महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-082
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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पुलस्त्येन भीष्मंप्रति नानातीर्थमाहात्म्यकथनम् ।। 1 ।।
पुलस्त्य उवाच। | 3-82-1x |
ततो गच्छेन्महाराज धर्मतीर्थमनुत्तमम्। [यत्र धर्मो महाभागस्तप्तवानुत्तमं तपः ।। तेन तीर्थं कृतंपुण्यं स्वेन नाम्ना च विश्रुतम् ।।] | 3-82-1a 3-82-1b 3-82-1c |
तत्रस्नात्वा नरो राजन्धर्मशील समाहितः। आसप्तमं कुलं चैव पुनीते नात्र संशयः ।। | 3-82-2a 3-82-2b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र ज्ञानपावनमुत्तमम्। अग्निष्टोममवाप्नोति मुनिलोकं च गच्छति ।। | 3-82-3a 3-82-3b |
सौगन्धिकवनं राजंस्ततो गच्छेत मानवः। तत्रब्रह्मादयो देवा ऋषयश्च तपोधनाः ।। | 3-82-4a 3-82-4b |
सिद्धचारणगन्धर्वाः किन्नराश्च महोरगाः। कतद्वनं प्रविशन्नेव सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। | 3-82-5a 3-82-5b |
ततश्चापि सरिचच्छ्रेष्ठा नदीनामुत्तमा नदी। प्लक्षा देवी स्मृता राजन्पुण्या देवी सरस्वती ।। | 3-82-6a 3-82-6b |
तत्राभिषेकं कुर्वीत वल्मीकान्निः सृतेजले। अर्चयित्वा पितॄन्देवानश्वमेधफलं लभेत् ।। | 3-82-7a 3-82-7b |
कवेराध्युषितं नाम तत्र तीर्थं सुदुर्लभम्। पट्सु शम्यानिपातेषु वल्मीकादिति निश्चयः ।। | 3-82-8a 3-82-8b |
कपिलानां सहस्रं च वाजिमेधं च विन्दति। तत्र स्नात्वा नरव्याघ्र दृष्टमेतत्पुरातने ।। | 3-82-9a 3-82-9b |
सुगन्धां शतकुम्भां च पञ्चयक्षां च भारत। अभिगम्य नरश्रेष्ठ स्वर्गलोके महीयते ।। | 3-82-10a 3-82-10b |
त्रिशूलखातं तत्रैव तीर्थमासाद्य भारत। तत्राभिषेकं कुर्वीत पितृदेवार्चने रतः। गाणपत्यं च लभते देहं त्यक्त्वा न संशयः ।। | 3-82-11a 3-82-11b 3-82-11c |
ततो गच्छेत राजेन्द्र देव्याः स्थानं सुदुर्लभम्। शाकम्भरीति विख्याता त्रिषु लोकेषु विश्रुता ।। | 3-82-12a 3-82-12b |
दिव्यं वर्षसहस्रं हि शाकेन किल सुव्रता। आहारं सा कृतवती मासिमासि नराधिप ।। | 3-82-13a 3-82-13b |
ऋषयोऽभ्यागतास्तत्रदेव्या भक्त्या तपोधनाः। आतिथ्यं च कृतं तेषां शाकेन किल भारत। ततः शाकम्भरीत्येव नाम तस्याः प्रतिष्ठितम् ।। | 3-82-14a 3-82-14b 3-82-14c |
शाकम्भरीं समासाद्य ब्रह्मचारी समाहितः। त्रिरात्रमुषितः शाकं भक्षयित्वा नरः शुचिः ।। | 3-82-15a 3-82-15b |
शाकाहारस्य यत्किंचिद्वर्षैर्द्वादशभिः कृतम्। तत्फलं तस्य भवति देव्याश्छन्देन भारत ।। | 3-82-16a 3-82-16b |
ततो गच्छेत्सुवर्णाख्यं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। तत्र विष्णुः प्रसादार्थं रुद्रकमाराधयत्पुरा ।। | 3-82-17a 3-82-17b |
वरांश्च सुबर्हूल्लेभे दैवतेषु सुदुर्लभान्। उक्तश्च त्रिपुरघ्नेन परितुष्टेन भारत ।। | 3-82-18a 3-82-18b |
अपिच त्वं प्रियतरो लोके कृष्ण भविष्यसि। त्वन्मुखं च जगत्सर्वं भविष्ति न संशयः ।। | 3-82-19a 3-82-19b |
तत्राभिगम्य राजेन्द्र पूजयित्वा वृषध्वजम्। अश्वमेधमवाप्नोति गाणपत्यं च विन्दति ।। | 3-82-20a 3-82-20b |
धूमावतीं ततो गच्छेत्रिरात्रोपोषितो नरः। मनसा प्रार्थितान्कार्माल्लभते नात्र संशयः ।। | 3-82-21a 3-82-21b |
देव्यास्तु दक्षिणार्धेन रथावर्तो नराधिप। तत्रारोहेत धर्मज्ञ श्रद्दधानो जितेन्द्रियः। महादेवप्रसादाद्धि गच्छेत परमां गतिम् ।। | 3-82-22a 3-82-22b 3-82-22c |
प्रदक्षिणमुपावृत्य गच्छेत भरतर्षभ। धारां नाम महाप्रात्र सर्वपापप्रमोचनीम् ।। | 3-82-23a 3-82-23b |
तत्र स्नात्वा नरव्याघ्र न शोचति नराधिप। ततो गच्छेत धर्मज्ञ नमस्कृत् महागिरिम् ।। | 3-82-24a 3-82-24b |
`अशीतियोजनशतं पुष्करं स्वर्गमुच्यते। अशीतिं धर्मपृष्ठात्तु प्रवदन्ति मनीषिणः ।। | 3-82-25a 3-82-25b |
षष्टिं प्रयागाद्राजेन्द्र कुरुक्षेत्रात्तु द्वादश। संयुक्तमेव राजेन्द्र गङ्गाद्वारं त्रिविष्टपम्' ।। | 3-82-26a 3-82-26b |
स्वर्गद्वारेण यत्तुल्यं गङ्गाद्वारं न संशयः। तत्राभिषेकं कुर्वीत कोटितीर्थे समाहितः ।। | 3-82-27a 3-82-27b |
पौण्डरीकमवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत्। उष्यैकां रजनीं तत्र गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-28a 3-82-28b |
सप्तगङ्गे त्रिगङ्गे च शक्रावर्ते च तर्पयन्। देवान्पितॄंश्च विधिवत्पुण्ये लोके महीयते ।। | 3-82-29a 3-82-29b |
ततः कनस्वले स्नात्वा त्रिरात्रोपोषितो नरः। अश्वमेधमवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।। | 3-82-30a 3-82-30b |
कपिलावटं ततो गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप। उपोष्य रजनीं तत्र गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-31a 3-82-31b |
नागराजस्य राजेन्द्र कपिलस्य महात्मनः। तीर्थं कुरुवरश्रेष्ठ सर्वलोकेषु विश्रुतम् ।। | 3-82-32a 3-82-32b |
तत्राभिषेकं कुर्वीत नागतीर्थे नराधिप। कपिलानां सहस्रस्य फलं विन्दति मानवः ।। | 3-82-33a 3-82-33b |
ततो ललितकं गच्छेच्छन्तनोस्तीर्थमुत्तमम्। तत्र स्नात्वा नरो राजन्न दुर्गतिमवाप्नुयात् ।। | 3-82-34a 3-82-34b |
गङ्गायमुनयोर्मध्ये स्नाति यः संगमे नरः। दशाश्वमेधानाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-35a 3-82-35b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र सुगन्धं लोकविथुतम्। सर्वपापविशुद्धात्मा ब्रह्मलोके महीयते ।। | 3-82-36a 3-82-36b |
रुद्रावर्तं ततो गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप। तत्रस्नात्वा नरो राजन्स्वर्गलोके च गच्छति ।। | 3-82-37a 3-82-37b |
गङ्गायाश्च नरश्रेष्ठ सरस्वत्याश्च संगमे। स्नात्वाऽश्वमेधं प्राप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।। | 3-82-38a 3-82-38b |
भद्रकर्णएश्वरं गत्वा देवमर्च्य यथाविधि। न दुर्गतिमवाप्नोति नाकपृष्ठे च पूज्यते ।। | 3-82-39a 3-82-39b |
तत कुब्जावतीं गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप। रगोसहस्रमवाप्नोति स्वर्गलोकं च नच्छति ।। | 3-82-40a 3-82-40b |
अरुन्धतीवटं गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप। सामुद्रकमुपस्पृश्य ब्रह्मचारी समाहितः ।। | 3-82-41a 3-82-41b |
अश्वमेधमवाप्नोति त्रिरात्रोपोषितो नरः। गोसहस्रफलं विद्यात्कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-42a 3-82-42b |
कब्र्हमावर्तं ततो गच्छेद्ब्रह्मचारी समाहितः। अश्वमेधमवाप्नोति सोमलोकं च गच्छति ।। | 3-82-43a 3-82-43b |
यमुनाप्रभवं गत्वा समुपस्पृश्य यामुनम्। अश्वमेधफंल लब्ध्वा स्वर्गलोके महीयते ।। | 3-82-44a 3-82-44b |
दर्वीसंक्रमणं प्राप्य तीर्थं त्रैलोक्यपूजितम्। अश्वमेधमवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।। | 3-82-45a 3-82-45b |
सिन्धोश्च प्रभवं गत्वा सिद्धगन्धर्वसेवितम्। तत्रोष्य रजनीः पञ्च विन्देद्बहु सुवर्णकम् ।। | 3-82-46a 3-82-46b |
अथ वेदीं समासाद्य नरः परमदुर्गमाम्। अश्वमेधमवाप्नोति गच्छेदौशनसीं गतिम् ।। | 3-82-47a 3-82-47b |
ऋषिकुल्यां समासाद्य वासिष्ठं चैवभारत। वासिष्ठीं समतिक्रम्य सर्वे वर्णा द्विजातयः ।। | 3-82-48a 3-82-48b |
ऋषिकुल्यां समासाद्य नरः स्नात्वा विकल्मषः। देवान्पितॄंश्चार्चयित्वा ऋषिलोकं प्रपद्यते ।। | 3-82-49a 3-82-49b |
यदि तत्रवसेन्मासं शाकाहारो नराधिप। `द्वादशाहस्य यज्ञस्य फलं स लभते नरः' ।। | 3-82-50a 3-82-50b |
भृगुतुङ्गं समासाद्य वाजिमेधफलं लभेत्। गत्वा वीरप्रमोक्षं च सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। | 3-82-51a 3-82-51b |
कृत्तिकामघयोश्चैव तीर्थमासाद्य भारत। अग्निष्टोमातिरात्राभ्यां फलमाप्नोति मानवः ।। | 3-82-52a 3-82-52b |
तत्र संध्यां समासाद्य विद्यातीर्थमनुत्तमम्। उपस्पृश्य च वै विद्यां यत्र तत्रोपपद्यते ।। | 3-82-53a 3-82-53b |
महाश्रमे वसेद्रात्रिं सर्वपापप्रमोचने। एककालं निराहारो लोकानावसते शुभान् ।। | 3-82-54a 3-82-54b |
षष्ठाकालोपवासेन मासमुष्य महालये। सर्वपापविशुद्दात्मा विन्देद्बहु सुवर्णकम्। दशापरान्दशपूर्वान्नरानुद्धरते कुलम् ।। | 3-82-55a 3-82-55b 3-82-55c |
अथ वेतसिकां गत्वा पितामहनिषेविताम्। अश्वमेधमवाप्नोति गच्छेदौशनसीं गतिम् ।। | 3-82-56a 3-82-56b |
अथ सुन्दरिकातीर्थं प्राप्य सिद्धनिषेवितम्। रूपस्य भागी भवति दृष्टमेतत्पुरातनैः ।। | 3-82-57a 3-82-57b |
ततो वै ब्राह्मणं गत्वा ब्रह्मचारी जितेन्द्रियः। पद्मवर्णेन यानेन ब्रह्मलोकं प्रपद्यते ।। | 3-82-58a 3-82-58b |
ततस्तु नैमिषं गच्छेत्पुण्यं सिद्धनिषेवितम्। तत्र नित्यं निवसति ब्रह्मा देवगणैः सह ।। | 3-82-59a 3-82-59b |
नैमिषं मृगयाणस् पापस्यार्धं प्रणश्यति। प्रविष्टमात्रस्तु नरः सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। | 3-82-60a 3-82-60b |
तत्र मासं वसेद्धीरो नैमिषे तीर्थतत्परः। पृथिव्यां यानि तीर्थानि तानि तीर्थानि नैंमिषे ।। | 3-82-61a 3-82-61b |
कृताभिषेकस्तत्रैव नियतो नियताशनः। गवां मेधस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोति भारत। पुनात्यासप्तमं चैव कुलं भरतसत्तम ।। | 3-82-62a 3-82-62b 3-82-62c |
यस्त्यजेन्नैमिषे प्राणानुपवासपरायणः। स मोदेत्सर्वलोकेषु एवमाहुर्मनीषिणः ।। | 3-82-63a 3-82-63b |
नित्यं मेध्यं च पुण्यं च नैमिषं नृपसत्तम ।। | 3-82-64a |
गङ्गोद्भेदं समासाद्य त्रिरात्रोपोषितो नरः। वाजपेयमवाप्नोति ब्रह्मभूतो भवेत्सदा ।। | 3-82-65a 3-82-65b |
सरस्वतीं समासाद्य तर्पयेत्पितृदेवताः। सारस्वतेषु लोकेषु मोदते नात्र संशयः ।। | 3-82-66a 3-82-66b |
ततश्च बाहुदां गच्छेद्ब्रह्मचारी समाहितः। तत्रोष्य रजनीमेकां स्वर्गलोके महीयते। देवसत्रस्य यज्ञस्य फलंप्राप्नोति कौरव ।। | 3-82-67a 3-82-67b 3-82-67c |
ततः क्षीरवतीं गच्छेत्पुण्यां पुण्यतरैर्वृताम्। पितृदेवार्चनपरो वाजपेयमवाप्नुयात् ।। | 3-82-68a 3-82-68b |
विमलाशोकमासाद्य ब्र्हमचारी समाहितः। तत्रोष्य रजनीमेकां स्वर्गलोके महीयते ।। | 3-82-69a 3-82-69b |
गोप्रतारं ततो गच्छेत्सरय्वास्तीर्थमुत्तमम्। यत्र रामो गतः स्वर्गं सभृत्यबलवाहनः। देहं त्यक्त्वा महाराज तस्य तीर्थस्य तेजसा ।। | 3-82-70a 3-82-70b 3-82-70c |
रामस्य च प्रसादेन व्यवसायाच्च भारत। तस्मिंस्तीर्थे नरः स्नात्वा गोप्रतारे नराधिप। सर्वपापविशुद्धात्मा स्वर्गलोके महीयते ।। | 3-82-71a 3-82-71b 3-82-71c |
रामतीर्थे नरः स्नात्वा गोमत्यां कुरुनन्दन। अश्वमेधमवाप्नोति पुनाति च कुलं नरः ।। | 3-82-72a 3-82-72b |
शतसाहस्रकं तीर्थं तत्रैव भरतर्षभ ।। | 3-82-73a |
तत्रोपस्पर्शनं कृत्वा नियतो नियताशनः। गोसहस्रफलं पुण्यं प्राप्नोति भरतर्षभ ।। | 3-82-74a 3-82-74b |
रततो गच्छेत राजेनद्र भर्तृस्थानमनुत्तमम्। अश्वमेधस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोति मानवः ।। | 3-82-75a 3-82-75b |
कोटितीर्थे नरः स्नात्वा अर्चयित्वा गुहं नृप। गोसहस्रफंल विद्यात्तेजस्वी च भवेन्नरः ।। | 3-82-76a 3-82-76b |
ततो वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा नृषध्वजम्। कपिलाह्रदे नरः स्नात्वाराजसूयमवाप्नुयात् ।। | 3-82-77a 3-82-77b |
अविमुक्तं समासाद्य तीर्थसेवी कुरूद्वह। दर्शनाद्देवदेवस्य मुच्यते ब्रह्महत्यया ।। | 3-82-78a 3-82-78b |
प्राणानुत्सृज्यतत्रैव मोक्षं प्राप्नोति मानवः। मार्कण्डेयस्य राजेन्द्र तीर्थमासाद्य दुर्लभम् ।। | 3-82-79a 3-82-79b |
गोमतीगङ्गयोश्चैव संगमे लोकविश्रुते। अग्निष्टोममवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-80a 3-82-80b |
ततो गयां समासाद्य ब्रह्मचारी समाहितः। अश्वमेधमवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-81a 3-82-81b |
तत्राक्षयवटो नाम त्रिषु लोकेषु विश्रुतः। तत्र दत्तं पितृभ्यस्तु भवत्यक्षयमुच्यते ।। | 3-82-82a 3-82-82b |
महानद्यामुपस्पृश्य तर्पयेत्पितृदेवताः। अक्षयान्प्राप्नुयाल्लोकान्कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-83a 3-82-83b |
ततो ब्रह्मसरो गत्वा धर्मारण्योपशोभितम्। ब्रह्मलोकमवाप्नोति प्रभातामेव शर्वरीम् ।। | 3-82-84a 3-82-84b |
ब्रह्मणा तत्र सरसि यूपश्रेष्ठः समुच्छ्रितः। यूपं प्रदक्षिणीकृत्य वाजपेयफलं लभेत् ।। | 3-82-85a 3-82-85b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र धेनुकं लोकविश्रुतम्। एकरात्रोषितो राजन्प्रयच्छेत्तिलधेनुकाम् ।। | 3-82-86a 3-82-86b |
सर्वपापविशुद्धात्मा सोमलोकं ब्रजेद्भुवम्। तत्र चिह्निं महद्राजन्नद्यापि सुमहद्भृशम् ।। | 3-82-87a 3-82-87b |
कपिलायाः सवत्सायाश्चरन्त्याः पर्वते कृतम्। सवत्सायाः पदानि स्म दृश्यन्तेऽद्यापि भारत ।। | 3-82-88a 3-82-88b |
तेषूपस्पृश्य राजेन्द्रपदेषु नृपसत्तम। यत्कंचिदशुभं कर्म तत्प्रणश्यति भारत ।। | 3-82-89a 3-82-89b |
ततो गृध्रवटं गच्छेत्स्थानं देवस्य धीमतः। स्नायीत भस्मना तत्र अभिगम्य वृषध्वजम् ।। | 3-82-90a 3-82-90b |
ब्राह्मणेन भवेच्चीर्णं व्रतं द्वादशवार्षिकम्। इतरेषां तु वर्णानां सर्वपापं प्रणश्यति ।। | 3-82-91a 3-82-91b |
उद्यन्तं च ततो गच्छेत्पर्वतं गीतनादितम्। सावित्र्यास्तु पदं तत्र दृश्यते भरतर्षभ ।। | 3-82-92a 3-82-92b |
तत्रसंध्यामुपासीत ब्राह्मणः संशितव्रतः। उपासिता भवेत्संध्या तेन द्वादशवार्षिकी ।। | 3-82-93a 3-82-93b |
योनिद्वारं च तत्रैव विश्रुतं भरतर्षभ। तत्राभिगम्य मुच्येत पुरुषो योनिसंकरात् ।। | 3-82-94a 3-82-94b |
कृष्णशुक्लावुभौ पक्षौ गयायां यो वसेन्नरः। पुनात्यासप्तमं राजन्कुलं नास्त्यत्र संशयः ।। | 3-82-95a 3-82-95b |
एष्टव्या बहवः पुत्रा यद्येकोपि गयां व्रजेत्। गौरीं वा वरयेत्कन्यां नीलं वा वृषमुत्सृजेत् ।। | 3-82-96a 3-82-96b |
ततः फल्गुं व्रजेद्राजंस्तीर्थसेवी नराधिप। अश्वमेधमवाप्नोति सिद्धिं च महतीं व्रजेत् ।। | 3-82-97a 3-82-97b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र धर्मप्रस्थं समाहितः। तत्र धर्मो महाराज नित्यमास्ते युधिष्ठिर ।। | 3-82-98a 3-82-98b |
तत्र कूपोदकं कृत्वा तेन स्नातः शुचिस्तथा। पितॄन्देवांस्तु संतर्प्य मुक्तपापो दिवं व्रजेत् ।। | 3-82-99a 3-82-99b |
मतङ्गस्याश्रमस्तत्रमहर्षेर्भावितात्मनः ।। | 3-82-100a |
तं प्रविश्याश्रमं श्रीमच्छ्रमशोकविनाशनम्। गवामयनयज्ञस्य फलंप्राप्नोति मानवः ।। | 3-82-101a 3-82-101b |
धर्मं तत्राभिसंस्पृश्य वाजिमेधमवाप्नुयात् ।। | 3-82-102a |
ततो गच्छेत राजेन्द्र ब्रह्मस्थानमनुत्तमम्। तत्राभिगम्य राजेन्द्र ब्रह्माणं पुरुषर्षभ। राजसूयाश्वमेधाभ्यां फलं विन्दति मानवः ।। | 3-82-103a 3-82-103b 3-82-103c |
ततो राजगृहं गच्छेत्तीर्थसेवी नराधिप। उपस्पृश्य ततस्तत्रकक्षीवानिव मोदते ।। | 3-82-104a 3-82-104b |
यक्षिण्या नैत्यकं तत्र प्राश्नीन पुरुषः शुचिः। यक्षिण्यास्तु प्रसादेन मुच्यते ब्र्हमहत्यया ।। | 3-82-105a 3-82-105b |
मणइनागं ततो गत्वा गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-106a |
तैर्थिकं भुञ्जते यस्तु मणिनागस् भारत। दष्टस्याशीविषेणापि न तस्य क्रमते विपम् ।। | 3-82-107a 3-82-107b |
तत्रोष् रजनीभेकां गोसहस्रफंल लभेत्। ततो गच्छेत ब्रह्मर्पेर्गौतमस्य वनं प्रियम् ।। | 3-82-108a 3-82-108b |
अहल्याया ह्रदे स्नात्वा व्रजेत परमां गतिम्। अभिगम्याश्रमं राजन्विनद्ते श्रियमात्मनः ।। | 3-82-109a 3-82-109b |
तत्रोदपानं धर्मज्ञ त्रिपु लोकेषु विश्रुतम्। तत्राभिषेकं कृत्वा तु वाजिमेधमवाप्नुयात् ।। | 3-82-110a 3-82-110b |
जनकस् तु राजर्षेः कूपस्त्रिदशपूजितः। तत्राभिषेकं कृत्वा तु विष्णुलोकमवाप्नुयात् ।। | 3-82-111a 3-82-111b |
ततो विनशनं गच्छेत्सर्वपापप्रमोचनम्। वाजपेयमवाप्नोति सोमलोकं च गच्छति ।। | 3-82-112a 3-82-112b |
गण्डकीं तु समासाद्य सर्वतीर्थजलोद्भवाम्। वाजपेयमवाप्नोति सूर्यलोकं च गच्छति ।। | 3-82-113a 3-82-113b |
कततो विशल्यामासाद्य नदीं त्रैलोक्यविश्रुताम्। अग्निष्टोममवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।। | 3-82-114a 3-82-114b |
ततोऽधिवङ्गं धर्मज्ञ समाविश्य ततो वनम्। गुह्यकेषु महाराज मोदते नात्र संशयः ।। | 3-82-115a 3-82-115b |
कम्पनां तु समासद्य नदीं सिद्धनिवेषिताम्। पुण्डरीकमवाप्नोति स्वर्गलोकं च गच्छति ।। | 3-82-116a 3-82-116b |
अथ माहेश्वरीं धारां समासाद्य धराधिप। अश्वमेधमवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-117a 3-82-117b |
दिवौकसां पुष्करिणीं समासाद्य नराधिप। न दुर्गतिमवाप्नोति वाजिमेधं च विन्दति ।। | 3-82-118a 3-82-118b |
अथ सोमपदं गच्छेद्ब्रह्मचारी समाहितः। माहेश्वरपदे स्नात्वा वाजिमेधफलं लभेत् ।। | 3-82-119a 3-82-119b |
तत्रकोटी तु तीर्थानां विश्रुता भरतर्षभ। कूर्मरूपेण राजेन्द्र ह्यसुरेण दुरात्मना ।। | 3-82-120a 3-82-120b |
ह्रियमाणा हृता राजन्विष्णुना प्रभविष्णुना। तत्राभिषेकं कुर्वीत तीर्थकोट्यां युधिष्ठिर ।। | 3-82-121a 3-82-121b |
पुण्डरीकमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति। ततो गच्छेत राजेन्द्रस्थानं नारायणस्य च ।। | 3-82-122a 3-82-122b |
सदा सन्निहितो यत्रविष्णुर्वसति भारत। यत्रब्रह्मादयो देवा ऋषयश्च तपोधनाः ।। | 3-82-123a 3-82-123b |
आदित्या वसवो रुद्रा जनार्दनमुपासते। शालग्राम इति ख्यातो विष्णुरद्भुतकर्मकः ।। | 3-82-124a 3-82-124b |
अभिगम्य त्रिलोकेशं वरदं विष्णुमव्ययम्। अश्वमेधमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति ।। | 3-82-125a 3-82-125b |
तत्रोपदानं धर्मज्ञ सर्वपापप्रमोचनम्। समुद्रास्तत्रचत्वारः कूपे संनिहिताः सदा। तत्रोपस्पृश् राजेन्द्र न दुर्गतिमवाप्नुयात् ।। | 3-82-126a 3-82-126b 3-82-126c |
अभिगम्य त्रिलोकेशं वरदं विष्णुमव्ययम्। विराजति यथासोमो मेघैर्मुक्तो नराधिप ।। | 3-82-127a 3-82-127b |
जातिस्मरमुपस्पृश्य शुचिः प्रयतमानसः। जातिस्मरत्वमाप्नोति स्नात्वा तत्र न संशयः ।। | 3-82-128a 3-82-128b |
वदेश्वरपुरं गत्वा अर्चयित्वा तु केशवम्। ईप्सिताँल्लभते कामानुपवासान्न संशयः ।। | 3-82-129a 3-82-129b |
ततस्तु वामनं गत्वा सर्वपापप्रमोचनम्। अभिगम्य हरिं देवं न दुर्गतिमवाप्नुयात् ।। | 3-82-130a 3-82-130b |
भरतस्याश्रमं गच्छेत्सर्वपापप्रमोचनम् ।। | 3-82-131a |
कौशिकीं तत्र गच्छेत महापापप्रणाशिनीम्। राजसूयस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोति मानवः ।। | 3-82-132a 3-82-132b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र चम्पकारण्यमुत्तमम्। तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-133a 3-82-133b |
अथ जेष्ठिलमासाद्य तीर्धं परमदुर्लभम्। तत्रोष्य रजनीमेकां गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-134a 3-82-134b |
तत्र विश्वेश्वरं दृष्ट्वा देव्या सह महाद्युतिम्। मित्रावरुणयोर्लोकानाप्नोति पुरुषर्षभ। त्रिरात्रोपोषितस्तत्रअग्निष्टोमफलं लभेत् ।। | 3-82-135a 3-82-135b 3-82-135c |
कन्यासंवेद्यमासाद्य नियतो नयिताशनः। मनोः प्रजापतेर्लोकानाप्नोति पुरुषर्षभ ।। | 3-82-136a 3-82-136b |
कन्यायां ये प्रयच्छन्ति दानमण्वपि भारत। तदक्षय्यमिति प्राहुर्ऋषयः संशितव्रताः ।। | 3-82-137a 3-82-137b |
ततो निर्वीरमासाद्य त्रिपु लोकेपु विश्रुतम्। अश्वमेधमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति ।। | 3-82-138a 3-82-138b |
ये त्विन्धनं प्रयच्छन्ति निर्वीरासंगमे नराः। ते यान्ति नरशार्दूल शक्रलोकमनामयम् ।। | 3-82-139a 3-82-139b |
तत्राश्रमो वसिष्ठस् त्रिषु लोकेषु विश्रुतः। तत्राभिषेकं कुर्वाणो वाजपेयमवाप्नुयात् ।। | 3-82-140a 3-82-140b |
देवकूटं समासाद्य ब्रह्मर्षिगणसेवितम्। अश्वमेधमवाप्नोति कुलं चैव समुद्धरेत् ।। | 3-82-141a 3-82-141b |
ततो गच्छेत राजेन्द्र कौशिकस्य मुनेर्ह्रदम्। यत्र सिद्धिं परां प्राप्तो विश्वामित्रोथ कौशिकः ।। | 3-82-142a 3-82-142b |
तत्र मासं वसेद्वीर कौशिक्यां भरतर्षभ। अश्वमेधस्य यत्पुण्यं तन्मासेनाधिगच्छति ।। | 3-82-143a 3-82-143b |
सर्वतीर्थवरे चैव यो वसेत महाह्रदे। न दुर्गतिमवाप्नोति विन्द्याद्बहु सुवर्णकम् ।। | 3-82-144a 3-82-144b |
कुमारमभिगम्याथ वीराश्रमनिवासिनम्। अश्वमेधमवाप्नोति नरो नास्त्यत्र संशयः ।। | 3-82-145a 3-82-145b |
अग्निधारां समासाद्य त्रिषु लोकेषु विश्रुताम्। तत्राभिषेकं कुर्वाणो ह्यग्निष्टोममवाप्नुयात् ।। | 3-82-146a 3-82-146b |
अभिगम्य महादेवं वरदं विष्णुमव्ययम्। पितामहसरो गत्वा शैलराजसमीपतः। तत्राभिषेकं कुर्वाणो ह्यग्निष्टोममवाप्नुयात् ।। | 3-82-147a 3-82-147b 3-82-147c |
पितामहस्य सरसः प्रस्रुता लोकपावनी। कुमारधारा तत्रैव त्रिषु लोकेषु विश्रुता ।। | 3-82-148a 3-82-148b |
यत्रस्नात्वा कृतार्थोस्मीत्यात्मानमवगच्छति। षष्ठकालोपवासेन मुच्यते ब्रह्महत्यया ।। | 3-82-149a 3-82-149b |
ततो गच्छेत धर्मज्ञ तीर्थसेवनतत्परः। शिखरं वै महादेव्या गौर्यास्त्रैलोक्यविश्रुतम् ।। | 3-82-150a 3-82-150b |
समारुह्य नरश्रेष्ठ स्तनकुण्डेषु संविशेत्। स्तनकुण्डमुपस्पृश्य वाजपेयफलं लभेत् ।। | 3-82-151a 3-82-151b |
तत्राभिषेकं कुर्वाणः पितृदेवार्चने रतः। हयमेधमवाप्नोति शक्रलोकं च गच्छति ।। | 3-82-152a 3-82-152b |
ताम्रारुणं समासाद्य ब्रह्मचारी समाहितः। अश्वमेमवाप्नोति ब्रह्मलोकं च गच्छति ।। | 3-82-153a 3-82-153b |
नन्दिन्यां च समासाद्य कूपं देवनिषेवितम्। नरमेधस् यत्पुण्यं तदाप्तोति नराधिप ।। | 3-82-154a 3-82-154b |
कालिकासंगमे स्नात्वा कौशिक्यरुणयोर्गतः। त्रिरात्रोपोषितो राजन्सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। | 3-82-155a 3-82-155b |
उर्वशीतीर्थमासाद्य ततः सोमाश्रमं बुधः। कुम्भकर्णाश्रमं गत्वा पूज्यते भुविमानवः ।। | 3-82-156a 3-82-156b |
कोकामुखमुपस्पृश् ब्रह्मचारी यतव्रतः। जातिस्मरत्वमाप्नोति दृष्टमेतत्पुरातनैः ।। | 3-82-157a 3-82-157b |
प्राङ्गदीं च समासाद्य कृतात्मा भवति द्विजः। सर्वपापविशुद्धात्मा शक्रलोकं च गच्छति ।। | 3-82-158a 3-82-158b |
ऋषभद्वीपमासाद्य मेध्यं क्रौञ्चनिषूदनम्। सरस्वत्यामुपस्पृश्य विमानस्थो विराजते ।। | 3-82-159a 3-82-159b |
औद्दालकं महाराज तीर्थं मुनिनिषेवितम्। तत्राभिषेकं कृत्वा वै सर्वपापैः प्रमुच्यते ।। | 3-82-160a 3-82-160b |
धर्मतीर्थं समासाद्य पुण्यं ब्रह्मर्षिसेवितम्। वाजपेयमवाप्नोति विमानस्थश्च पूज्यते ।। | 3-82-161a 3-82-161b |
अथ पम्पां समासाद्य भागीरथ्यां कृतोदकः। दण्डार्तमभिगत्वा तु गोसहस्रफलं लभेत् ।। | 3-82-162a 3-82-162b |
`ततो लेवलिकां गच्छेत्पुण्यां पुण्योपसेविताम्। वाजपेयमवाप्नोति विमानस्थश्च पूज्यते' ।। | 3-82-163a 3-82-163b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि द्व्यशीतितमोऽध्यायः ।। 82 ।। |
[सम्पाद्यताम्]
3-82-8 शम्या मुद्गराकृतिर्यज्ञोपकरणविशेषः स वलवताक्षिप्तो यावद्दूरं पतेत् तावान्देशः शम्यानिपातः तेषु षट्सु ।। 3-82-9 पुरातने भविष्यपुराणादौ ।। 3-82-16 छन्देन इच्छया ।। 3-82-19 त्वमुखं त्वत्प्रधानम् ।। 3-82-56 औशनसीं गतिं शुक्रत्वम् ।। 3-82-71 व्यवसायान्निश्चयात् ।। 3-82-105 नैत्यक नैवेद्यम् ।।
आरण्यकपर्व-081 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-083 |