महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-286
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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रामलक्ष्मणादीनां रावणेन्द्रजिदादिभिः सह द्वन्द्वयुद्धम् ।। 1 ।।
मार्कण्डेय उवाच। | 3-286-1x |
ततो निविशमानांस्तान्सैनिकान्रावणानुगाः। अभिजग्मुर्गणाऽनके पिशाचक्षुद्ररक्षसाम् ।। | 3-286-1a 3-286-1b |
पर्वणः पतनो जम्भः खरः क्रोधवशो हरिः। प्ररुजश्चारुजश्चैव प्रघसश्चैवमादयः ।। | 3-286-2a 3-286-2b |
ततोऽभिपततां तेषामदृश्यानां दुरात्मनाम्। अन्तर्धानवधं तज्ज्ञश्चकार स विभीषणः ।। | 3-286-3a 3-286-3b |
ते दृश्यमाना हरिभिर्बलिभिर्दूरपातिभिः। निहताः सर्वशो राजन्महीं जग्मुर्गतासवः ।। | 3-286-4a 3-286-4b |
अमृष्यमाणः सबलो रावणो निर्ययावथ। राक्षसानां बलैर्घोरैः पिशाचानांच संवृतः ।। | 3-286-5a 3-286-5b |
युद्धशास्त्रविधानज्ञ उशना इव चापरः। व्यूह्यचौशनसं व्यूहं हरीनभ्यवहारयत् ।। | 3-286-6a 3-286-6b |
राघवस्तु विनिर्यान्तं व्यूढानीकं दशाननम्। बार्हस्पत्यं विधं कृत्वा प्रतिव्यूह्य ह्यदृश्यत ।। | 3-286-7a 3-286-7b |
समेत्य युयुधे तत्र ततो रामेण रावणः। युयुधे लक्ष्मणश्चापि तथैवेन्द्रजिता सह ।। | 3-286-8a 3-286-8b |
विरूपाक्षेण सुग्रीवस्तारेण च निस्वर्वटः। पौण्ड्रेण च नलस्तत्र पदुशः पनसेन च ।। | 3-286-9a 3-286-9b |
विषह्यं यं हि यो मेने स स तेन समेयिवान्। युयुधे युद्धवेलायां स्वबाहुबलमाश्रितः ।। | 3-286-10a 3-286-10b |
स संप्रहारो ववृधे भीरूणां भयवर्धनः। रोमसंहर्षणो घोरः पुरा देवासुरे यथा ।। | 3-286-11a 3-286-11b |
रावणो राममानर्च्छच्छक्तिशूलासिवृष्टिभिः। निशितैरायसैस्तीक्ष्णै रावणं चापि राघवः ।। | 3-286-12a 3-286-12b |
तथैवेन्द्रजितं यत्तं लक्ष्मणो मर्मभेदिभिः। इन्द्रजिच्चापि सौमित्रिं बिभेद बहुभिः शरैः ।। | 3-286-13a 3-286-13b |
विभीषणः प्रहस्तं च प्रहस्तश्च विभीषणम्। खगपत्रैः शरैस्तीक्ष्णैरभ्यवर्षद्गतव्यथः ।। | 3-286-14a 3-286-14b |
तेषां बलवतामासीन्महास्त्राणां समागमः। विव्यथुः सकला येन त्रयो लोकाश्चराचराः ।। | 3-286-15a 3-286-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि रामोपाख्यानपर्वणि षडशीत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 286 ।। |
3-286-1 गणा अनेके इति च्छेदः ।। 3-286-3 अन्तर्धानवधमन्तर्धानशक्तेर्नाशम् ।। 3-286-6 हरीन् वानरान्। अभ्यवहारयदावेष्टितवान् ।। 3-286-12 आनर्च्छदपीडयत् ।।
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