महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-241
दिखावट
← आरण्यकपर्व-240 | महाभारतम् तृतीयपर्व महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-241 वेदव्यासः |
आरण्यकपर्व-242 → |
द्वैतवने सरोऽभितः क्रीडास्थाननिर्माणायाज्ञसानां दुर्योधनभृत्यानां पूर्वमेव तत्रागतैर्गन्धर्वैः प्रतिवारणम् ।। 1 ।। भृत्यैर्गन्धर्वकृतनिवारणं निवेदितेन दुर्योधनेन तेषामुत्सारणाय सेनाप्रेषणम् ।। 2 ।। गन्धर्वैः परुषभाषणैर्भोपितैर्भटैर्दुर्योधनं प्रति तन्निवेदनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 3-241-1x |
अथ दुर्योधनो राजा तत्रतत्र वने वसन्। जगाम घोषानभितस्तत्र चक्रे निवेशनम् ।। | 3-241-1a 3-241-1b |
रमणीये समाज्ञाते सोदके समहीरुहे। देशे सर्वगुणोपेते चक्रुरावसथान्नराः ।। | 3-241-2a 3-241-2b |
तथैव तत्समीपस्थान्पृथगावसथान्बहून्। कर्णस्य शकुनेश्चैव भ्रातॄणां चैव सर्वशः ।। | 3-241-3a 3-241-3b |
पश्यन्तस्ते तदा गावः शतशोऽथ सहस्रशः। अङ्कर्लक्षैश्च ताः सर्वा लक्षयामास पार्थिवः ।। | 3-241-4a 3-241-4b |
अङ्कयामास वत्सांश्च जज्ञे चोपसृतांस्त्वपि। बालवत्साश्च यां गावः कालयामास ता अपि ।। | 3-241-5a 3-241-5b |
अथ स स्मारणं कृत्वा लक्षयित्वा त्रिहायनान्। वृतो गोपालकैः प्रीतो व्याहरत्कुरुनन्दनः ।। | 3-241-6a 3-241-6b |
स च पौरजनः सर्वः सर्वः सैनिकाश्च सहस्रशः। यथोपजोषं चिक्रीडुर्वने तस्मिन्यथाऽमराः ।। | 3-241-7a 3-241-7b |
ततोऽध्वगमनाच्छ्रान्तं कुशला नृत्यवादितैः। धार्तराष्ट्रमुपातिष्ठन्कन्याश्चैव स्वलंकृताः ।। | 3-241-8a 3-241-8b |
स स्त्रीगणवृतो राजा प्रहृष्टः प्रददौ वसु। तेभ्यो यथार्हमन्नानि पानानि विविधानि च ।। | 3-241-9a 3-241-9b |
ततस्ते सहिताः सर्वे तरक्षून्महिषान्मृगान्। गवयर्क्षवराहांश्च समन्तात्पर्यवारयन् ।। | 3-241-10a 3-241-10b |
स ताञ्छरैर्विनिर्भिद्य गजांश्च सुबहून्वने। रमणीयेषु देशेषु ग्राहयामास वै मृगान् ।। | 3-241-11a 3-241-11b |
गोरसानुपयुञ्जान उपभोगांशच् भारत। पश्यन्स रमणीयानि वनान्युपवनानि च ।। | 3-241-12a 3-241-12b |
मत्तभ्रमरजुष्टानि बर्हिणाभिरुतानि च। अगच्छदानुपूर्व्येण पुण्यं द्वैतवनं सरः ।। | 3-241-13a 3-241-13b |
मत्तभ्रमरसंजुष्टं नीलकण्ठरवाकुलम्। सप्तच्छदसमाकीर्णं पुन्नागवकुलैर्युतम् ।। | 3-241-14a 3-241-14b |
ऋद्ध्या परमया युक्तो महेन्द्र इव वज्रभृत्। यदृच्छया च तत्रस्थो धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः ।। | 3-241-15a 3-241-15b |
ईजे राजर्षियज्ञेन साद्यस्केन विशांपते। दिव्येन विधिना चैव वन्येन कुरुसत्तम ।। | 3-241-16a 3-241-16b |
`विद्वद्भिः सहितो धीमान्ब्राह्मणैर्वनवासिभिः'। कृत्वा निवेशमभितः सरसस्तस्य कौरव। द्रौपद्या सहितो धीमान्धर्मपत्न्या नराधिपः ।। | 3-241-17a 3-241-17b 3-241-17c |
ततो दुर्योधनः प्रेष्यानादिदेश सहानुजः। आक्रीडावसथाञ्शीघ्रं कुरुध्वं सरसोऽभितः ।। | 3-241-18a 3-241-18b |
ते तथेत्येव कौरव्यमुक्त्वा वचनकारिणः। चिकीर्षन्तस्तदाक्रीडाञ्जग्मुर्द्वैतवनं सरः ।। | 3-241-19a 3-241-19b |
सेनाग्र्यं धार्तराष्ट्रस् प्राप्तं द्वैतवनं सरः ।। | 3-241-20a |
प्रविशन्तं वनद्वारि गन्धर्वाः समवारयन्। तत्र गन्धऱ्वराजो वै पूर्वमेव विशांपते। कुबेरभवनाद्राजन्नाजगाम गणावृतः ।। | 3-241-21a 3-241-21b 3-241-21c |
गणैरप्सरसां चैव त्रिदशानां तथाऽऽत्मजैः। विहारशीलैः क्रीडार्थं तेन तत्संवृतं सरः ।। | 3-241-22a 3-241-22b |
तेन तत्संवृतं दृष्ट्वा ते राजपरिचारकाः। प्रतिजग्मुस्ततो राजन्यत्र दुर्योधनो नृपः ।। | 3-241-23a 3-241-23b |
स तु तेषां वचः श्रुत्वा सैनिकान्युद्धदुर्मदान्। प्रेषयामास कौरव्य उत्सारयत तानिति ।। | 3-241-24a 3-241-24b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा राज्ञः सेनाग्रयायिनः। सरो द्वैनवनं गत्वा गन्धर्वानिदमब्रुवन् ।। | 3-241-25a 3-241-25b |
राजा दुर्योधनो नाम धृतराष्ट्रसुतो बली। चिक्रीडिषुरिहायाति तदर्थमपसर्पत ।। | 3-241-26a 3-241-26b |
एवमुक्तास्तु गन्धर्वाः रप्रहसन्तो विशांमपते। प्रत्यब्रुवंस्तान्पुरुषानिदं हि परुषं वचः ।। | 3-241-27a 3-241-27b |
न चेतयति वो राजा मन्दबुद्धिः सुयोधनः। योऽस्मानाज्ञापयत्येवं वश्यानिव दिवौकसः ।। | 3-241-28a 3-241-28b |
यूयं मुमूर्षवश्चापि मन्दप्रज्ञा न संशयः। ये तस् वचनादेवमस्मान्ब्रूथ विचेतसः ।। | 3-241-29a 3-241-29b |
गच्छध्वं त्वरिताः सर्वे यत्र राजा स कौरवः। न चेदद्यैव गच्छध्वं धर्मराजनिवेशनम् ।। | 3-241-30a 3-241-30b |
एवमुक्तास्तु गन्धर्वै राज्ञः सेनाग्रयायिनः। संप्राद्रवन्यतो राजा धृतराष्ट्रसुतोऽभवत् ।। | 3-241-31a 3-241-31b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि घोषयात्रापर्वणि एकचत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।। 241 ।। |
3-241-4 स ददर्श तदा गावः इति झ. पाठः। अङ्कैश्चिह्नैः। लक्षैः संख्यानैः। लक्षा नपुंसि संख्यायामिति मेदिनी ।। 3-241-5 जज्ञे ज्ञातवान्। उपसृतान् दमनार्हान् वत्सतरान्समीपागतान्वा कालयामास संख्यातवान् ।। 3-241-6 त्रिहायनांस्त्रिवर्षान्वृषान्। व्याहरत् विजहार ।। 3-241-7 यथोपजोषं यथारुचि ।। 3-241-16 साद्यस्केन एकाहसाध्येने ।। 3-241-22 आत्मजैर्जयन्तादिभिः सहेति शेषः ।।
आरण्यकपर्व-240 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-242 |