महाभारतम्-01-आदिपर्व-212
दिखावट
← आदिपर्व-211 | महाभारतम् प्रथमपर्व महाभारतम्-01-आदिपर्व-212 वेदव्यासः |
आदिपर्व-213 → |
इन्द्रसेनापरनाम्न्या नालायन्या उपाख्यानारम्भः-नालायन्या स्थविरस्य पत्युर्मौद्गल्यस्य आराधनम्।। 1 ।।
तुष्टेन मौद्गल्येन नालायनीप्रार्थनयाऽऽत्मनः पञ्चरूपस्वीकारेण तस्यां रमणम्।। 2 ।।
तयोः स्वर्गादिलोकेषु नानारूपेण रमणम्।। 3 ।।
सैव नालायनी तव दुहिता जातेति द्रुपदं प्रति व्यासस्योक्तिः।। 4 ।।
व्यास उवाच। | 1-212-1x |
मा भूद्राजंस्तव तापो मनस्थः पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति। मातुरेषा प्रार्थिता स्यात्तदानीं पञ्चानां भार्या दुहिता ममेति।। | 1-212-1a 1-212-1b 1-212-1c 1-212-1d |
याजोपयाजौ धर्मरतौ तपोभ्यां तौ चक्रतुः पञ्चपतित्वमस्याः। तत्पञ्चभिः पाण्डुसुतैरवाप्ता भार्या कृष्णा मोदतां वै कुलं ते।। | 1-212-2a 1-212-2b 1-212-2c 1-212-2d |
लोके नान्यो विद्यते त्वद्विशिष्टः सर्वारीणामप्रधृष्योऽसि राजन्। भूयस्त्विदं शृणु मे त्वं विशोको यथाऽऽगतं पञ्चपत्नीत्वमस्याः।। | 1-212-3a 1-212-3c 1-212-3d 1-212-3b |
एषा नालायनी पूर्वं मौद्गल्यं स्थविरं पतिम्। आराधयामास तदा कुष्ठिनं तमनिन्दिता।। | 1-212-4a 1-212-4b |
त्वगस्थिभूतं कटुकं लोलमीर्ष्युं सुकोपनम्। सुगन्धेतरगन्धाढ्यं वलीपलितमूर्धजम्।। | 1-212-5a 1-212-5b |
स्थविरं विकृताकारं शीर्यमाणनखत्वचम्। उच्छिष्टमुपभुञ्जाना पर्युपास्ते महामुनिम्।। | 1-212-6a 1-212-6b |
ततः कदाचिदङ्गुष्ठो भुञ्जानस्य व्यशीर्यत। अन्नादुद्धृत्य तच्चान्नमुपभुङ्क्तेऽविशङ्किता।। | 1-212-7a 1-212-7b |
तेन तस्याः प्रसन्नेन कामव्याहारिणा तदा। वरं वृणीष्वेत्यसकृदुक्ता वव्रे वरं तदा।। | 1-212-8a 1-212-8b |
मौद्गल्य उवाच। | 1-212-9x |
नाहं वृद्धो न कटुको नेर्व्यावान्नैव कोपनः। न च दुर्गन्धवदनो न कृशो न च लोलुपः।। | 1-212-9a 1-212-9b |
कथं त्वां रमयामीह कथं त्वां वासयाम्यहम्। वद कल्याणि भद्रं ते यथा त्वं मनसेच्छसि।। | 1-212-10a 1-212-10b |
व्यास उवाच। | 1-212-11x |
सा तमक्लिष्टकर्माणं वरदं सर्वकामदम्। भर्तारमनवद्याङ्गी प्रसन्नं प्रत्युवाच ह।। | 1-212-11a 1-212-11b |
नालायन्युवाच। | 1-212-12x |
पञ्चधा प्रविभक्तात्मा भगवांल्लोकविश्रुतः। रमय त्वमचिन्त्यात्मन्पुनश्चैकत्वमागतः।। | 1-212-12a 1-212-12b |
तां तथेत्यब्रवीद्धीमान्महर्षिर्वै महातपाः। स पञ्चधा तु भूत्वा तां रमयामास सर्वतः।। | 1-212-13a 1-212-13b |
नालायनीं सुकेशान्तां मौद्गल्यश्चारुहासिनीम्। आश्रमेष्वधिकं चापि पूज्यमानो महर्षिभिः।। | 1-212-14a 1-212-14b |
स चचार यथाकामं कामरूपवपुः पुनः। यदा ययौ दिवं चापि तत्र देवर्षिभिः सह।। | 1-212-15a 1-212-15b |
चचार सोऽमृताहारः सुरलोके चचार ह। पूज्यमानस्तथा शच्या शक्रस्य भवनेष्वपि।। | 1-212-16a 1-212-16b |
महेन्द्रसेनया सार्धं पर्यधावद्रिरंसया। सूर्यस्य च रथं दिव्यमारुह्य भगवान्प्रभुः।। | 1-212-17a 1-212-17b |
पर्युपेत्य पुनर्मेरु मेरौ वासमरोचयत्। आकाशगङ्गामाप्लुत्य तया सह तपोधनः।। | 1-212-18a 1-212-18b |
रश्मिजालेषु चन्द्रस्य उवाच च यथाऽनिलः। गिरिरूपधरो योगी स महर्षिस्तदा पुनः।। | 1-212-19a 1-212-19b |
तत्प्रभावेन सा तस्य मध्ये जज्ञे महानदी। यदा पुष्पाकुलः सालः संजज्ञे भगवानृषिः।। | 1-212-20a 1-212-20b |
लतात्वमनुसंपेदे तमेवाभ्यनुवेष्टती। पुपोष च वपुर्यस्य तस्य तस्यानुगं पुनः।। | 1-212-21a 1-212-21b |
सा पुपोष समं भर्त्रा स्कन्धेनापि चचार ह। ततस्तस्य च तस्याश्च तुल्या प्रीतिरवर्धत।। | 1-212-22a 1-212-22b |
तथा सा भगवांस्तस्याः प्रसादादृषिसत्तमः। विरराम च सा चैव दैवयोगेन भामिनी।। | 1-212-23a 1-212-23b |
स च तां तपसा देवीं रमयामास योगतः। एकपत्नी तथा भूत्वा सदैवाग्रे यशस्विनी।। | 1-212-24a 1-212-24b |
अरुन्धतीव सीतेव बभूवातिपतिव्रता। दमयन्त्याश्च मातुः स विशेषमधिकं ययौ।। | 1-212-25a 1-212-25b |
एतत्तथ्यं महाराज मा ते भूद्बुद्धिरन्यथा। सा वै नालायनी जज्ञे दैवयोगेन केनचित्।। | 1-212-26a 1-212-26b |
राजंस्तवात्मजा कृष्णा वेद्यां तेजस्विनी शुभा। तस्मिंस्तस्या मनः सक्तं न चचाल कदाचन।। | 1-212-27a 1-212-27b |
तथा प्रणिहितो ह्यात्मा तस्यास्तस्मिन्द्विजोत्तमे।। | 1-212-28a |
।। इति श्रीमन्महाभारते आदिपर्वणि वैवाहिकपर्वणि द्वादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 212 ।। |
1-212-1 मातुः मात्रा। स्यात् अभूत्।। 1-212-10 कथं केन प्रकारेण।। 1-212-22 स्कन्धेन मानुषादिदेहेन।। द्वादशाधिकद्विशततमोऽध्यायः।। 212 ।।
आदिपर्व-211 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आदिपर्व-213 |