महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-098
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युधिष्ठिरेण भृगुतीर्थगमनम् ।। 1 ।। लोमशेन युधिष्ठिरंप्रति परशुरामस्य दाशरथिरामेण तेजोहरणप्रकारकथनम् ।। 2 ।। तथापरशुरामस्य पितृनिदेशाद्भृगुतीर्थनिमज्जनेन पुनस्तेजोलाभकथनम् ।। 3 ।।
[लोमश उवाच। | 3-98-1x |
युधिष्ठिर निबोधेदं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। भृगोस्तीर्थं महाराज महर्षिगणसेवितम् ।। | 3-98-1a 3-98-1b |
यत्रोपस्पृष्टवान्रामो हृतंतेजस्तदाप्तवान्। अत्र त्वंभ्रातृभिः सार्धं कृष्णया चैव पाण्डव ।। | 3-98-2a 3-98-2b |
दुर्योधनहृतंतेजः पुनरादातुमर्हसि। कृतवैरेण रामेण यथा कचोपहृतं पुनः ।। | 3-98-3a 3-98-3b |
वैशंपायन उवाच। | 3-98-4x |
स तत्रभ्रातृभिश्चैव कृष्णया चैव पाण्डवः। स्नात्वा देवान्पितॄंश्चैव तर्पयामास भारत ।। | 3-98-4a 3-98-4b |
तस्य तीर्थस्य रूपं वै दीप्ताद्दीप्ततरं बभौ। अप्रवृष्यतरश्चासीच्छात्रवाणां नरर्षभ ।। | 3-98-5a 3-98-5b |
अपृच्छच्चैव राजेन्द्र लोमशं पाण्डुनन्दनः। भगवन्किमर्थं रामस्य हृतमासीद्वपुः प्रभो। कथं प्रत्याहृतंचैव एतदाचक्ष्व पृच्छतः ।। | 3-98-6a 3-98-6b 3-98-6c |
लोमश उवाच। | 3-98-7x |
शृणु रामस्य राजेन्द्र भार्गवस्य च धीमतः। जातो दशरथस्यासीत्पुत्रो रामो महात्मनः ।। | 3-98-7a 3-98-7b |
विष्णुः स्वेन शरीरेण रावणस्य वधाय वै। पश्यामस्तमयोध्यायां जातं दाशरथिं ततः ।। | 3-98-8a 3-98-8b |
ऋचीकनन्दनो राभो भार्गवो रेणुकासुतः। तस् दाशरथेः श्रुत्वा ररामस्याक्लिष्टकर्मणः ।। | 3-98-9a 3-98-9b |
कौतूहलान्वितो रामस्त्वयोध्यामगमत्पुनः। जिज्ञासमानो रामस्य वीर्यं दाशरथेस्तदा ।। | 3-98-10a 3-98-10b |
तं वै दशरथः श्रुत्वा वियान्तमुपागतम्। प्रेषयामास रामस्य रामं पुत्रं पुरस्कृतम् ।। | 3-98-11a 3-98-11b |
स तमभ्यागतं दृष्ट्वा उद्यतास्त्रमवस्थितम्। प्रहसन्निव कोन्तेय रामो वचनमब्रवीत् ।। | 3-98-12a 3-98-12b |
कृतकालं हि राजेन्द्र धनुरेतन्मया विभो। समारोपय यत्नेन यदि शक्नोषि पार्तिव ।। | 3-98-13a 3-98-13b |
इत्युक्तस्त्वाह भगवंस्त्वं नाधिक्षेप्तुमर्हसि। नाहमप्यधमो धर्मे क्षत्रियाणां द्विजातिषु। इश्र्वाकूणां विशेषेण बाहुवीर्ये न कत्थनम् ।। | 3-98-14a 3-98-14b 3-98-14c |
तमेवं वादिनं तत्र रामो वचनमब्रवीत्। अलं वै व्यपदेशेन धनुरायच्छ राघव ।। | 3-98-15a 3-98-15b |
ततो जग्राह रोषेण क्षत्रियर्षभमूदनम्। रामो दाशरथिर्दिव्यं हस्ताद्रामस्य कार्मुकम् ।। | 3-98-16a 3-98-16b |
धनुरारोपयामास सलील इव भारत। ज्याशब्दमकरोच्चैव स्मयमानः स वीर्यवान्। तस्य शब्दस् भूतानि वित्रसन्त्यशनेरिव ।। | 3-98-17a 3-98-17b 3-98-17c |
अथाब्रवीत्तदा रामो रामं दाशरथिस्तदा। इदमारोपितं ब्र्हमन्किमन्यत्करवाणि ते ।। | 3-98-18a 3-98-18b |
तस्य रामो ददौ दिव्यं जामदग्न्यो महात्मनः। शरमाकर्णदेशान्तमयमाकृष्यतामिति ।। | 3-98-19a 3-98-19b |
लोमश उवाच। | 3-98-20x |
एतच्छ्रुत्वाऽब्रवीद्रामः प्रदीप्त इव मन्युना। श्रूयते क्षम्यते चैव दर्पपूर्णोसि भार्गव ।। | 3-98-20a 3-98-20b |
त्वया ह्यधिगतं तेजः क्षत्रियेभ्यो विशेषतः। पितामहप्रसादेन तेन मां क्षिपसि ध्रुवम्। पश्य मां स्वेन रूपेण चक्षुस्ते वितराम्यहम् ।। | 3-98-21a 3-98-21b 3-98-21c |
ततो रामशरीरे वै रामः पश्यति भार्गवः। आदित्यान्सवसून्रुद्रान्साध्यांश्च समरुद्गणान् ।। | 3-98-22a 3-98-22b |
पितरो हुताशनश्चैव नक्षत्राणि ग्रहास्तथा। गन्धर्वा राक्षसा यक्षा नद्यस्तीर्थानि यानि च ।। | 3-98-23a 3-98-23b |
ऋषयो वालखिल्याश्च ब्र्हमभूताः सनातनाः। देवर्षयश्च कार्त्स्न्येन समुद्राः पर्वतास्तथा ।। | 3-98-24a 3-98-24b |
वेदाश्च सोपनिषदो वषट्कारैः सहाध्वरैः। चेतोमन्ति च सामानि धनुर्वेदश्च भारत। मेघवृन्दानि वर्षाणि विद्युतश्च युधिष्ठिर ।। | 3-98-25a 3-98-25b 3-98-25c |
ततः स भगवान्विष्णुस्तं वै बाणं मुमोच ह। शुष्काशनिसमाकीर्णं महोल्काभिश्च भारत ।। | 3-98-26a 3-98-26b |
पांसुवर्षेण महता मेघवर्षैश्च भूतलम्। भूमिकम्पैश्च निर्घातैर्नादैश्च विपुलैरपि ।। | 3-98-27a 3-98-27b |
स रामं विह्वलं कृत्वा तेजश्चाक्षिप्य केवलम्। आगच्छज्ज्वलितो बाणो रामबाहुप्रचोदितः ।। | 3-98-28a 3-98-28b |
स तु विह्वलतां गत्वा प्रतिलभ्य च चेतनाम्। रामः प्रत्यागतप्राणः प्राणमद्विष्णुतेजसम् ।। | 3-98-29a 3-98-29b |
विष्णुना सोभ्यनुज्ञातो महेन्द्रमगमत्पुनः। भीतस्तु तत्रन्यवसद्ब्रीडितस्तु महातपाः ।। | 3-98-30a 3-98-30b |
ततः संवत्सरेऽतीते हृतौजसमवस्थितम्। निर्मदं दुःखितं दृष्ट्वा पितरो राममब्रुवन् ।। | 3-98-31a 3-98-31b |
न वै सम्यगिदं पुत्र विष्णुमासाद्य वैकृतम्। स हि पूज्यश्च मान्यश्च त्रिषु लोकेषु सर्वदा ।। | 3-98-32a 3-98-32b |
गच्छ पुत्रनदीं पुण्यां वधूसरकृताह्वयाम्। तत्रोपस्पृश्य तीर्थेषु पुनर्वपुरवाप्स्यसि ।। | 3-98-33a 3-98-33b |
दीप्तोदं नाम तत्तीर्थं यत्रते प्रतितामहः। भृगुर्देवयुगे राम तप्तवानुत्तमं तपः ।। | 3-98-34a 3-98-34b |
तत्तथा कृतवान्रामः कौन्तेय वचनात्पितुः। प्राप्तवांश्च पुनस्तेजस्तीर्थेऽस्मिन्पाण्डुनन्दन ।। | 3-98-35a 3-98-35b |
एतदीदृशकं तात रामेणाक्लिष्टकर्मणा। प्राप्तमासीन्महाराज विष्णुमासाद्य वै पुरा ।। | 3-98-36a 3-98-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणि अष्टनवतितमोऽध्यायः ।। 98 ।। |
3-98-2 रामो जामदग्यः। हृतं दाशरथिरमेण ।। 3-98-5 तस्य युधिष्ठिरस्य। तीर्थस् तीर्थे स्नातस्य ।। 3-98-6 वषुः तेजः ।। 3-98-9 दाशरथेः। कर्मणि षष्ठी ।। 3-98-15 व्यपदेशेन उक्त्या ।। 3-98-25 चेतोमन्ति चेतनावन्ति। आर्षं पदत्वप्रयुक्तं रुत्वम्। चेतस्वन्तीत्यपेक्षितम् ।।
आरण्यकपर्व-097 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आरण्यकपर्व-099 |