महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-266
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जयद्रथचोदनया कोटिकाश्येन द्रौपदींप्रति तत्पितृभर्तृकुलादिप्रश्नः ।। 1 ।।
कोटिक उवाच। | 3-266-1x |
का त्वं कदम्बस्य विनम्य शाखां किमाश्रमे तिष्ठसि शोभमाना। देदीप्यमानाऽग्निशिखेव नक्तं व्याधूयमाना पवनेन सूभ्रूः ।। | 3-266-1a 3-266-1b 3-266-1c 3-266-1d |
अतीव रूपेण समन्विता त्वं न चाप्यरण्येषु बिभेषि किंनु। देवी नु यक्षी यदिदानवी वा वराप्सरा दैत्यवराङ्गना वा ।। | 3-266-2a 3-266-2b 3-266-2c 3-266-2d |
वपुष्मती वोरगराजकन्या वनेचरी वा क्षणदाचरस्त्री। त्वं देवराज्ञो वरुणस्य पत्नी यमस्य सोमस्य धनेश्वरस्य ।। | 3-266-3a 3-266-3b 3-266-3c 3-266-3d |
धातुर्विधातुः सवितुर्विभोर्वा शक्रस्य वा त्वं सदनात्प्रपन्ना। न ह्येव नः पृच्छसि ये वयं स्म न चापि जानीम तवेह नाथम् ।। | 3-266-4a 3-266-4b 3-266-4c 3-266-4d |
वयं हि मानं तव वर्धयन्तः पृच्छाम भद्रेप्रभवं प्रभुं च। आचक्ष्व बन्धूंश्च पतिं कुलं च जातिं च यच्चेगह करोषि कार्यम् ।। | 3-266-5a 3-266-5b 3-266-5c 3-266-5d |
अहं तु राज्ञः सुरथस्य पुत्रो यं कोटिकाश्येति विदुर्मनुष्याः। `वश्येन्द्रियः सत्यरतिर्वरोरु वृद्धोपसेवी गुरुपूजकश्च' ।। | 3-266-6a 3-266-6b 3-266-6c 3-266-6d |
असौ तु यस्तिष्ठतिकाञ्चनाङ्गे तथे हुतोऽग्निश्चयने यथैव। तरिगर्तराजः कमलायताक्षः क्षेमंकरो नाम स एष वीरः ।। | 3-266-7a 3-266-7b 3-266-7c 3-266-7d |
अस्मात्परस्त्वेष महाधनुष्मा- न्पुत्रः कुलिन्दाधिपतेर्वरिष्ठः। निरीक्षते त्वां विपुलायताक्षः सुपुष्पितः पर्वतवासनित्यः ।। | 3-266-8a 3-266-8b 3-266-8c 3-266-8d |
असौ तु यः पुष्करिणीसमीपे श्यामो युवा तिष्ठति दर्शनीयः। इक्ष्वाकुराजः सुबलस्य पुत्रः स एव हन्ता द्विषतां सुगात्रि ।। | 3-266-9a 3-266-9b 3-266-9c 3-266-9d |
यस्यानुयात्रं ध्वजिनः प्रयान्ति सौवीरका द्वादशराजपुत्राः। शोणाश्वयुक्तेषु रथेषु सर्वे मस्वेषु दीप्ता इव इव्यवाहाः ।। | 3-266-10a 3-266-10b 3-266-10c 3-266-10d |
अङ्गारकः कुञ्जरो गुप्तकश्च श्रुंजयः संजयसुप्रवृद्धौ। प्रभंकरोऽथ भ्रमरो रविश्च शूरः प्रतापःकुहनश्च नाम ।। | 3-266-11a 3-266-11b 3-266-11c 3-266-11d |
यं षट्सहस्रा रथिनोऽनुयान्ति नागा हयाश्चैव पदातिनश्च। जयद्रथो नाम यदि श्रुतस्ते सौवीरराजः सुभगे स एषः ।। | 3-266-12a 3-266-12b 3-266-12c 3-266-12d |
तस्यापरे भ्रातरोऽदीनसत्वा बलाहकानीकविदारणाद्याः। सौवीरवीराः प्रवरा युवानो राजानमेते बलिनोऽनुयान्ति ।। | 3-266-13a 3-266-13b 3-266-13c 3-266-13d |
एतैः सहायैरुपयाति राजा मरुद्गणैरिन्द्र इवाभिगुप्तः। अजानतां ख्यापय नः सुकेशि कस्यासि भार्या दुहिता च कस्य ।। | 3-266-14a 3-266-14b 3-266-14c 3-266-14d |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि द्रौपदीहरणपर्वणि षट्षष्ट्यधिकद्विशतमोऽध्यायः ।। 266 ।। |
3-266-4 धातुः प्रजापतेः सरस्वती वा। विधातुः कश्यपस्य रुद्वस्य वा। अदितिः पार्वती वा। विभोर्विष्णोर्लक्ष्मीर्वा ।। 3-266-5 प्रभवपितरम्। प्रभुं महान्तम्। प्रभवं भुवं चेति ध.पाठः ।। 3-266-7 चयने इष्टकोच्चये ।। 3-266-12 पदातिनः पद्भ्यां अतितुं सततं गन्तुं शीलं येषां ते पदातयः ।।
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