महाभारतम्-03-आरण्यकपर्व-087
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धौम्येन युधिष्ठिरंप्रति प्रतीचीस्थतीर्थकथनम् ।। 1 ।।
धौम्य उवाच। | 3-87-1x |
अवन्तीषु प्रतीच्यां वै कीर्तयिष्यामि ते दिशि। यानि तत्रपवित्राणि पुण्यान्यायतनानि च ।। | 3-87-1a 3-87-1b |
प्रियङ्ग्वाम्रवणोपेता वानीरफलमालिनी। प्रत्यक्स्रोता नदी पुण्या नर्मदा तत्र भारत ।। | 3-87-2a 3-87-2b |
त्रैलोक्ये यानि तीर्थानि पुण्यान्यायतनानि च। सरिद्वनानि शैलेन्द्रा देवाश्च सपितामहाः ।। | 3-87-3a 3-87-3b |
नर्मदायां कुरुश्रेष्ठ सहसिद्धर्षिचारणैः। स्नातुमायान्ति पुण्यौधैः सदा वारिषु भारत ।। | 3-87-4a 3-87-4b |
निरेतः श्रूयते पुण्यो यत्र विश्रवसो मुनेः। जज्ञे धनपतिर्यत्र कुबेरो नरवाहनः ।। | 3-87-5a 3-87-5b |
वैढूर्यशिखरो नाम पुण्यो गिरिवरः शिवः। नित्यपुष्पफलास्तत्र पादपा हरितच्छदाः ।। | 3-87-6a 3-87-6b |
तस्य शैलस्य शिखरे सरः पुण्यं महीपते। फुल्लपद्मं महाराज देवगन्धर्वसेवितम् ।। | 3-87-7a 3-87-7b |
बह्वाश्चर्यं महाराज दृश्यते तत्र पर्वते। पुण्ये स्वर्गोपमे चैव देवर्षिगणसेविते ।। | 3-87-8a 3-87-8b |
ह्रदिनी पुण्यतीर्था च राजर्षेस्तत्र वै सरित्। विश्चामित्रेण तपसा निर्मिता सर्वपावनी ।। | 3-87-9a 3-87-9b |
यस्यास्तीरे सतां मध्ये ययातिर्नहुषात्मजः। पपात स पुनर्लोकाँल्लेभे धर्मान्सनातनान् ।। | 3-87-10a 3-87-10b |
तत्रपुण्यो ह्रदः ख्यातो मैनाकश्चैव पर्वतः। बहुमूलफलोपेतस्त्वमितो नाम पर्वतः ।। | 3-87-11a 3-87-11b |
आश्रमः कक्षसेनस्य पुण्यस्तत्रयुधिष्ठिरः। च्यवनस्याश्रमश्चैव विख्यातस्तत्रपाण्डव। तत्राल्पेनैव सिद्ध्यन्ति मानवास्तपसा विभो ।। | 3-87-12a 3-87-12b 3-87-12c |
जम्बूमार्गो महाराज ऋषीणां भावितात्मनाम्। आश्रम शाम्यतां श्रेष्ठ मृगद्विजनिषेवितः ।। | 3-87-13a 3-87-13b |
ततः पुण्यतमा राजन्सततं तापसैर्युता। केतुमाला च मेध्या च गङ्गाद्वारं च भूमिप। ख्यातं च सैन्धवारण्यं पुण्यं द्विजनिषेवितम् ।। | 3-87-14a 3-87-14b 3-87-14c |
पितामहसरः पुण्यं पुष्करं नाम नामतः। वैखानसानां सिद्धानामृषीणामाश्रमः प्रियः ।। | 3-87-15a 3-87-15b |
अप्यत्र संश्रयार्थाय प्रजापतिरथो जगौ। पुष्करेषु कुरुश्रेष्ठ गाथां सुकृतिनांवर ।। | 3-87-16a 3-87-16b |
मनसाऽप्यभिकामस्य पुष्कराणि मनखिनः। विप्रणश्यन्ति पापानि नाकपृष्ठे च मोदते ।। | 3-87-17a 3-87-17b |
।। इति श्रीमन्महाभारते अरण्यपर्वणि तीर्थयात्रापर्वणइ सप्ताशीतितमोऽध्यायः ।। |
3-87-2 प्रत्यक्स्त्रोता- पश्चिमवाहिनी ।। 3-87-13 शाम्यतां शमवताम् ।। 3-87-14 गङ्गारण्यं च भूमिपेति ध. पाठः ।। 3-87-16 संश्रयार्थाय वासार्थम् ।। 3-87-17 अभिकामस्य गन्तुमिच्छोः ।।
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