त्वां समरे हन्ता तमेवैतद्वहिष्यति। अवमत्य गुरुं मां च क्षिप्रं त्वंनभविष्यसि ।। | 3-276-35a 3-276-35b |
विभीषणस्तु धर्मात्मा सतां मार्गमनुस्मरन्। अन्वगच्छन्महाराज श्रिया परमया युतः ।। | 3-276-36a 3-276-36b |
तस्मै स भगवांस्तुष्टो भ्राता भ्रात्रे धनेश्वरः। सैनापत्यं ददौ धीमान्यक्षराक्षससेनयोः ।। | 3-276-37a 3-276-37b |
राक्षसाः पुरुषादाश्च पिशाचाश्च महाबलाः। सर्वे समेत्य राजानमभ्यषिञ्चन्दशाननम् ।। | 3-276-38a 3-276-38b |
दशग्रीवश्चदैत्यानां दानवानां बलोत्कटः। आक्रम्य रत्नान्यहरत्कामरूपी विहंगम ।। | 3-276-39a 3-276-39b |
रावयामास लोकान्यत्तस्माद्रावण उच्यते। दशग्रीवः कामबलो देवानां भयमादधत् ।। | 3-276-40a 3-276-40b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि ,ट्सप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 276 ।। |
3-276-2 पितरं विश्रवसम्। राक्षसेक्श्वरः कुबेरो रक्षःपुरीनायकत्वात् ।। 3-276-5 पुष्पोत्कटा बलाका च इति ध. पाठः ।। 3-276-13 पित्रा विश्रवसा ।। 3-276-16 पञ्चदिक्षु चत्वार एकः सूर्य इतिपञ्चानामग्नीनां म्यगः पञ्चाग्निः ।। 3-276-17 विभीषणस्तपोऽतिष्ठदित्युत्तरेणान्वयः ।। 3-276-23 महदीप्सया श्रेष्ठपदापेक्षया ।। 3-276-35 रनभविष्यसि मरिष्यसि ।। 3-276-36 अन्वगच्छत् कुबेरमिति शेषः ।। 3-276-39 रत्नानि जातौ जातौ यदुत्कृष्टं तद्रत्नमभिधीयते। विहंगमः खेचरः ।। 3-276-40 रावयामास हिंसार्थस्य रुहो रूपमिदम् ।।
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