महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-088
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धौम्येन युधिष्ठिरंप्रत्युदीचीस्थतीर्थकथनम् ।। 1 ।।
धौम्य उवाच। | 3-88-1x |
उदीच्यां राजशार्दूल दिशि पुण्यानि यानि वै। तानि ते कीर्तयिष्यामि पुण्यान्यायतनानि च ।। | 3-88-1a 3-88-1b |
शृणुष्वावहितो भूत्वा मम मन्त्रयतः प्रभो। कथाप्रतिग्रहो वीर श्रद्धां जनयते शुभाम् ।। | 3-88-2a 3-88-2b |
सरस्वती महापुण्या ह्रदिनी तीर्थमालिनी। समुद्रगा महावेगा यमुना यत्र पाण्डव ।। | 3-88-3a 3-88-3b |
यत्र पुण्यतरं तीर्थं प्लक्षावतरणं शुभम्। यत्रसारस्वतैरिष्ट्वा गच्छन्त्यवभृथं द्विजाः ।। | 3-88-4a 3-88-4b |
पुण्यं चाख्यायते दिव्यं शिवमग्निशिरोऽनघ। सहदेवोऽयजद्यत्रशम्याक्षेपेण भारत ।। | 3-88-5a 3-88-5b |
एतस्मिन्नेव चार्थेऽसौ इन्द्रगीता युधिष्ठिर। गाथा चरति लोकेऽस्मिन्गीयमाना द्विजातिभिः ।। | 3-88-6a 3-88-6b |
अग्नयः सहदेवेन ये चिता यमुनामनु। ते तस्य कुरुशार्दूल सहस्रशतदक्षिणाः ।। | 3-88-7a 3-88-7b |
तत्रैव भरतो राजा चक्रवर्ती महायशाः। विंशतीं सप्त चाष्टौ च हयमेधानुपाहरत् ।। | 3-88-8a 3-88-8b |
कामकृद्यो द्विजातीनां श्रुतस्तात यथा पुरा। अत्यन्तमाश्रमः पुण्यः शरभङ्गस्य विश्रुतः ।। | 3-88-9a 3-88-9b |
सरस्वती नदी सद्भिः सततं पार्थ पूजिता। वालखिल्यैर्महाराज यत्रेष्टमृषिभिः पुरा ।। | 3-88-10a 3-88-10b |
दृषद्वती महापुण्या यत्र रख्याता युधिष्ठिर। न्यग्रोधाख्यस्तु पाञ्चाल्यः पाञ्चाल्योद्विपदांवर। दाल्भ्यघोषश्च दाल्भ्याश् धरणीस्थो महात्मनः ।। | 3-88-11a 3-88-11b 3-88-11c |
कौन्तेयानन्तयशसः सुव्रतस्यामितौजसः। आश्रमः ख्यायते पुण्यस्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ।। | 3-88-12a 3-88-12b |
एतावर्णाववर्णौ च विश्रुतौ मनुजाधिप। ईजाते क्रतुभिर्मुख्यैः पुण्यैर्भरतसत्तम ।। | 3-88-13a 3-88-13b |
समेत्य बहुशो देवाः सेन्द्राः सवरुणाः पुरा। विशाखयूपेऽतप्यन् तेन पुण्यतमश्च सः ।। | 3-88-14a 3-88-14b |
ऋषिर्महान्महाभागो जमदग्निर्महायशाः। पलाशकेषु पुण्येषु रम्येष्वयजत प्रभुः ।। | 3-88-15a 3-88-15b |
यत्रसर्वाः सरिच्छ्रेष्टाः साक्षात्तमृषिसत्तमम्। स्वं स्वं तोयमुपादाय परिवार्योपतस्थिरे ।। | 3-88-16a 3-88-16b |
अपि चात्र महाराज स्वयं विश्वावसुर्जगौ। इमं श्लोकं तदा वीर प्रेक्ष्य दीक्षां महात्मनः ।। | 3-88-17a 3-88-17b |
यजमानस्य वै देवाञ्जमदग्नेर्महात्मनः। आगम्य सरितो विप्रान्मधुना समतर्पयन् ।। | 3-88-18a 3-88-18b |
गन्धर्वयक्षरक्षोबिरप्सरोभिश्च सेवितम्। किरातकिन्नरावासं शैलं शिखरिणांवरम् ।। | 3-88-19a 3-88-19b |
बिभेद तरसा गङ्गा गङ्गाद्वारं युधिष्ठिर। पुण्यं तत्ख्यायते राजन्ब्रह्मर्षिगणसेवितम् ।। | 3-88-20a 3-88-20b |
सनत्कुमारः कौरव्य पुण्यं कनखलं तथा। पर्वतश्च पुरुर्नाम यत्रयातः पुरूरवाः ।। | 3-88-21a 3-88-21b |
भृगुर्यत्रतपस्तेपे महर्षिगणसेविते। राजन्स आश्रमः ख्यातो भृगुतुङ्गो महागिरिः ।। | 3-88-22a 3-88-22b |
यः स भूतं भविष्यच्च भवच् भरतर्षभ। नारायणः प्रभुर्विष्णुः शाश्वतः पुरुषोत्तमः ।। | 3-88-23a 3-88-23b |
तस्यातियशसः पुण्यां विशालां बदरीमनु। आश्रमः ख्यायते पुण्यस्त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ।। | 3-88-24a 3-88-24b |
उष्णतोयवहा गङ्गा शीततोयवहा पुरा। सुवर्णसिकता राजन्विशालां बदरीमनु ।। | 3-88-25a 3-88-25b |
ऋषयो यत्रदेवाश्च महाभागा महौजसः। प्राप्य नित्यं नमस्यन्ति देवं नारायणं प्रभुम् ।। | 3-88-26a 3-88-26b |
यत्रनाराजणो देवः परमात्मा सनातनः। तत्र कृत्स्नं जगत्सर्वं तीर्थान्यायतनानि च ।। | 3-88-27a 3-88-27b |
तत्पुण्यं परमं ब्रह्म तत्तीर्थं त्तपोवनम्। तत्परं परमं देवं भूतानां परमेश्वरम् ।। | 3-88-28a 3-88-28b |
शाश्वतं परमं चैव धातारं परमं पदम्। यं विदित्वान शोचन्ति विद्वांसः शास्त्रदृष्टयः ।। | 3-88-29a 3-88-29b |
तत्र देवर्षयः सिद्धाः सर्वे चैव तपोधनाः। आदिदेवो महायोगी यत्रास्ते मधुसूदनः ।। | 3-88-30a 3-88-30b |
पुण्यानामपि तत्पुण्यमत्र ते संशयेस्तु मा। एतानि राजन्पुण्यानि पृथिव्यां पृथिवीपते। कीर्तितानि नरश्रेष्ठ तीर्थान्यायतनानि च ।। | 3-88-31a 3-88-31b 3-88-31c |
एतानि वसुभिः साध्यैरादित्यैर्मरुदश्विभिः। ऋषिभिर्देवकल्पैश्च सेवितानि महात्मभिः ।। | 3-88-32a 3-88-32b |
चरन्नेतानि कौन्तेय सहितो ब्राह्मणर्षभैः। भ्रातृभिश्च महाभागैरुत्कण्ठां विजयिष्यसि ।। | 3-88-33a 3-88-33b |
3-88-7 शतं शतसहस्राणि सहस्रशतदक्षिणाः इति क. ध. पाठः ।। 3-88-9 शंकरस्तत्रविश्रुत इति क. ध. पाठः ।। 3-88-13 एता कृष्णमृगी तद्वर्णै कृष्णौ नरनारायणावित्यर्थः। वस्तुतस्त्ववर्णौ वर्णाः लोहितशुक्लकृष्णाः रजःसत्वतमांसि तद्रहितौ। तत्र वैवर्ण्यवर्ण्यौ चेति क. ध. पाठः ।। 3-88-23 प्रभुर्जिष्णुरिति क. पाठः ।। 3-88-24 विशालां नामतः। बदरीमनु बदरीसमीपे ।।
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