महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-278
← आरण्यकपर्व-277 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-278 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-279 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
रामेण स्वस्य यौवराज्याभिषेचनोद्युक्ते दशरथे मन्थराबोधितायाः कैकय्या वचनात्सीतालक्ष्मणाभ्यां सह वनगमनम् ।। 1 ।। तथा लक्ष्मणकरेण शूर्पणखावैरूप्यकरणपूर्वकं खरादिहननम् ।। 2 ।। ततः क्रुद्धेन रावणेन रामविप्रचिकीर्षया मारीचसमीपंप्रति गमनम् ।। 3 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 3-278-1x |
उक्तं भगवता जन्म रामादीनां पृथक्पृथक्। प्रस्थानकारणं ब्रह्मञ्श्रोतुमिच्छामि कथ्यताम् ।। | 3-278-1a 3-278-1b |
कथं दाशरथी वीरौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ। प्रस्तापितौ वने ब्रह्मन्मैथिली च यशस्विनी ।। | 3-278-2a 3-278-2b |
मार्कण्डेय उवाच। | 3-278-3x |
जातपुत्रो दशरथः प्रीतिमानभवन्नृप। क्रियारतिर्धर्मरतः सततं वृद्धसेविता ।। | 3-278-3a 3-278-3b |
क्रमेण चास्य ते पुत्रा व्यवर्धन्त महौजसः। वेदेषु सरहस्येषु धनुर्वेदेषु पारगाः ।। | 3-278-4a 3-278-4b |
चरितब्रह्मचर्यास्ते कृतदाराश्च पार्तिव। दृष्ट्वा रामं दशरथः प्रीतिमानभवत्सुखी ।। | 3-278-5a 3-278-5b |
ज्येष्ठो रामोऽभवत्तेषां रमयामास हि प्रजाः। मनोहरतया धीमान्पितुर्हृदयनन्दनः ।। | 3-278-6a 3-278-6b |
ततः स राजा मतिमान्मत्वाऽऽत्मानं वयोधिकम्। मन्त्रयामास सचिवैर्मन्त्रज्ञैश्च पुरोहितैः ।। | 3-278-7a 3-278-7b |
अभिषेकाय रामस्य यावैराज्येन भारत। प्राप्तकालं च ते सर्वे मेनिरे मन्त्रिसत्तमाः ।। | 3-278-8a 3-278-8b |
लोहिताक्षं महाबाहुं मत्तमातङ्गगामिनम्। कम्बुग्रीवं महोरस्कं नीलकुञ्चितमूर्धजम् ।। | 3-278-9a 3-278-9b |
दीप्यमानं श्रिया वीरं शक्रादनवरं बले। पारगं सर्वधर्माणां बृहस्पतिसमं मतौ ।। | 3-278-10a 3-278-10b |
सर्वानुरक्तप्रकृतिं सर्वविद्याविशारदम्। जितेन्द्रियममित्राणामपि दृष्टिमनोहरम् ।। | 3-278-11a 3-278-11b |
नियन्तारमसाधूनां गोप्तारं धर्मचारिणाम्। धृतिमन्तमनाधृष्यं जेतारमपराजितम् ।। | 3-278-12a 3-278-12b |
पुत्रं राजा दशरथः कौसल्यानन्दवर्धनम्। संदृश्यपरमां प्रीतिमगच्छत्कुलनन्दनम् ।। | 3-278-13a 3-278-13b |
चिन्तयंश्च महातेजा गुणान्रामस्य वीर्यवान्। अभ्यभाषत भद्रं ते प्रीयमाणः पुरोहितम् ।। | 3-278-14a 3-278-14b |
अद् पुष्यो निशि ब्रह्मन्पुण्यं योगमुपैष्यति। संभाराः संभ्रियन्तां मे रामश्चोपनिमन्त्र्यताम् ।। | 3-278-15a 3-278-15b |
`श्व एवपुष्यो भविता यत्ररामः सुतो मया। यौवराज्येऽभिषेक्तव्यः पौरेषु सहमन्त्रिभिः' ।। | 3-278-16a 3-278-16b |
इति तद्राजवचनं प्रतिश्रुत्याथ मन्थरा। कैकेयीमभिगम्येदं काले वचनमब्रवीत् ।। | 3-278-17a 3-278-17b |
अद्य कैकेयि दौर्भाग्यं राज्ञा ते ख्यापितं महत्। आशीविषस्त्वां संक्रुद्धश्छन्नो दशति दुर्भगे ।। | 3-278-18a 3-278-18b |
सुभगा खलु कौसल्या यस्याः पुत्रोऽभिषेक्ष्यते। कुतो हि तव सौभाग्यं यस्याः पुत्रो न राज्यभाक् ।। | 3-278-19a 3-278-19b |
सा तद्वचनमाज्ञाय सर्वाभरणभूषिता। वेदी विलग्नमध्येन बिभ्रती रूपमुत्तमम् ।। | 3-278-20a 3-278-20b |
वविक्ते पतिमासाद्य हसन्तीव शुचिस्मिता। राजानं तर्जयन्तीव मधुरं वाक्यमब्रवीत् ।। | 3-278-21a 3-278-21b |
सत्यप्रतिज्ञ यन्मे त्वं काममेकं विसृष्टवान्। उपाकुरुष्व तद्राजंस्तस्मान्मुञ्चस्व संकटात्। `तदद्य कुरु सत्यं मे वरं वरद भूपते' ।। | 3-278-22a 3-278-22b 3-278-22c |
राजोवाच। | 3-278-25x |
वरं ददानि ते हन्त तद्गृहाण यदिच्छसि। अवध्यो वध्यतां कोद्य वध्यः कोऽद्य विमुच्यतां ।। | 3-278-23a 3-278-23b |
धनं ददानि कस्याद् ह्रियतां कस्यरवापुनः। ब्राह्मणस्वादिहान्यत्रयत्किंचिद्वित्तमस्ति मे ।। | 3-278-24a 3-278-24b |
पृथिव्यां राजराजोस्मि चातुर्वर्ण्यस् रिता। यस्तेऽभिलपितः कामो ब्रूहि कल्याणि माचिरं ।। | 3-278-25a 3-278-25b |
सातद्वचनमाज्ञाय परिगृह्य नराधिपम्। आत्मनो बलमाज्ञाय तत एनमुवाच ह ।। | 3-278-26a 3-278-26b |
आभिषेचनिकं यत्ते रामार्थमुपकल्पितम्। भरतस्तदवाप्नोतु वनं गच्छतु राघवः ।। | 3-278-27a 3-278-27b |
`नव पञ्च च वर्षाणि दण्डकारण्यमाश्रितः। चीराजिनजटाधारी रामो भवतु तापसः' ।। | 3-278-28a 3-278-28b |
स तं राजा वरं श्रुत्वा विप्रियं दारुणोदयम्। दुःखार्तो भरतश्रेष्ठ न किंचिद्व्याजहार ह ।। | 3-278-29a 3-278-29b |
ततस्तथोक्तं पितरं रामो विज्ञाय वीर्यवान्। वनं प्रतस्थे धर्मात्मा राजा सत्यो भवत्विति ।। | 3-278-30a 3-278-30b |
तमन्वगच्छल्लक्ष्मीवान्धनुष्माँल्लक्ष्मणस्तदा। सीता च भार्या भद्रं ते वैदेही जनकात्मजा ।। | 3-278-31a 3-278-31b |
ततो वनं गतेरामे राजा दशरथस्तदा। समयुज्यत देहस्य कालपर्यायधर्मणा ।। | 3-278-32a 3-278-32b |
रामं तु गतमाज्ञाय राजानं च तथागतम्। अनार्या भरतं देवी कैकेयी वाक्यमब्रवीत् ।। | 3-278-33a 3-278-33b |
गतोदशरथः स्वर्गं वनस्थौ रामलक्ष्मणौ। गृहाण राज्यंविपुलं क्षेमं निहतकण्टकम् ।। | 3-278-34a 3-278-34b |
तामुवाच स धर्मात्मा नृशंसं बत ते कृतम्। पतिं हत्वाकुलं चेदमुत्साद्य धनलुब्धया ।। | 3-278-35a 3-278-35b |
अयशः पातयित्वा मे मूर्ध्नि त्वं कुलपांसने। सकामा भव मे मातरित्युक्त्वा प्ररुरोद ह ।। | 3-278-36a 3-278-36b |
स चारित्रं विशोध्याथ सर्वप्रकृतिसन्निधौ। अन्वयाद्धातरं रामं विनिवर्तनलालसः ।। | 3-278-37a 3-278-37b |
कौसल्यां च सुमित्रां च कैकेयीं च सुदुःखितः। अग्रे प्रस्थाप्य यानैः स शत्रुघ्नसहितो ययौ ।। | 3-278-38a 3-278-38b |
वसिष्ठवामदेवाभ्यां विप्रैश्चान्यैः सहस्रशः। पौरजानपदैः सार्धं रामानयनकाङ्क्षया ।। | 3-278-39a 3-278-39b |
ददर्श चित्रकूटस्थं स रामं सहलक्ष्मणम्। तापसानामलंकारं धारयन्तं धनुर्धरम् ।। | 3-278-40a 3-278-40b |
`उवाच प्राञ्जलिर्भूत्वाप्रणिपत्य रघूत्तमम्। शशंस मरणं राज्ञः सोऽनाथांश्चापि कोसलान् ।। | 3-278-41a 3-278-41b |
नाथ त्वं प्रतिपद्यस्व स्वराज्यमिति चोक्तवान् ।। | 3-278-42a |
स तस्य वचनं श्रुत्वा रामः परमदुःखितः। चकार देवकल्पस्य पितुः स्नात्वोदकक्रियाम् ।। | 3-278-43a 3-278-43b |
अब्रवीत्स तदारामो भ्रातरं भ्रातृवत्सलम्। पादुके मे भविष्येते राज्यगोप्त्र्यौ परंतप। एवमस्त्विति तं प्राह भरतः प्रणतस्तदा' ।। | 3-278-44a 3-278-44b 3-278-44c |
विसर्जितः स रामेण पितुर्वचनकारिणा। नन्दिग्रामेऽकरोद्राज्यं पुरस्कृत्यास्य पादुके ।। | 3-278-45a 3-278-45b |
रामस्तु पुनराशङ्क्य पौरजानपदागमम्। प्रविवेश महारण्यं शरभङ्गाश्रमं प्रति ।। | 3-278-46a 3-278-46b |
सत्कृत्य शरभङ्गं स दण्डकारण्यमाश्रितः। नदीं गोदावरीं रम्यामाश्रित्य न्यवसत्तदा ।। | 3-278-47a 3-278-47b |
वसतस्तस्य रामस्य ततः शूर्पणखाकृतम्। खरेणासीन्महद्वैरं जनस्थाननिवासिना ।। | 3-278-48a 3-278-48b |
रक्षार्थं तापसानां तु राघवो धर्मवत्सलः। चतुर्दशसहस्राणि जघान भुवि राक्षसान् ।। | 3-278-49a 3-278-49b |
दूषणं च स्वरं चैवनिहत्य सुमहाबलौ। चक्रे क्षेमं पुनर्धीमान्धर्मारण्यं स राघवः ।। | 3-278-50a 3-278-50b |
हतेषु तेषु रक्षःसु ततः शूर्पणखा पुनः। ययौ निकृत्तनासोष्ठी लङ्कां भ्रातुर्निवेशनम् ।। | 3-278-51a 3-278-51b |
ततो रावणमभ्येत्य राक्षसी दुःखमूर्च्छिता। पपात पादयोर्भ्रातुः संशुष्करुधिरानना ।। | 3-278-52a 3-278-52b |
तां तथा विकृतां दृष्ट्वा रावणः क्रोधमूर्च्छितः। उत्पपातासनात्क्रुद्धो दन्तैर्दन्तानुपस्पृशन् ।। | 3-278-53a 3-278-53b |
स्वानमात्यान्विसृज्याथ विविक्ते तामुवाच सः। केनास्येवं कृता भद्रे मामचिन्त्यावमत्य च ।। | 3-278-54a 3-278-54b |
कः शूलं तीक्ष्णमासाद्य सर्वगात्रेषु सेवते। कः शिरस्यग्निमाधाय विश्वस्तः स्वपते सुखम् ।। | 3-278-55a 3-278-55b |
आशीविषं घोरतरं पादेन स्पृशतीह कः। सिंहं केसरिणं मत्तः स्पृष्ट्वा दंष्ट्रासु तिष्ठति ।। | 3-278-56a 3-278-56b |
इत्येवं ब्रुवतस्तस्य नेत्रेभ्यस्तेजसोऽर्चिषः। निश्चेरुर्दह्यतो रात्रौ वृक्षस्येव स्वरन्ध्रतः ।। | 3-278-57a 3-278-57b |
तस्य तत्सर्वमाचख्यौ भगिनी रामविक्रमम्। खरदूषणसंयुक्तं राक्षसानां पराभवम् ।। | 3-278-58a 3-278-58b |
`ततो ज्ञातिवधं श्रुत्वा रावणः कालचोदितः। रामस्य वधमाकाङ्क्षन्मारीचं मनसागमत्' ।। | 3-278-59a 3-278-59b |
स निश्चित्यततः कृत्यं सागरं लवणाकरम्। ऊर्ध्वमाचक्रमे राजा विधाय नगरे विधिम् ।। | 3-278-60a 3-278-60b |
त्रिकूटं समतिक्रम्य कालपर्वतमेव च। ददर्श मकरावासं गम्भीरोदं महोदधिम् ।। | 3-278-61a 3-278-61b |
तमतीत्याथ गोकर्णमभ्यगच्छद्दशाननः। दयितं स्तानमव्यग्रं शूलपाणेर्महात्मनः ।। | 3-278-62a 3-278-62b |
तत्राभ्यगच्छन्मारीचं पूर्वामात्यं दशाननः। पुरा रामभयादेव तापसं प्रियजीवितम् ।। | 3-278-63a 3-278-63b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि अष्टसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 278 ।। |
3-278-6 रामपदंनिर्वक्ति ज्येष्ठ इति ।। 3-278-11 सर्वशः अनुरक्ताः प्रकृतयः प्रजा यस्मिंस्तं सर्वानुरक्तप्रकृतिम् ।। 3-278-14 भद्रं ते इति युधिष्ठिरं प्रति आशीर्वचनम्। पुरोहितं वसिष्ठम् ।। 3-278-15 अद्य पुण्या तिथिर्ब्रह्मन्पुष्ययोगमुपैष्यतीति ध. पाठः ।। 3-278-21 प्रणयं व्यञ्जयन्तीव इति झ. पाठः ।। 3-278-22 कामं वरं उपाकुरुष्व देहि। संकटात् कष्ठात् ।। 3-278-32 कालपर्यायधर्मणा मृत्युना ।। 3-278-33 आनाय्य भरतं देवी इति झ.पाठः ।। 3-278-37 चारित्र्यं विशोष्य इदं कैकेय्यैव कृतं नतु मयेति प्रदर्श्य ।। 3-278-56 सिंहं हिंस्रम्. केसरिणं सटावन्तं मृगराजम् ।। 3-278-57 तस्य स्रोतोभ्यइति झ. पाठः। स्रोतोभ्यश्चुरादिरन्ध्रेभ्यः। तेजसोर्चिषोऽग्नेर्ज्वालाः ।। 3-278-58 खरदूषणसंयुक्तं तत्पराभवसहितम् ।। 3-278-60 विधिं रक्षाम् ।।
आरण्यकपर्व-277 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-279 |