महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-223
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मार्कण्डेयेन युधिष्ठिरप्रति विस्तरेणाग्नीनां वंशकथनम् ।। 1 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-223-1x |
गुरुभिर्नियमैर्युक्तो भरतो नाम पार्थिव। अग्निः पुष्टिमग्निमि तुष्टः पुष्टिं प्रयच्छति ।। | 3-223-1a 3-223-1b |
`सततं भरतश्रेष्ठ पावकोयं महाप्रभः'। अग्निर्यश्च शिवो नाम शक्तिपूजायनिश्च सः। दुःखार्तानां स सर्वेषां शिवकृत्सततं शिवः ।। | 3-223-2a 3-223-2b 3-223-2c |
तपसस्तु फलं दृष्ट्वासंप्रवृत्तं तपोमयम्। उद्धर्तुकामो मतिमान्पुत्रो जज्ञे पुरंदरः ।। | 3-223-3a 3-223-3b |
उष्मा चैवोष्मणो जज्ञे सोऽग्निर्भूतेषु लक्ष्यते। अग्निश्चापि मनुर्नाम प्राजापत्यं सकारणम् ।। | 3-223-4a 3-223-4b |
शंभुमग्निमथ प्राहुर्ब्राह्मणा वेदपारगाः। आवसथ्यं देविजाः प्राहुर्दीप्तमग्निं महाप्रभम् ।। | 3-223-5a 3-223-5b |
ऊर्जस्करान्हव्यवाहान्सुवर्णसदृशप्रभान्। अग्निस्तपो ह्यजनयत्पञ्च यज्ञसुतानिह ।। | 3-223-6a 3-223-6b |
प्रततोऽग्निर्महाभाग परिश्रान्तो गवांपतिः। असुराञ्जनयन्धोरान्मत्यांश्चैव पृथिग्विधान् ।। | 3-223-7a 3-223-7b |
तपसश्च मनुं भानुं चाप्यङ्गिराः सृजत्। बृहद्भानुं तु तं प्राहुर्ब्राह्मणा वेदपारघाः ।। | 3-223-8a 3-223-8b |
भानोर्भार्या महाराज बृहद्भासा तु सोमजा। षट्पुत्राञ्जनयामास तदा सा कन्यया सह। भानोराङ्गिरसस्याथ शृणु तस्य प्रजाविधिम् ।। | 3-223-9a 3-223-9b 3-223-9c |
दुर्बलानां तु भूतानामसून्यः संप्रयच्छति। तमग्निं बलदं प्राहुः प्रथमं भानुजं सुतम् ।। | 3-223-10a 3-223-10b |
यः प्रशान्तेषु भूतेषु मन्युर्भवति दारुणः। अग्निः स मन्युमान्नाम द्वितीयो भानुजः सुतः ।। | 3-223-11a 3-223-11b |
दर्शे च पौर्णमासे च यस्येह हविरुच्यते। विष्णुर्नामेह योऽग्निस्तु धृतिमान्नाम सोङ्गिराः ।। | 3-223-12a 3-223-12b |
इन्द्रेण सहितं यस्य हविराग्रयणं स्मृतम्। अग्निराग्रयणो नाम भानोरेवान्वयस्तु सः ।। | 3-223-13a 3-223-13b |
चातुर्मास्येषु नित्यानां हविषां यो निरग्रहः। चतुर्भिः सहितः पुत्रैर्भानोरेवान्वयस्तु सः ।। | 3-223-14a 3-223-14b |
निशां त्वजनयत्कन्यामग्नीषोमावुभौ तथा। मनोरेवाभवद्भार्या सुषुवे पञ्च पावकान् ।। | 3-223-15a 3-223-15b |
पूज्यते हविषा योऽग्रे चातुर्मास्येषु पावकः। पर्जन्यसहितः श्रीमानग्निर्वैश्वानरस्तु सः ।। | 3-223-16a 3-223-16b |
अस्य लोकस्य सर्वस्य यः प्रभुः परिषठ्यते। सोऽग्निर्विश्वपतिर्नाम द्वितीयस्तापसः सुतः ।। | 3-223-17a 3-223-17b |
कन्या या हरिणी नाम हिरण्यकशिपोः सुताः। | 3-223-18a |
कर्मणाऽसौ बभौ भार्या स वह्निः स प्रजापतिः। प्राणानाश्रित्य यो देहं प्रवर्तयति देहिनाम्। तस्य सन्निहितो नाम शब्दरूपस् साधनः ।। | 3-223-19a 3-223-19b 3-223-19c |
शुक्लं कृष्णं वपुर्देवो यो बिभर्ति हुताशनः। अकल्मषः कल्मषाणां कर्ता क्रोधाश्रितस्तुसः ।। | 3-223-20a 3-223-20b |
कपिलं परमर्षिं च यं प्राहुर्यतयः सदा। अग्निः स कपिलो नाम साङ्ख्ययोगप्रवर्तकः ।। | 3-223-21a 3-223-21b |
योऽन्तर्यच्छति भूतानि येन चेष्टन्ति नित्यदा। कर्मस्विह विचित्रेषु सोऽग्रणीर्वह्निरुच्यते ।। | 3-223-22a 3-223-22b |
इमामन्यान्समसृजत्पावकान्प्रथितौजसः। अग्निहोत्रस्य दुष्टस्य प्रायश्चित्तार्थमुल्वणान् ।। | 3-223-23a 3-223-23b |
संस्पृशेयुर्यदाऽन्योन्यं कथंचिद्वायुनाऽग्नयः। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या वै शुचयेऽग्नये ।। | 3-223-24a 3-223-24b |
दक्षिणाग्निर्यदा द्वाभ्यां संसृजेत तदा किल। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या वै वीतयेऽग्नये ।। | 3-223-25a 3-223-25b |
यद्यग्नयो हि स्पृश्येयुर्निवेशस्था दवाग्निना। इष्टरष्टाकपालेन कार्या तु शुचयेऽग्नये ।। | 3-223-26a 3-223-26b |
अग्निं रजस्वला वै स्त्री संस्पृशेदाग्निहौत्रिकम्। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या वसुमतेऽग्नये ।। | 3-223-27a 3-223-27b |
मृतः श्रूयेत यो जीवन्परासुरशुचिर्यथा। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या सुरभिमतेऽग्नये ।। | 3-223-28a 3-223-28b |
आर्तो न जुहुयादग्निं त्रिरात्रं यस्तु ब्राह्मणः। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या तन्तुमतेऽग्नये ।। | 3-223-29a 3-223-29b |
दर्शश्च पौर्णमासश्च यस् तिष्ठेत्प्रतिष्ठितम्। इष्टिरष्टाकपालेन कार्या पथिकृतेऽग्नये ।। | 3-223-30a 3-223-30b |
सूतिकाग्निर्यदा चाग्निं संस्पृशेदाग्निहौत्रिकम्। इष्टिरष्टाकपालेन कार्यां चाग्निमतेऽग्नये ।। | 3-223-31a 3-223-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि मार्कण्डेयसमास्यापर्वणि त्रयोविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 223 ।। |
[सम्पाद्यताम्]
3-223-9 भानोर्भार्या सुप्रजा तु बृहद्भासा तु मूर्यजा इति झ. पाठः ।। 3-223-14 भानोरेवान्वयस्तुभः इति झ. पाठः ।। 3-223-18 कन्या सा रोहिणी इति झ. पाठः ।। 3-223-20 शुक्ककृष्णगतिर्देवो यो बिभर्ति हुताशनं इति झ. पाठः ।।
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